16 जुलाई, 2016

बेटी

आँगन में तुलसी के लिए चित्र परिणाम

बेटी मेरे घर की शोभा, आँगन में तुलसी सी 
घर बाहर उजियारा करती ,दीपशिखा की लौ  सी 
हर क्षेत्र में हो अग्रणी, बिंदी सी सजती मस्तक पर 
जहां कहीं वह कदम रखती, कोई नहीं  दूसरी उससी |
२-
सुजान सुशील जिसकी बेटी
गर्व से वह सब से कहती
बड़े भाग्य से पाया मैंने
लाखों में एक है मेरी बेटी |
३-
जिस दिन उसने जन्म लिया
घर मेरा परिपूर्ण हुआ
बिन बेटी वह था अधूरा
अब जा कर वह पूर्ण हुआ |
आशा



15 जुलाई, 2016

आज




कल बीता बात गई
दिन बीता रात गई
कल की किसको खबर
क्या होगा मालूम नहीं
हम तो आज में जीते हैं
अगले क्षण का पता नहीं
आज तो आज ही है
जैसे चाहो जितना चाहो
पूर्ण उपभोग उसका करो 
मुठ्ठी भर रेत की तरह
कहीं समय न फिसल जाए
सब कार्य अधूरे रह जाएं
हम तो आज में जीते हैं
कल की किस को खबर |
आशा

13 जुलाई, 2016

जिन्दगी की पतंग

उड़ती पतंग जिन्दगी की के लिए चित्र परिणाम
जिन्दगी की पतंग 
बंधी साँसों की डोर से
उड़ चली आसमान में 
डोर कब कटनी है 
नहीं जानती 
उड़ान भरती बिंदास
अनजाने परिवेश  में 
मन में अटूट विश्वास लिए 
 उसने हार कभी  न मानी 
ना ही कभी मानेगी 
ऊंचाई छूना चाहती है 
है विकल आगे जाने को 
डोर है मजबूत 
यूं ही नहीं टूटेगी 
मंजिल तक पहुंचा कर ही 
किसी कमजोर क्षण में 
झटके से टूटेगी
या झटके खाएगी 
कहीं बीच में लटका देगी
यह है मात्र कल्पना 
सच से बहुत अलग 
कोई नहीं जानता 
कितनी साँसें लिखी हैं 
उसके भाग्य में |
आशा

12 जुलाई, 2016

बरखा ( हाईकू )

 घटाएं सावन की के लिए चित्र परिणाम
घन गरजा
टकराए बदरा
आई बरखा |
सावन आया
फुहार बरखा की
भली लगती |


नदी उफनी
भरे ताल तलैया
आई बरखा |

झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |

जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |

आशा

09 जुलाई, 2016

हाथ मेरे कुछ भी न आया

दिल लगा बैठा के लिए चित्र परिणाम

मैंने समय व्यर्थ ही गवाया
हाथ मेरे कुछ भी न आया
इस बात से ही प्रसन्न हूँ कि
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया
मेरी हार उसकी जीत में बदली
बस इसी ने मेरा दिल दुखाया
फिर भी उसे बधाई दी यह सोच
मेरा नाकाम होना
किसी के काम तो आया 
हुआ नाकाम जिस के कारण 
उसी से दिल लगा बैठा 
जब उसी से हार मिली 
मन ही अपना गवा बैठा |
आशा

07 जुलाई, 2016

चोर

aadatan chor के लिए चित्र परिणाम

था लाचार आदतों से
था रोग हाथ की सफाई का
जब राज खुलने लगा
बाजार चर्चा का गर्म हुआ
था आज तक चोर गुम नाम
सब के समक्ष आ ही गया
वह सरे आम बदनाम हो गया
नजरें न मिला पाया सब से
जीना उसका हराम हो गया |
आशा

06 जुलाई, 2016

बदलता युग

परिवर्तन सोच में के लिए चित्र परिणाम
चक्र समय का चलता जाता 
कभी न थकता ना ही रुकता 
दिन बीता रात गई 
महीने गए साल गुजरे 
युग तक बीत गया 
सूरज वहीं  चन्दा वहीं
वहीं  ठहरी कायनात
यूं तो परिवर्तन कम ही हुए 
पर सोच बदल गया
 बाक़ी सब यथावत रहा 
बच्चे भूल गए 
सुबह क्या होती है 
दस बजे सो कर उठते 
रात्री जागरण करते 
किताब सामने खुली रखते 
पढ़ने का आडम्बर रचते 
वे ऐसा करके 
अपने भविष्य से 
 कर रहे   खिलवाड़ 
 यह् नहीं समझते 
भूले कहानियां दादी नानी की 
खुद तक सीमित हो गए
    आधुनिकता की होड़ में 
क्यूं कोई पीछे रहे 
बच्चे कहाँ हैं 
 क्या कर रहे हैं 
इससे किसी को क्या करना है 
अपने  सामाजिक जीवन में  
कोई व्यवधान न आए
लोग इसी से मतलब रखते 
पर हम समय के साथ 
न चल पाए  थक गए
बहुत पीछे रह गए 
पर कुछ ऐसा भी  हुआ 
जिसे भूलना कठिन न हो 
खट्टी मीठी यादों की 
झड़ी लगी रहती है 
उसमें ही व्यस्त हो जाते हैं 
यह बात अलग है कि
तीव्रता यादों की 
कम ज्यादा होती रहती है 
ना प्यार बढ़ा न नफरत गई 
समय की घड़ी चलती रही |
आशा