20 जुलाई, 2016

मोती शब्दों के

सागर में सीपी के लिए चित्र परिणाम
सागर की सीपी  में मोती
हैं अनमोल अद्भुद दिखाई देते 
है भण्डार अपार  उनका 
उनसे शब्द मोती से झरते
किये संचित शब्दों के मोती 
चुन चुन मोती माला पिरोई 
उस पर सुगंध भावों की डाली 
वही  माला अपने प्रियवर को 
बड़े जतन से   भेट चढ़ाई 
जब उसने उसे धारण किया 
भाव भरे शब्दों को पहचाना 
सच्चे मोतियों  को परखा 
उनकी आव का अनुभव किया
उन्हें यथोचित स्थान दे कर  
मनोबल मेरा  बढ़ाया
शब्दों में संचित  भावनाएं 
दौनों के बीच सेतु बन गईं 
अपने अनुभव बांटने  के लिए
शब्दों की धरोहर मिल गई |
आशा


19 जुलाई, 2016

माँ


माँ के लिए चित्र परिणाम
बड़े प्यार से
उसने बनाई खीर
खिलाने के लिए
 सोचती रही तदवीर
उसके स्नेह का
 मान भूले
  जान न पाए
 उसकी  पीर |
है वह  माँ
यह है ममता उसकी
उसका प्रेम भूल गए
  यह कैसी तकदीर |
आशा

17 जुलाई, 2016

सबला नारी

                                                                 
पढ़ने लिखने का
अरमान बहुत है
पर समय नहीं मिलता
फिर भी समय
खोज ही लेती हूँ
जब लिखने का मन होता है
कागज़ ले प्रयत्न करती हूँ
पेन्सिल से लिखती मिटाती
पर कोई शिक्षक नही मिलता
जो प्यार से समझाए
मुझे सही राह दिखलाए
अब मैं बच्ची नहीं हूँ
अपना हित पहचानती हूँ
भारत की  हूँ  नागरिक
अपने को कम न आंकती 
धीरे धीरे यत्न करूंगी
तभी सबला हो पाऊँगी
अपने हित अहित जान
पूर्णता  प्राप्त कर  पाऊंगी |
आशा

16 जुलाई, 2016

बेटी

आँगन में तुलसी के लिए चित्र परिणाम

बेटी मेरे घर की शोभा, आँगन में तुलसी सी 
घर बाहर उजियारा करती ,दीपशिखा की लौ  सी 
हर क्षेत्र में हो अग्रणी, बिंदी सी सजती मस्तक पर 
जहां कहीं वह कदम रखती, कोई नहीं  दूसरी उससी |
२-
सुजान सुशील जिसकी बेटी
गर्व से वह सब से कहती
बड़े भाग्य से पाया मैंने
लाखों में एक है मेरी बेटी |
३-
जिस दिन उसने जन्म लिया
घर मेरा परिपूर्ण हुआ
बिन बेटी वह था अधूरा
अब जा कर वह पूर्ण हुआ |
आशा



15 जुलाई, 2016

आज




कल बीता बात गई
दिन बीता रात गई
कल की किसको खबर
क्या होगा मालूम नहीं
हम तो आज में जीते हैं
अगले क्षण का पता नहीं
आज तो आज ही है
जैसे चाहो जितना चाहो
पूर्ण उपभोग उसका करो 
मुठ्ठी भर रेत की तरह
कहीं समय न फिसल जाए
सब कार्य अधूरे रह जाएं
हम तो आज में जीते हैं
कल की किस को खबर |
आशा

13 जुलाई, 2016

जिन्दगी की पतंग

उड़ती पतंग जिन्दगी की के लिए चित्र परिणाम
जिन्दगी की पतंग 
बंधी साँसों की डोर से
उड़ चली आसमान में 
डोर कब कटनी है 
नहीं जानती 
उड़ान भरती बिंदास
अनजाने परिवेश  में 
मन में अटूट विश्वास लिए 
 उसने हार कभी  न मानी 
ना ही कभी मानेगी 
ऊंचाई छूना चाहती है 
है विकल आगे जाने को 
डोर है मजबूत 
यूं ही नहीं टूटेगी 
मंजिल तक पहुंचा कर ही 
किसी कमजोर क्षण में 
झटके से टूटेगी
या झटके खाएगी 
कहीं बीच में लटका देगी
यह है मात्र कल्पना 
सच से बहुत अलग 
कोई नहीं जानता 
कितनी साँसें लिखी हैं 
उसके भाग्य में |
आशा

12 जुलाई, 2016

बरखा ( हाईकू )

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घन गरजा
टकराए बदरा
आई बरखा |
सावन आया
फुहार बरखा की
भली लगती |


नदी उफनी
भरे ताल तलैया
आई बरखा |

झूमती आईं
सावन की घटाएं
धरा प्रसन्न |

जल बरसा
शांत धरा की गर्मीं
तरु भी खुश |

आशा