23 फ़रवरी, 2017

शिव पार्वती विवाह


हिमाचल और मैना ने 
की कठिन तपस्या पर्वत पर 
पार्वती पा धन्य  हुए 
पूरी हुई आकांक्षा |
  खेली कूदीं बढ़ने लगीं 
समय कहीं पीछे छूटा 
बढ़ती पुत्री की वय देख 
 जागी जामाता पाने की इच्छा |
हिमाचल ने बात चलाई 
बहुत से रिश्ते आए 
पर शिव सा कोई न था 
भोले को पाना सरल न था |
शिव जी को पाने के लिए 
कठिन तपस्या करने चलीं
 पर्ण तक का  त्याग किया 
अपर्णा तभी वे कहलाईं |
शिव  आए उन्हें व्याहने 
अद्भुद बरात अपनी लाये
भूत प्रेत आदि सजे थे
 अपने अपने रंग में |
जब देखी बारात ऐसी 
बच्चे तक भयभीत हुए 
सोचा लोगों ने  भारी मन से
 क्या सोच दिया बेटी को |
शिवजी थे नंदी पर सवार 
अद्भुद छटा थी उनकी 
रूप रंग साज सज्जा में 
 कोई सानी न थी उनकी  |
दौनों बंधे अटूट बंधन में 
शिव रात्रि के अवसर पर
सबने दिया आशीष उनको 
जीवन सुखमय  होने को |
आशा





चित्र पत्र



19 फ़रवरी, 2017

अनजाने में


जब से देखा उसे यहाँ 
चाल ही बदल गई है 
बिना पहचाने अनजाने में 
वह चैन ले गई है |
कभी सोचा न था इस कदर 
दिल फैंक  वह होगी 
उसके बिना जिन्दगी 
बेरंग हो गई है |
उसके बिना यहाँ आना 
अच्छा नहीं लगता 
साथ  जब वह होती
जोडी बेमिसाल होती |
झरते मुंह से पुष्प
 खनखनाती आवाज उसकी 
उत्सुकता जगाती 
उसने क्या कहा होगा |
कभी यहाँ कभी वहां 
बिजली सी कौंध जाती  
वह जब भी यहाँ आती 
सोए जज्बात जगा जाती |
आशा

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16 फ़रवरी, 2017

संस्कार




आज की पीढ़ी
हो रही बेलगाम
संस्कार हीन |

भव्य शहर
संस्कार हैं विदेशी
अपने नहीं |

है महां मूर्ख
संस्कार न जानता
पिछड़ जाता |

संस्कार मिले
माता और पिता से
है भाग्यशाली |
आशा

15 फ़रवरी, 2017

मनुहार



उसके नयनों के वार
जैसे हों  पैनी कटार
आहत कर गए
जीना मुहाल कर गए |
कुछ नहीं सुहाता
दिन हो या वार
या भेजी गई सौगात
याद रहती बस
उस वार की
पैनी कटार के धार की 
उसके रूखे व्यवहार की |
उलझनों में फंसता जाता
यह तक भूल जाता
लाल गुलाब का वार है
ना कि कोई त्यौहार |
करना है प्यार का इज़हार
मनाना है उसे दस बार
धीरे धीरे कर मनुहार
न कि कर  प्रतिकार |
आशा




13 फ़रवरी, 2017

लाल गुलाब




दिया गुलाब का लाल फूल
सारी सीमायें भूल
दिल खोल कर रख दिया
मन में क्या था जता दिया
वह चित्र लिखी सी देख रही
हाथ से गुलाब लिया
थोड़ा झिझकी फिर शरमाई
शब्दों का टोटा पड़ गया
वह कुछ कह न पाई
नयनों की भाषा नयनों ने जानी
कहानी बनी बड़ी रूहानी |
आशा




11 फ़रवरी, 2017

गुड़िया (बाल कविता )



मेरी गुड़िया रंग रंगीली
बेहद प्यारी छवि  उसकी
दिन रात साथ  रहती
मुझे बहुत प्यारी लगती |
है  बहुत सलीके वाली
होशियारी विरासत में मिली
पढाई में सब से आगे
सभी की दुलारी है
अभी से है चिंता 
जब यह ससुराल  जाएगी
 क्या हाल होगा उसके बिना
पर जाना भी तो जरूरी है |
मैंने एक गुड्डा देखा
पर उसने नापसंद  किया
फिर अपनी पसंद बताई
पर वह पूरी न हो  पाई |
अब भी तलाश जारी है
गुडिया जैसा रंग रंगीला
जब  पसंद आ जाएगा
वही उस का वर होगा |
आशा