17 मार्च, 2017

जी चाहता है




जिन हाथों ने यह जादू किया
सजाया सवारा
मुझे बदल कर रख दिया
जी चाहता है
चूम लूं उन्हें
समेत लूं अपने आप में
प्यार दुलार का
यह फलसफ़ा
समझ से है बाहर मेरे
एहसास तब न था उसका
आज है पर पूरा नहीं
जी चाहता है
अ ब स उसका
जान लूं गहराई से
तभी उसे समझ पाऊंगा
खुद को उसके
समीप पाऊंगा
जी चाहता है समय
व्यर्थ न जाए
वह थम जाए
मुझे उसतक पहुँचाए |
आशा

15 मार्च, 2017

किस लिए

आपने क्रोध जताया 
किस लिए 
डाटने में मजा आया
 इसलिए 
या हमने कुछ
 गलत लिया इसलिए 
हमने तो  यह भी  न पूंछा
 क्या थी हमारी खता 
डाट खाई बिना बात
 किस लिए
आप हमसे बड़े हैं
 शायद  इस लिए 
अधिकार हमारा है 
कि कारण जाने 
नहीं बताना चाहें जाने दीजिये 
हम तो छोटे हैं छोटे ही सही 
यह क्रोध यह रुसवाई
 किस लिए 
क्या क्यों किसलिए में 
यदि उलझे रहे 
जिन्दगी कैसी होगी 
जानना चाहेंगे 
पर कोई बताएगा ही क्यों
 किसलिए
आप तो खुद को बदल न पाएंगे 
जिन्दगी का बोझ 
सह न पाएंगे 
टूट कर बिखर जाएंगे
इसी लिए सब 
सही गलत सह लेते हैं 
आपकी प्रसन्नता के लिए
जिन्दगी की  कठिन डगर पर
 सहज चलने के लिए
फिरभी यदि कारण बता पाते 
आपका मन भी
हल्का हो जाता 
चहरे पर आई मुस्कान का 
हम से  सांझा हो पाता |
आशा



13 मार्च, 2017

प्रेमपाश

बाल रूप तुम्हारा देखा 
सखा सदा तुमको समझा 
प्रेम तुम्हीं से किया कान्हां 
सर्वस्व तुम्हीं पर वारा |
तब भी वरद हस्त तुम्हारा 
दूर क्यूं  होता गया 
क्या कमीं रह गई पूजन में 
बता दिया होता कान्हां  |
कारण तभी समझ पाता 
परिवर्तन खुद में कर पाता
मन में पश्च्याताप न रहता 
अकारण अवमानना न सहता|
प्रेम पाश में बंध कर  तुम्हारे
धन्य में खुद को समझता 
भक्तिभाव में में खोया रहता 
शत शत नमन तुम्हें करता  |
माया मोह से हो कर दूर 
लीन  सदा तुम में रहता
कृपा दृष्टि तुम्हारी पा कर 
भवसागर के पार उतरता |
आशा





11 मार्च, 2017

फागुनी हाईकू



उड़े गुलाल
केशर की फुहार
वृन्दावन में

होली खेलती
फगुआ मांग रहीं
गोपियाँ यहाँ 



होली फूलों की
मथुरा में कान्हां खेले
भक्तों के संग

लट्ठ मारती
होली गौरी खेलती
बरसाने में 


रंग गुलाल
भाए न प्रियतम
तुम्हारे बिना


कान्हां खेलता
होली बरसाने में
  गोपियों संग

केशर होली
मोहन खेल रहे
राधा के संग 



रंग गुलाल
पिचकारी की धार
न सह पाती

डालो न रंग
खेलना चाहूँ होली
मोहन संग



फागुनी गीत
रंग से भीगे तन
मन उलझे

प्रियतम हो
वही बने रहते
उसे रंगते 


गुजिया मठ्ठी
गुलाल लगाकर
उसे खिलाई

मिठास बढ़ी
सौहार्द आपस में
बढ़ता गया

आशा

10 मार्च, 2017

बेटा चाँद पकड़ना चाहे


निशा के अन्धकार में 
चन्दा चमके आसमान में 
नन्हां बेटा पकड़ना चाहे 
 चन्दा मामा  हाथ में  |
बहलाया कई लालच दिए
अन्दर बाहर ले कर गई 
ध्यान बटाने की कोशिश में 
 जिद्द बेटे की बढ़ती गई |
हद तो तब हुई जब 
 डबडबाई आँखें उसकी 
वह बिना चाँद के   सोना न  चाहे 
रोने का हथियार चलाए |
मैंने बहुत विचार किया 
अपना बचपन याद किया 
एक बार मां ने जलभरी परात में 
चन्दा मुझे दिखाया था |
जल्दी से परात लाई 
जलभर कर आँगन में आई 
जल में अक्स चन्दा मामा का 
बेटे से पकड़वाना चाहा |
किये अथक प्रयास पर व्यर्थ रहे 
वह थक गया और सो गया 
सुबह तक वह भूल गया 
किस बात के लिए जिद्द की थी |
न चाँद था न रात आँगन में
 केवल पानी भरी परात थी
भोली भाली जिद्द ने उसकी
मेरा बचपन याद दिलाया
बीती यादों में पहुंचाया |
आशा









08 मार्च, 2017

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस



बड़ी बड़ी बातों से
कोई महान नहीं होता
एक दिन की चांदनी से
अन्धकार नहीं मिटता
महिला तो महिला ही रहेगी
सुखी हो या दुखों से भरी
एक दिन में सुर्ख़ियों में आकर
अखवारों में तस्वीर छपा कर
अपनी योग्यता गिनवाकर
अन्तराष्ट्रीय दिवस में छा कर
प्रथम श्रेणी में तो न आ पाएगी
दूसरे दर्जे की है मुसाफिर
प्रथम में कैसे जाएगी
वर्षभर अनादर सहती
बारबार सताई जाती
अपेक्षित सम्मान न पाती
कुंठाओं से ग्रसित वह
कैसे यह दिवस मनाए
अपनी पीड़ा किसे बताए |
आशा




मैं अदना सा तिनका


जब जब जल बरसता 
सड़क नदी बन जाती
चाहे जो बहने लगता
तैरने डूबने लगता
पर मैं अदना सा तिनका
 बहाव के संग बहने लगता
चीख चिल्लाहट बच्चों का रोना
सभी दीखता सामने
 मैं नन्हां सा तिनका
बहते बहते सोच रहा
क्या होगा भविष्य मेरा
जैसे सब डूब रहे हैं
मेरा भी हश्र कहीं
उन जैसा तो न होगा
यदि जलमग्न हुआ
क्या से क्या हो जाऊंगा
अभी तो बेधर हुआ हूँ
फिर मिट्टी में मिल जाऊंगा |
आशा