06 मई, 2017

जल की कमी जब हो





तप रही धरा
हुए लू से बेहाल
पर घर के काम
कभी न रुकते
सुबह हो या  शाम
चिंता ही चिंता
लगी रहती
खाली पड़े घट
याद करते
फिर बावड़ी
 रस्सी व गागर
इसके अलावा
कुछ न दीखता
चल देते कदम उस ओर
संग सहेली साथ होतीं
पता नहीं कब
वहाँ पहुँचते
 सीढ़ियाँ उतरते 
कभी थकते 
कुछ देर ठहरते
गहराई में 
जल दर्शन पा
मन में खुश हो लेते
जल गागर में भरते
कई काम 
मन में आते
ठन्डे पानी में
पैर डालते 
पर और काम
याद आते ही
 भरी गागर
सर पर धर
सीधे घर की
राह पकड़ते
यह रोज का है
खेल हमारा
इससे कभी न धबराते 
पर जल व्यर्थ न बहाते |
|
आशा



28 अप्रैल, 2017

आस अभी ज़िंदा है




जब साँझ का धुँधलका हो
मन कहीं खोया हुआ हो
  सूचना होगी ऐसी
मन में उदासी भर देगी
पर हर वक्त का 
 नकारात्मक सोच
जीवन का सुकून हर लेगा
यदि दीप जलाने का मन ना हो
  जान जाइए समय विपरीत हुआ है
बेमन हो दीप जलाया भी
कब तक बाती जलेगी
धीमी लौ होते ही
दीपक की पलकें झपकेंगी
बंद आँखों में झाँक कर देखिये
वहाँ कोई सपना सजा है
दीप बुझ भी गया तो क्या
कहीं जीवन में रस भरा है
यही अंदाज़ जीने का
आशाओं पर टिका है
जब तक साँस बाकी है
आशा का दीपक जल रहा है
दीप बुझ गया तो क्या
मन में आस अभी ज़िंदा है |

आशा

26 मार्च, 2017

प्राकृतिक अभियंता


तिनके चुन चुन
 घरोंदा बनाया 
आने जाने के लिए
 एक द्वार लगाया 
 मनोयोग से
घर को सजाया
दरवाजे पर खड़े खड़े 
अपना घर निहार रही 
देख दस्तकारी  अपनी
फूली नहीं समा रही 
कभी आसपास उड़ती 
बच्चे देख खुश होती 
अचानक अनजानी आशंका 
उसके मन में उपजी 
कहीं कोई घर न गिरादे 
बच्चों को हानि ना पहुँचाए 
इसी लिए है सतर्क 
दे रही सतत पहरा 
पूरी सावधानी से |

आशा


23 मार्च, 2017

फूलों की होली


रंग में भीगा
भीगा सा दीख रहा
रंगा हुआ पलाश
अपने ही फूलों से
भास्कर की किरणों ने
किया सराबोर उसे
प्राकृतिक नारंगी रंग से
अब फूलों की
बहार है तैयार 

गुल गैंदा संग
होली खेलन को
भक्त भी तैयार
अपने राधा किशन से
फूलों की होली
खेल रहे भक्त
मथुरा में राधा रमण से |
आशा


22 मार्च, 2017

बांसुरी कान्हां की

प्रश्न अचानक
 मन में आया 
राधा ने जानना चाहा 
है यह बांस की बनी
 साधारण सी बांसुरी
पर अधिक ही प्यारी क्यूं है 
  कान्हां तुम्हें  ?
इसके सामने मैं  कुछ नहीं 
मुझे लगने लगी 
अब तो यह सौतन सी 
जब भी देखती हूँ  उसे 
विद्रोह मन में उपजता 
फिर भी बजाने को 
उद्धत होती 
जानते हो क्यूं ?
शायद इसने 
अधर तुम्हारे चूमे 
उनका अमृत पान किया 
तभी लगती बड़ी प्यारी 
जब मैंने इसे चुराया 
बड़े जतन  से इसे बजाया 
स्वर लहरी इसकी
तुम्हें बेचैन कर गई
की मनुहार कान्हा तुमने 
इसे पाने के लिए 
मैं जान गई हूँ
इसके बिना तुम हो अधूरे
यह भी अधूरी तुम्हारे बिना 
चूंकि यह है तुम्हें प्यारी 
मुझे भी अच्छी लगने लगी |
आशा





19 मार्च, 2017

मौसम चुनावी



रहा मौसम चुनाव का
प्रत्याशियों की धमाल का
यह जब हाथापाई तक पहुंचा
ना शर्म रही न लिहाज रहा
वक्त भी क्या कमाल आया है
पहले जो न देखा आज देखा है
आवाज लाउडस्पीकर की
किसी को सोने नहीं देती
यह तक भूल जाते हैं
कि कहीं कोई बीमार है
या परीक्षा का समय है
बस धमाल ही धमाल है
शिक्षा दें भी तो किसे
कभी अनुशासन जाना नहीं
यही जब नेता होंगे
क्या विरोधी क्या सत्ता धारी
लोक सभा विधान सभा में
अखाड़े का आनंद देंगे
ऐसा उत्पात मचाएंगे
कान बहरे होने लगेंगे
आपस में तालमेल नहीं
भीतर क्या बाहर क्या
ये देश को क्या सम्हालेंगे
वक्त भी क्या कमाल आया है
देश पर संकट का साया है |
आशा




17 मार्च, 2017

जी चाहता है




जिन हाथों ने यह जादू किया
सजाया सवारा
मुझे बदल कर रख दिया
जी चाहता है
चूम लूं उन्हें
समेत लूं अपने आप में
प्यार दुलार का
यह फलसफ़ा
समझ से है बाहर मेरे
एहसास तब न था उसका
आज है पर पूरा नहीं
जी चाहता है
अ ब स उसका
जान लूं गहराई से
तभी उसे समझ पाऊंगा
खुद को उसके
समीप पाऊंगा
जी चाहता है समय
व्यर्थ न जाए
वह थम जाए
मुझे उसतक पहुँचाए |
आशा