24 जनवरी, 2018

मैं भीग भीग जाती हूँ



बिना मौसम बरसात के
जब बादल छा जाते हैं
जब भी फुहार आती है     
मैं भीग भीग जाती हूँ 
मन से भी तन से भी 
कितना भी ख्याल रखूं 
बच नहीं पाती 
जाने कहाँ से विचार आते हैं 
मन से टकरा कर चले जाते हैं 
न जाने क्यों बैर है मुझसे 
न आने की खबर देते हैं 
न जाने की सूचना 
बस मन की वीणा के 
तार छेड़ जाते हैं |
आशा
  







22 जनवरी, 2018

वसंत पंचमीं






वसंत ऋतू के आगमन ने
 किया आग़ाज
अपने आने का
चुराई मौसम से कुछ ऊर्जा
सुहाना उसे बनाने के लिए
है आज वसंत पंचमी
धरती पीली हुई
 पीले पुष्पों से सजी 
हे वाग देवी सरस्वती
 तेरे स्वागत में 
बच्चों ने पीत वसन 
 धारण किये 
मीठे चावल बनाया 
 भोग के लिए 
देना झोली भर
विद्या का दान 
आशीष भरा  हाथ 
सर पर सदा रखना 
मां सरस्वती तुम्हें 
शत शत नमन |
आशा

20 जनवरी, 2018

सागर का जल खारा








सागर का जल खारा
पर वह इससे भी न हारा
सोचा क्यूँ न इसीसे
प्यास बुझा ली जाए  
पहुँचा तट पर 
जल पीने को
 जैसे ही अंजुली भरी
मुँह तक उसे  ले कर आया
पर एक बूँद भी ना  पी  पाया
बहुत ही खारा उसे पाया
एक विचार मन में आया  
क्या फायदा ऐसे जल का
जब प्यासे को पानी न मिले 
हुआ बहुत उदास
 फिर सोचा कितने ही
जीव जंतुओं  का घर है यहाँ
उसे जल न मिला तो क्या
जलचरों को मिलता खाना
रहने को घर यहाँ
है बहुत महत्व इसका
वर्षा का स्रोत है यह
बादल जल पाते हैं इससे
पर्यावरण संतुलित होता जिससे |


आशा

17 जनवरी, 2018

रघुवर तुमसे मैं हारी



रघुवर तुमसे मैं हारी
अनुनय कभी न सुनी मेरी
 ना कोई दुःख ना असंतोष
पर फिर भी कहीं कोई कमी रही
जो खल रही मुझको
 जब से तुमसे दूरी पाली
 ऐसा कभी सोचा न था
क्यों तुमसे दूरी पाली 
अनुनय विनय और सभी जतन 
निकले थोथे  मैं हारी 
कोई राह दिखाओ मुझको 
रघुवर दूरी अब सही  न जाती |
आशा












16 जनवरी, 2018

अलाव


सर्द हवाओं के झोंकों से
 ठण्ड बढ़ी  ठिठुरते लोग
सड़क पार तम्बू में ठहरे 
फटे बिस्तर में दुबके लोग 
पर बच्चों की चंचल वृत्ति 
खींच लाई उन्हें सड़क पर 
जल्दी-जल्दी निकालीं
 छोटी-छोटी लकड़ियाँ
पोलीथीन में रखी सूखी पत्तियाँ
माचिस जलाई  आग लगाई 
की बहुत मशक्कत अलाव जलाने में 
धीरे-धीरे सुलगा अलाव 
धुआँ उठा लौ निकली 
चमकने लगे सुलगते अंगारे 
और बढ़ने लगी थोड़ी-थोड़ी गर्मी 
आ गयी चेहरों पर सुर्खी 
बच्चों के प्रयत्नों की ! 
जब आई बच्चों की आवाज़ 
झाँक कर बाहर देखा 
फेंकी चादर निकले बाहर 
देख कर जलता अलाव !
हुआ गर्व बालकों पर 
उनकी सूझ बूझ से
 कुछ तो राहत पाई 
आते जाते हाथ सेंकते 
सड़क पर चलते लोग 
और बढ़ जाती बच्चों की 
आँखों में चमक और अधरों पर मुस्कान ! 


आशा सक्सेना 



14 जनवरी, 2018

क्षणिकाएं



आपने अफसाना अपना सुनाया
सभी के दिलों को बहकाया
जब अपने पास बुलाया
कुछ पलों को थमता सा पाया
आपके शब्दों की कसक
कानों में गूंजती रही वर्षों तक !

दीप जलाया मन मंदिर में 
हवा के झोंके सह न सका
था बुझने के कगार पर
अंतर्वेदना तक प्रगट न कर पाया
कसमसाया भभका और बुझ गया |

नीला समुन्दर नीला आसमान 
धरती बहुरंगी इंद्र धनुष समान 
आशा उपजती इसे निहारने की 
समस्त रंग जीवन में उतारने की  |

मुझ से टकरा कर चले जाते हैं
न जाने क्या है मुझसे वैर उनका
न जाने की खबर देते हैंन आने कीआहट
 बस मन के तार छेड़ जाते हैं |...

बेचैन न हो धर धीर धरा की तरह 
सब कष्ट सहन करमना धरणी की तरह 
गुण सहनशीलता का होगा विकसित 
महक जिसकी होगी हरीतिमा कि तरह |

आशा

09 जनवरी, 2018

सकारात्मक सोच


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केवल अधिकारों की देते हैं जानकारी 
पर कर्तव्यविहीन हो रही सोच हमारी 
खुल कर बोलना है अधिकार हमारा 
कब बोलना, कहाँ बोलना व विवादों को 
देना निमंत्रण क्या दुरुपयोग नहीं ! 
हँसना हँसाना लगता तो है भला 
पर कटु भाषण और व्यंगाबाण 
मन पर करते प्रहार 
संतुलित आचरण रहा तो रिश्ते संवरें 
पर बिना बात के ताने 
मन की सुख शान्ति हर ले जाएँ 
है यह स्वयं का विवेक 
हम किस मार्ग पर जाएँ 
कहीं संस्कारविहीन नहीं हुए हों 
अच्छी सोच हो खिले पुष्पों की तरह 
जो खुद तो महके ही अपने 
आस पास को भी चमन बना दे
खुशबू दिग्दिगंत तक जाए ! 


आशा सक्सेना