15 मई, 2018

वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ


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अपने बचपन में खूब की सैर
 हरेभरे जंगल की
वृक्षों की छाँव में तपती दोपहर में
बहुत ठंडक देता था जंगल
ऐसा नहीं कि तब पेड़ काटे न जाते थे 
 पर एक सीमा तक 
कि पर्यावरण संतुलन ना बिगड़े
जैसे जैसे  जनसंख्या  का भार बढ़ा
अंधाधुंध कटाई बढ़ गई
जंगल बंजर भूमि बनने से न बच पाए
मनुष्य अपने स्वार्थ में
 इतना अंधा हो गया कि यह तक भूला
 द्रुत गति से पेड़ काटे तो जा सकते है
 पर एक पेड़ लगाना
  उसे बड़ा करना है कितना मुश्किल
 दूर से एक लकड़हारा आया
 हाथ में लिए कुल्हाड़ी पेड़ काटने के लिए 
प्रकृति नटी ने देख उसे भय से
वृक्ष की ऊंचाई पर पनाह पाई
वह इस अनाचार को सह न सकी 
 नयनों में आंसू भर  आए
गर्मी बेइंतहा बढ़ी पेड़ों कि कटाई से
पंथी बेचारे छाँव को तरसे
यही सब सोच
कुछ लोगों में आया जागरण
बड़े बड़े अभियान चलाए
वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ
जागरूक बच्चा तक हो गया
बहुत गंभीर हो कर बोला
कोई अन्य विकल्प तो होगा
 जो इस  वृक्ष का पर्याय हो 
बाक़ी तो कट गए 
इसे हाथ न लगाना
है यह बहुत प्रिय मुझे
यह बढ़ रहा है मेरी तरह 
पनप रहा है धीमी गति से |

आशा

14 मई, 2018

नज़रे इनायत




इक जरासी रात की 
 नज़रे इनायत क्या हुई 
,हम हम न रहे खुद को भूल गए 
वे भावनाओं में इस कदर खोए 

कि परिणाम भी न सोच पाए
नतीजा क्या होगा

 जानने की आवश्यकता न समझी
सुबह हुई व्यस्त कार्यक्रम रोज का

 कहीं ना छूट पाया
हम उस में इतने हुए व्यस्त
रात कहाँ गुजारी यह तक याद न रहा
कितने वादे किये उनसे

 पूरा करना भी भूले |
आशा




08 मई, 2018

अभिसारिका


    









 पलक पसारे बैठी है
 वह तेरे इन्तजार में
हर आहट पर उसे लगता है
कोई और नहीं है  तेरे सिवाय  
हलकी सी दस्तक भी
दिल के  दरवाजे पर जब होती 
 वह बड़ी आशा से देखती है
 तू ही आया है 
मन में विश्वास जगा है
चुना एक फूल गुलाब का
 प्रेम के इजहार के लिए
      काँटों से भय नहीं होता
स्वप्न में  गुलाब देख
 अजब सा सुरूर आया है  
वादे  वफा का नशा
 इस हद तक चढ़ा है कि
उसे पाने कि कोशिश  तमाम हुई है
चर्चे गली गली में सरेआम हो गए
पर उसे इससे कोई आपत्ती नहीं
मन को दिलासा देती है
तेरी महक से पहचान लेती है |
आशा

02 मई, 2018

इंतज़ार


आस लगाए कब से बैठा
मखमली घास पर आसन जमाया
खलने लगा अकेलापन
मन को रास नहीं आया
पास न होने का
क्या कारण रहा
यह तक मुझे नहीं बताया
मैं ही कल्पना में डूबा रहा
छोटी मोटी बातों ने
एहसास तुम्हारा जगाया
जैसे तैसे मन को समझाया
फिर भी तुम पर गुस्सा आया
क्या फ़ायदा झूठे वादों का 
तुम्हारे इंतज़ार का  
तुम्हारी यही वादा खिलाफी
मुझ को रास नहीं आती
मन को चोटिल कर जाती
आशा