18 दिसंबर, 2013

हाइकू (२)


(१)
सपने कभी
नही होते अपने
हरते चैन |
(२)
की मनमानी
उलझी सपनों की
दीवानगी में |.
(३)
बड़ों की सीख 
मान स्वप्न  दीवानी
मैं मैं न रही |
(4)
चेहरा तेरा
दर्प से चमकता
सच्चे मोती सा |
(५)
रिश्ता प्यार का
निभाना है कठिन
आज ही जाना |
(६)
यूं न देखते
सोचते समझते
तुझे निभाते |
(७)
किया अर्पण
पूरा जीवन तुझे
तूने जाना ना |

आशा

16 दिसंबर, 2013

हाइकू

  1. -(१)
ना दो आघात
बेबात की बातमें
उलझना ना |
(२)
उलझना ना
किसी से कभी यूंही
बंध रहना |

14 दिसंबर, 2013

शिक्षा ली सरकार ने



गांधी जी के तीन बन्दर
देते सीख बुरा मत देखो
बुरा मत सुनो ,बुरा मत बोलो
सब लेते सीख अपने हिसाब से
दीखती यह सरकार भी उन जैसी
होता रहता अत्याचार, अनाचार
पर आँखें बंद किये है
कुछ देखती नहीं |
कोई कुछ भी करता रहे
खोले शिकायतों के पुलिंदे
पर वह क्या प्रतिक्रया दे
कानों पर हाथ रखे है
कुछ सुन नहीं सकती |
यदि कुछ देखे सुने
अनजान बनी रहती है
कुछ बोलती नहीं
मुंह पर हाथ रखे है
मौन व्रत लिए है |
रही असफल हर अहम् मुद्दे पर
जुम्मेदार देश की बदहाली के लिए
जो सीख बंदरों से ली
उसका प्रतिफल है यह |
आशा

12 दिसंबर, 2013

इष्ट मेरा

हैं कंटकमय संकीर्ण 
यह क्षत- विक्षत  पहुँच मार्ग 
पर है सेतु 
तेरे मेरे बीच का |
 पग पग आगे बढूँ
ना रुकूं ना ही विश्राम करूं 
फिर भी मंथर गति 
तीव्र न हो पाती
किरणे तेजस्वी अरुण की 
भी मलिन हो जातीं 
अरुणोदय से सांझ तलक 
कुछ दूरी भी तय न कर पाती  
है यह कैसी विडंबना 
तेरी छाया तक न छू पाती 
पर हूँ दृढ प्रतिज्ञ 
कदम मेरे पीछे न हटेंगे 
तुझे पा कर ही दम लेंगे 
अब आपदाओं का न भय  होता 
माया मोह से ना कोई  नाता
ध्यान तुझी में रहेता 
 इष्ट मेरा है तू ही
जिसमें सिमटा जीवन मेरा |
आशा




10 दिसंबर, 2013

एक बाल रचना



तितली रानी बड़ी सयानी
फूल फूल पर मंडराती
मकरंद सारा चट कर जाती
फिर ही कहती प्यास नहीं बुझी
मैं तो प्यासी ही रही |
पांसा फेकती सुन्दर पंखों का 
गुलाब को दुलराती 
बहुत प्यार करती है उसको 
बारम्बार उसे जताती |
वह उसे समझ नहीं पाता
साथ पा बहुत खुश होता 
है कितनी मतलबी 
जान नहीं पाता  |
पर वह तो है बहुत चतुर 
जैसे ही क्षुधा शांत होती 
मन भर जाता
उड़ती दूसरा पुष्प तलाशती |
फूल बिचारा सीधा साधा 
उसको पहचान नहीं पाता 
अपना मित्र जान कर 
बार बार गले लगाता |
आशा


09 दिसंबर, 2013

अधोपतन


 
तू माया की धूप
जिसे वह रोज सेकता
मन को सुकून दे कर
हर पल खोया रहता |
ऐसा लिप्त होता
सुकून भी कूच कर जाता
मद की सरिता में बहता
प्रतिदिन डुबकी लगाता |
मद जब सिर चढ़ कर बोलता
होता सभी  से दूर
खुद में सिमट कर
 रह जाता |
धीरे धीरे मोह उपजता
तृष्णा कम न होती
बड़ी बड़ी बातें तो करता
पर मद से बच न पाता |
जब पलट कर देखता
अपने विगत में झांक कर 
क्या से क्या हो गया
विश्वास नहीं होता |
फिसलता जा रहा
पतन की ढलान पर
क्या आत्मा
विद्रोह नहीं करेगी
यूं ही सोती रहेगी  |

07 दिसंबर, 2013

एक शिकायत



राम तुम्हारी नायक छवि ने
जन मानस में वास किया
प्रजावत्सल राजा को
उसने सिंहासनारूढ़ किया |
तुम्हारे असाधारण गुणों को
कोई यूं ही याद नहीं करता
वे थे सबसे भिन्न
सभी जानते थे |
सब के प्रति व्यवहार तुम्हारा
स्नेहपूर्ण होता था
सदा तुम्हारा हाथ
न्याय हेतु उठता था |
जाने कितने गुण छिपे थे
रूपवान व्यक्तित्व में
इसी लिए तुम विशिष्ट रहे
जन जन के मन में |
पर राम मुझे है
एक शिकायत तुमसे
तुमने क्यूँ अन्याय किया
अपनी पत्नी सीता से |
एक पत्नी व्रत धारण किया
वन वन भटके जिसके लिए
पर निकाल बाहर किया
एक अकिंचन के कहने से |
क्या कोई कर्तव्य न था
गर्भवती सीता के प्रति
जब कि जानते थे
दोष न था उसमें कहीं |
अग्नि परीक्षा उसने दी थी
क्या वह पर्याप्त न थी
वह पृथ्वी  में समाई
तुम्हारी आत्मा पर बोझ हुई
क्या यह अन्याय न था तुम्हारा
फिर भी लोग तुम्हें  पूजते हैं
आदर्श तुम्हें मानते हैं |
आशा