18 सितंबर, 2011

कल्पना के पंख


जीवन में पंख लगाए
आसमान छूने को
कई स्वप्न सजाए
साकार उन्हें करने को |
उड़ती मुक्त आकाश में
खोजती अपने अस्तित्व को
सपनों में खोई रहती थी
सच्चाई से दूर बहुत |
पर वह केवल कल्पना थी
निकली सारी खोखली बातें
ठोस धरातल छूते ही
लगा वे थीं सतही बातें |
और तभी समझ पाई
कल्पना हैं ख्याली पुलाव
होते नहीं सपने भी सच्चे
होती वास्तविकता कुछ और |

आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर कल्पना के पंख है....

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  2. यह भी एक सच्चाई ही है ! कल्पना और वास्तविकता में बहुत अंतर होता है !

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  3. आशा ही, कल्‍पना और वास्‍तविकता को आपने बहुत ही सुंदर तरीके से शब्‍दों में बांधा है। बधाई।

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    कभी देखा है ऐसा साँप?
    उन्‍मुक्‍त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..

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  4. कल्पना के पंख बहुत ही सुन्दर है|बधाई।

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  5. पहले तो में आप से माफ़ी चाहता हु की में आप के ब्लॉग पे बहुत देरी से पंहुचा हु क्यूँ की कोई महताव्पूर्ण कार्य की वजह से आने में देरी हो गई
    आप मेरे ब्लॉग पे आये जिसका मुझे हर वक़त इंतजार भी रहता है उस के लिए आपका में बहुत बहुत आभारी हु क्यूँ की आप भाई बंधुओ के वजह से मुझे भी असा लगता है की में भी कुछ लिख सकता हु
    बात रही आपके पोस्ट की जिनके बारे में कहना ही मेरे बस की बात नहीं है क्यूँ की आप तो लेखन में मेरे से बहुत आगे है जिनका में शब्दों में बयां करना मेरे बस की बात नहीं है
    बस आप से में असा करता हु की आप असे ही मेरे उत्साह करते रहेंगे

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  6. बहुत ही सुन्दर कल्पना के पंख ....हकीकत कहती अच्छी प्रस्तुति

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  7. होते नहीं सपने भी सच्चे
    होती वास्तविकता कुछ और |

    ... बहुत सच कहा है। केवल सपनों से नहीं जिया जा सकता, एक दिन हक़ीक़त का सामना करना ही पड़ता है। बहुत सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति।

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  8. कल्पना और हकीकत का अंतर्द्वन्द बाहर सुंदर लगा. बधाई आशा जी.

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  9. कल्पना और हकीकत में फर्क तो होता ही है .....सुन्दर अभिव्यक्ति

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