02 नवंबर, 2012

दीवानापन



प्यार भरा दीवानापन
कहाँ नहीं खोजा उसने
जब भी हाथ आगे बढ़ाया
मृग तृष्णा में फंसा पाया
गुमनाम जिंदगी जीते जीते
अकुलाहट बेचैन करे
मन एकाकी विद्रोह करे
साथ उसके कोइ न चले
बाहर वर्षा की बूंदे
अंतस में भभकती ज्वाला
सब लगने लगा छलावा
कैसे ठंडक मिल पावे
मन चाहा सब हो  पाए
खोना बहुत सरल है
पर पाना आसान नहीं
है गहरी खाई दौनों में
जिसे पाटना सरल नहीं
फासले बढ़ते जाते
फलसफे बनते जाते
अपने भी गैर नजर आते
कभी लगती फितरत दिमागी
या छलना किसी अक्स की
दीवानापन या आवारगी
हद दर्जे की बेबसी
बारिश कीअति  हो गयी
दीवानगी भी गुम हो गयी
आँखें नम हो कर रह गईं |
आशा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा रचना,,,,

    सभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  2. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  3. बहुत सुन्दर प्यार भरा दीवानापन... आभार

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  4. खाई बनने के पहले ही पाटने का काम शुरू कर देना चाहिए था...! एक बार खाई बन जाए.. फिर पाटना बहुत मुश्किल होता है...
    ~सादर !

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  5. बहुत खूब ! बहुत बढ़िया रचना ! आनंद आ गया !

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