20 मार्च, 2014

खेल खेल में




खेल खेल में मन उलझा
नई पुरानी यादों में
किसी ने दी खुशी
कुछ शूल सी चुभीं |
इसी चुभन ने भटकाया
खेल में व्यवधान आया
मित्रों ने भांप लिया
खेल रोक कर  समझाया |
पहले खेल फिर कुछ और
है बड़ी काम की बात
सफल जीवन में
 जीत का है यही  राज़़ |
अवधान किया केन्द्रित
खेल में व्यस्त हुआ
सोच ने  ली करवट
यादों में मिठास घुली |
है यह कैसा टकराव  
नहीं स्थाईत्व किसी में
जब उभर कर आता  
मन उद्वेलित हो  जाता |
खेल में जीत हार
एक लंबा सिलसिला हुआ
 विचारों का सैलाव आया
कविता का जन्म हुआ |
जब वर्तमान भी जुड़ने लगता
भाव तरंगित होते
शब्द प्रवाहित होते
सोचने को बाध्य करते |
क्या है यही कहानी
खेल खेल में
शब्दों के उछाल की
कविता के जन्म की |
आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-03-2014) को एक बरस के बाद फिर, बरसेगी रसधार ( चर्चा - 1557 ) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!

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    1. सूचना हेतु आभार सर |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. खेल में जीत हार
    एक लंबा सिलसिला हुआ
    विचारों का सैलाव आया
    कविता का जन्म हुआ |

    वाकई यही कहानी है कविता के जन्म की ! बहुत सुंदर रचना ! बहुत खूब !

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  4. टिप्पणी हेतु धन्यवाद राजीव जी |

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