19 जुलाई, 2020

तेरी मेरी केमिस्ट्री

                                 जब भी तेरे दर  से गुजरे वादेसवा
 हाथों की मेंहदी की  महक साथ ले जाए
तेरी जुल्फों की हलकी सी  जुम्बिश भी
 मेरे मन को अपने साथ बाँध ले जाए |
तेरी यादों का फलसफा  है इतना बड़ा
 कहाँ से प्रारम्भ करूं कहाँ समाप्त करूं
मन को तृप्ति नहीं मिल पाती
जब तक उसे पूरा आत्मसात  न करूं |
 होती है अजीब सी हलचल
 मन के किसी कौने में
बेचैनी बढ़ती जाती है
 कैसे उसे संतुष्ट करूं |
 तेरे आने की खबर  मिलते  ही
निगाहें दरवाजे से हटने का नाम नहीं लेतीं
पर जब नहीं आने का 
कोई बहाना खोज लिया जाता  
फोन की घंटी बजते  ही 
 गहरी निराशा होती |
दुखी मन  का हाल न पूंछो
किससे व्यथा अपनी कहूं
जो सोच नहीं पाते दिल की नजाकत को
 उनसे दिल का हाल  बयान कैसे  करूं |
मुझे कोई मार्ग  नहीं मिलता
 अपनी बेचैनी छिपाने का  
है  दिल मेरा  खुली किताब का एक पन्ना
फिर भी क्या सब पढ़ कर समझ न पाएगे ?
क्या कोई हल नहीं मिलेगा
तुम्हें मुझे  समझने का 
इस दूरी को पाटने का
तेरी मेरी केमिस्ट्री जानने का |

आशा

4 टिप्‍पणियां:

  1. हल ज़रूर मिलेगा इस केमिस्ट्री को समझाने और समझाने का ! क्या बात है आजकल बडी शानदार जानदार रचनाएं लिख रही हैं ! बहुत सुन्दर !

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  2. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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