28 जुलाई, 2020

पदचाप तुम्हारी


                                      पदचाप तुम्हारी धीमीं सी
कानों में रस घोले
था इंतज़ार तुम्हारा ही
यह झूट नहीं है प्रभु मेरे |
जब भी चाहा तुम्हें बुलाना
अर्जी मेरी स्वीकारी तुमने
अधिक इंतज़ार न करवाया
धीरे से पग धरे कुटिया में |
तुम्हारी हर आहट की है पहचान मुझे  
कितनी भी गहरी नींद लगी हो
या  व्यस्तता रही  हो
तुम्हारी पदचाप का अनुसरण है प्रिय मुझे |
इसे मेरी  भक्ति  कहो  
या जो चाहे नाम दो
 इससे  मुझे वंचित न करो
 यही  है  मेरा अनुराग तुमसे |
चाहे कोई  इसे अंधभक्ति कहे
 है मेरे जीने का संबल यही
अपना सेवक जान मुझे
चरणों में दो स्थान मुझे |
हूँ एक छोटा सा व्यक्ति
तुम्हारे चरणों की धुल बराबर
यही  समझ स्वीकार करो
 मेरा बेड़ा पार करो |
आशा


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-07-2020) को     "कोरोना वार्तालाप"   (चर्चा अंक-3777)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. भक्ति भाव में रची बसी बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बढ़िया रचना !

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  4. आदरणीया मैम,
    भक्ति भाव से भरी हुई सुन्दर प्रार्थना।भगवान जी हम सब को विनती स्वीकारें औए हमारे बुलाने पर हमारे पास आ जाएं।

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