19 नवंबर, 2020

स्वप्नों में जीना है सही नहीं

 

 

 


                                                          वह दिन बहुत सुन्दर दिखता है

जहां बिखरी हों रंगीनियाँ अनेक

पर होता कोसों दूर वास्तविकता से

मन को यही बात सालती है |

मनुष्य क्यों स्वप्नों में जीता है

वास्तविकता से परहेज किस लिए

क्या कठोर धरातल रास नहीं आता

यही सोच सच्चाई से दूरी बढाता |

जब भी जिन्दादिली से  जीने की इच्छा  होती 

कुठाराघात हो जाता  अरमानों पर

है यह कैसी विडम्बना  किसे दोष दिया जाए

मन को संयत  रखना है कठिन |

 सीमा का उल्लंघन हो यह भी तो है अनुचित

कितनी वर्जनाएं सहना पड़ती हैं

घर की समाज की और स्वयं के मन की

तब  भी तो सही आकलन नहीं हो पाता|

कहावत है आसमान  से गिरे खजूर पर अटके

केवल स्वप्नों में जीना है धोखा देना खुद को

क्या नहीं है  यह सही तरीका सच्चाई से मुंह मोड़ने का

वही हुआ सफल जिसने ठोस धरती पर पैर रखे |

आशा

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बेशक ठोस धरातल पर पैर रख कर ही चलना चाहिए ! लेकिन उसमें कल्पना के मनोरम रंग भरने में क्या बुराई है ! जब कल्पना मधुर होगी तो जीवन भी मधुर लगाने लगेगा ! सार्थक सृजन !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. सुप्रभात |टिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |

      हटाएं
    2. सुप्रभात |टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

      हटाएं
  3. स्वप्न जीवन को नई दिशा देते हैं
    उत्कृष्ट रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

    जवाब देंहटाएं
  5. टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  6. वास्तविकता की धरातल पर उकेरी गई रचना हृदयस्पर्शी है - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  7. सच्चाई का ठोस धरातल जीवन में नीरसता भरता है सरसता के लिए स्वप्नों में जीता है इंसान... बहुत सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: