14 जनवरी, 2021

=बालिका से बनी गृहणी

 बनती सवरती बिंदास रहती 

गृह कार्य में रूचि न रखती 

जब छूटा  बाबुल  का अंगना 

तब मुंह बाए खड़ी थीं समस्याएँ अनेक |

जिधर देखो यही कहा जाता 

कुछ भी तो आता नहीं

 कैसे घर चला पाएगी 

किस किसके मुंह पर ताला लगाती | 

पर वह हारी नहीं 

धीरे से  कब कुशल गृहणी में बदली 

जान नहीं पाई  |

जानना चाहते हो  कैसे ?

यह था लगन का चमत्कार 

जिस कार्य को करने को सोचा 

जी जान लगा दी उसने 

कभी सफल् हुई कभी हारी 

\पर हिम्मत नहीं हारती  |

यही एक गुण था उसमें  ऐसा 

जहां जाती  सफलता उसके कदम चूमती 

जिससे सभी क्षेत्रों में हुई सफल 

कुशल गृहणी कहलाई |

आशा 





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