15 जून, 2021

मेरी आँखों में बसी है


 

 मेरी आँखों में बसी 

तेरी मनमोहनी सूरत

कितनी भोलीभाली

मासूम सी दीखती |

क्या मन भी तेरा

है वैसा ही कोमल

सीरत है मीठी सी

आनन पर भाव स्पष्ट दीखते |

बदन तेरा नाजुक

खिलती  कली सा है

निगाहें नहीं ठहरतीं

अभिनव सौन्दर्य पर  |

यह सौगात मिली कहाँ से

 ईश्वर की कृपा द्रष्टि रही

क्या तुझ पर ?

या कोई पुन्य कार्य किये थे

पूर्व जन्म में जो यह

पुरस्कार मिला बदले में |

तनिक भी गरूर नहीं  

है सौम्य सुशील सुघड़

तेरे इन  गुणों  पर

 है न्योछावर मेरा मन |

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०६-२०२१) को 'स्मृति में तुम '(चर्चा अंक-४०९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

      हटाएं
  2. कौन फ़िदा न होगा इतने मासूम सौन्दर्य पर ! बहुत सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

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