03 अगस्त, 2021

विचलन


 

नेत्र बंद करते ही रोज रात में

सपने आते रहते जाते रहते

 मन को विचलित करते  रहते   

 दहशत बन कर छा जाते |

कितने  किये टोटके कई बार

पर कोई हल न निकला

जीवन पर प्रभाव  भारी  हुआ

सुख की नींद  अब स्वप्न हुई |

कितनी बेचैनी में कटती रातें

मेरा कल्पना से बाहर थीं

प्रातःनयन खुलते ही वे स्वप्न

  अपना प्रभाव छोड़ कोसों दूर चले जाते|

 किसी ने कहा चाकू सिरहाने  रखो

उसे साफ कर तकिये के नीचे रखा

फिर भी उनसे  पीछ न छूटा

जीना मुश्किल हुआ |

डर ऐसा बैठा मन  मस्तिष्क में

पलक झपकाने का साहस न हुआ

जाने कितने उपाय पूंछे सब से

 रातें कटने लगीं जागरण में |

ईश्वर भजन से कोई अच्छी दवा न मिली

अब रोज रात हाथ जोड़ कर

ईश वन्दना करता हूँ स्वप्नों से  मुक्ति मिले  

मन की शान्ति के लिए दुआ मांगता हूँ |

आशा

15 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०५-०८-२०२१) को
    'बेटियों के लिए..'(चर्चा अंक- ४१४७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार रवीन्द्र जी |

      हटाएं
  3. जीवन में शांति बहुत जरूरी है। खूबसूरत कविता।

    जवाब देंहटाएं
  4. कितने किये टोटके कई बार
    पर कोई हल न निकला
    जीवन पर प्रभाव भारी हुआ
    सुख की नींद अब स्वप्न हुई |

    हृदयस्पर्शी रचना...🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  5. नींद के साथ सपनों का चोली दामन का साथ होता है ! इनसे क्या विचलित होना ! नींद खुलते ही टूट भी जाते हैं ! जो खुद इतने क्षणिक और अस्थाई हों वो दूसरों का क्या बुरा कर पायेंगे ! सुबह के साथ सपनों को भी भूल जाना चाहिए !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: