23 जुलाई, 2011

विश्वास किस पर करें




है दिखावे से भरपूर दुनिया
कुछ स्पष्ट
 नजर नहीं आता
अतिवादी अक्सर मिलते हैं
कोइ तथ्य नजर नहीं आता
आँखें तक धोखा खा जाती हैं
अंजाम नजर नहीं आता |
जो दिखाई देता है
कभी सत्य 
तो कभी असत्य रहता 
जो कुछ सुनते हैं
उस पर विश्वास करें कैसे
आखों देखी कानों सुनी
बातों पर भी
विश्वास नहीं होता |
समाचार पत्रों के आलेख भी
अक्सर होते एक पक्षीय
और अति रंजित
जानकारी निष्पक्ष कम ही देते हैं
आक्षेप एक दूसरे पर
और छींटाकशी
इसके सिवाय और कुछ नहीं |
हैं जाने कैसे वे लोग
कितनी ही कसमें खाईं
वादे किये कसमें दिलाईं
पर उन पर भी 
खरे नहीं उतारे
विश्वास किस पर कैसे करें
यह तक स्पष्ट नहीं है 
आँखें धुंधला गईं हैं
शब्द मौन हैं
वहाँ  भी भ्रम ही 
  नजर आता है|
है यह कैसा चलन
आम जनता की
कोइ आवाज नहीं है
हर ओर दिखावा होता है
सत्य कुछ और होता है

आशा

22 जुलाई, 2011

वर्षा की पहली फुहार


वर्षा की पहली फुहार
कुछ इस तरह पडी चहरे पर
स्पंदन हुआ ऐसा
लगा आगई बहार बंजर खेतों में |
चमक द्विगुणित हुई
उस मखमली अहसास से
तेजी से हाथ चलने लगे
बोनी करने की आस में |
है कितना सचेत वह
यदि पहले से जानते
कई हाथ जुड़ गए होते
कार्यों के आबंटन में |
अभी भी देर नहीं हुई है
मिल बाँट कर सब होने लगा है
वह स्वप्न में खो गया है
अच्छी फसल की आस में |
जब हरियाली होगी
संतुष्टि का भाव होगा
ना घूमना पडेगा उसे
बहारों की तलाश में |

आशा


19 जुलाई, 2011

है मौन का अर्थ क्या




तुम मौन हो ,
निगाहें झुकी हैं
थरथराते अधर
कुछ कहना चाहते हैं |
प्रयत्न इतना किस लिए
मैं गैर तो नहीं
सुख दुःख का साथी हूँ
हम सफर हूँ |
दो मीठे बोल यदि ना बोले
सीपी से सम्पुट ना खोले
तब तो ये अमूल्य पल
यूं ही बीत जाएंगे |
मैं समझ नहीं पाता
मौन की भाषा
कुछ सोच रहा हूँ
चूडियों की खनक सुन |
है शायद यह अंदाज
प्यार जताने का
फिर भी दुविधा में हूँ
है मौन का अर्थ क्या |
आशा

15 जुलाई, 2011

वे ही तो हैं



कोरी स्लेट पर ह्रदय की

कई बार लिखा लिख कर मिटाया

पर कुछ ऐसा गहराया

सारी शक्ति व्यर्थ गयी

तब भी न मिट पाया |

कितने ही शब्द कई कथन

होते ही हैं ऐसे

पैंठ जाते गहराई तक

मन से निकल नहीं पाते |

बोलती सत्यता उनकी

राज कई खोल जाती

जताती हर बार कुछ

कर जाती सचेत भी |

कहे गए वे वचन

शर शैया से लगते हैं

पहले तो दुःख ही देते हैं

पर विचारणीय होते हैं |

गैरों की कही बात

शायद सही ना लगे

पर अपनों की सलाह

गलत नहीं होती |

शतरंज की बिछात पर

आगे पीछे चलते मोहरे

कभी शै तो

कभी मात देते मोहरे |

फिर बचने को कहते मोहरे
पर कुछ होते ऐसे

होते सहायक बचाव में

वे ही तो हैं,

जो अपनों की पहचान कराते |

14 जुलाई, 2011

धीरज छूटा जाए




रिमझिम वर्षा की फुहार
अंखियों से बहती अश्रुधार
देखती विरहणी राह
प्रिय के आगमन की |
वे नहीं आए 
नदी नाले पूर आए
कैसे मन सम्हल पाए
बार बार बहका जाए |
बादलों का गर्जन
करता विचलित उसे
दामिनी दमके
चुनरी हवा में उड़ी जाए |
गहन उदासी छाए
धीरज छूटा जाए
पर ना हुई आहट
प्रीतम के आगमन की |
द्वारे पर टकटकी लगाए
वह सोचती शायद
मन मीत आ जाए
इन्तजार व्यर्थ ना जाए |
आशा

12 जुलाई, 2011

ऐसा क्यूँ होता है


है कारण क्या परेशानी का

उदासी की महरवानी का

गर्मीं में अहसास सर्दी का

गहराती नफरत में छिपे अपनेपन का |

कभी आकलन न किया

जो कुछ हुआ उसे भुला दिया

फिर भी कहीं कुछ खटकता है

मन बेचारा कराहता है |

है कारण क्या

चाहता भी है जानना

पर दूर कहीं उससे

चाहता भी है भागना |

गहरी निराशा

पंख फैलाए आती है

मन आच्छादित कर जाती है

रौशनी की किरण कोइ

दूर तक दिखाई नहीं देती |

सिहरन सी होने लगती है

विश्वास तक

डगमगा जाता

मन आक्रान्त कर जाता |

क्या खोया कितना खोया

यह महत्त्व नहीं रखता

बस एक ही विचार आता है

क्यूँ होता है ऐसा

उसी के साथ हर बार |

आशा

11 जुलाई, 2011

तेरा प्यार




तेरा प्यार दुलार

भूल नहीं पाती

जब पाती नहीं आती

मुझे बेचैन कर जाती |

तेरे प्यार का

कोइ मोल नहीं

तू मेरी माँ है

कोई ओर नहीं |

आज भी

रात के अँधेरे में

जब मुझे डर लगता है

तेरी बाहें याद आती हैं |

कहीं दूर स्वप्न में

ले जाती हैं |

फिर सुनाई देती है

तेरी गाई लोरियाँ

आँखें बंद करो कहना

मेरा झूठमूठ उन्हें बंद करना |

सारा डर

भाग जाता है

जाने कब सो जाती हूँ

पता ही नहीं चलता |

आशा