01 सितंबर, 2011

कुछ कदम


कुछ कदम वह चले
और कुछ तुम भी चलो
है इतनी लम्बी डगर
फासले कुछ तो कम होंगे |
तुम्हारी ये नादानियां
जी का जंजाल हों गईं
समझौता विचारों में
किस तरह हों पाएगा |
यदि चल पाए दौनों
चार कदम भी साथ साथ
जिन्दगी का बुरा हाल
ऐसा न हों पाएगा |
जब भी वह झुके
और तुम ना झुक पाओ
बनती बात बिगड़ जाएगी
फिर कुछ भी न हों पाएगा |
आशा

31 अगस्त, 2011

माँ की ममता


माँ ने ममता से
पलकों पर बिठाया तुम को
हो तुम क्या
अहसास दिलाया तुम को |
हर पल तुम्हे याद किया
पलकों को छूते ही
अहसास तुम्हारा पा
बाहों में झुलाया तुमको |
जब बाहर पैर रखा
अपना अस्तित्व खोजा
तुमने पलट कर न देखा
कुछ जानना न चाहा |
यह बेरुखी ऐसा व्यवहार
ह्रदय में गहरे जख्म कर गया
तुम नहीं जानतीं
तुमने कितना रुलाया उसको |
उसूलों पर खरी नहीं उतरीं
ना ही कभी सोचा
होती है ममता क्या
और उसकी अपेक्षाएं क्या ?
उसके मन की पीड़ा को
अभी न जान पाओगी ,
समझोगी तब ,
जब स्वयं माँ बनोगी |
आशा

30 अगस्त, 2011

श्री अन्ना हजारे


अपने हृदय की बात उसने ,
इस तरह सब से कही |
सैलाब उमढ़ा हर तरफ से ,
मंच की प्रभुता रही |
ऊंचाई कोइ छू न पाया ,
आचरण ऐसा किया |
सम्मोहनात्मक भावनाओं से ,
भरम डिगने ना दिया |
अपनी बातों पर अडिग रहा ,
अहिंसा पर जोर दिया |

आशा



28 अगस्त, 2011

यह पड़ाव कब पार हो


जीवन की लंबी डगर पर
देखे कई उतार चढ़ाव
अनेकों पड़ाव पार किये
फिर भी विश्वास अडिग रहा |
कभी हार नहीं मानी
जीवन लगा न बेमानी
जटिल समस्याओं का भी
सहज निदान खोज पाया |
आशा निराशा के झूले में
भटका भी इधर उधर
कभी सफलता हाथ लगी
घर असफलता ने घेरा कभी |
अनेकों बार राह भूला
फिर उसे खोज आगे बढ़ा
ऊंची नींची पगडंडी पर
जीवन यूँ ही चलता रहा |
जीवन इतना दूभर होगा
इस अंतिम पड़ाव पर
 कभी सोचा न था
ना ही कल्पना की इसकी |
आज हूँ उदास ओर बेचैन
यह राह कब समाप्त हो
कर रहा हूँ इन्तजार
यह पड़ाव कब पार हो |

आशा




27 अगस्त, 2011

सादगी


थी नादान बहुत अनजान
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |

आशा





25 अगस्त, 2011

क्या पाया


इंसान का इंसान से यह बैर कैसा
सब जान कर अनजान बना रहता
यूं वैमनस्य लिए कब तक जियेगा
आज नहीं तो कल
सत्य उजागर होगा |
बिना बैर किये जो जी लिया
कुछ तो अच्छा किया
जिंदगी नासूर बनने न दी
चंद क्षण खुशियों के भी जिया |
कुछ नेक काम भी किये
जो जिंदगी के बाद भी रहे |
जिसने नज़र भर देखा उन्हें
उसे भरपूर सराहा याद किया |
जिसके ह्रदय में बैर पनपा
कुछ नहीं वह कर पाया
खुद जला उस आग में
दूसरों को भी जलाया उसी में |
आत्म मन्थन तक न किया
आत्म विश्लेषण भी न कर पाया
बस मिट गया यह सोच कर
क्या चाहा था क्या पाया ?

आशा



23 अगस्त, 2011

जब आँख खुली


उस दिन जब आँख खुली
प्रथम किरण सूरज की
जैसे ही चेहर पर पड़ी
दमकने लगा 
वह  और अधिक |
आँखें झुकी वह शरमाई
उसे देख कर सकुचाई
खोजी नजर जब उधर गयी
प्यार भरे नयनों से देखा
धीमें  से वह मुस्काई |
जो संकेत नयनों से मिले
मन की भाषा पढ़ पाया
पहले प्यार की पहली सुबह
और उष्मा उसकी
अपने मन मैं सजा पाया |

आशा