05 सितंबर, 2011

हूँ परेशान



न जाने कैसी कहानी थी

कुछ सोचा मनन किया |

वह मन की बात न कह पाई

बस यही गुनाह किया |

यही सोच कर हूँ परेशान

कि ऐसा कैसे किया |

जंगल की आग का अनुभव

उसने कैसे न किया |

हो कर चंचल प्याला छलकता

वह मुखर बनी रहती |

तब कभी उदास न रह पाती

मन पर बोझ न रखती |

कोमल भावनाओं से कभी

यूं न खेलती रहती |
अपने अछूते विचारों पर

सदा विहसती रहती |

04 सितंबर, 2011

शिक्षक दिवस पर कुछ विचार


शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है |पूरे जीवनकाल में न जाने कितने लोगों से हम कुछ न कुछ सीखते हैं |शिक्षक एक मार्ग दर्शक होता है जो विद्यार्थी को अंधकार से प्रकाश की और ले जाता है |
वह एक ऐसी मशाल है जो जल कर अन्य सब का पथ प्रदर्शन करती है |शिक्षक यदि विद्वान हो और व्यक्तित्व का धनी हो तो अपना ऐसा प्रभाव छोड़ता है कि उसे जीवन पर्यंत भुलाया नहीं जा सकता |
शिक्षक तो जन्म जात होता है जो दुनिया के प्रलोभनों से दूर रह करखुद शिक्षा ग्रहण करता है तथा मुक्त हस्त से
दूसरों को बांटता है |इसे ही अपना लक्ष्य और कर्तव्य मान कर संतुष्ट होता है |शिक्षा का व्यवसाईकरण
करने वाले लोग शिक्षक नहीं हैं केवल व्यवसाई हैं |अच्छा शिक्षक सदा याद किया जाता है |

लीजिए हार्दिक शुभ कामनाएं आज शिक्षक दिवस पर :-
कुछ पंक्तियाँ देखिये शायद अच्छी लगे |

महाकाल की नगरी उज्जैनी
राजा विक्रम की उज्जैनी
द्वापर में थी शिक्षा स्थली
कृष्ण और सुदामा की |
दूर दूर से बच्चे आते थे
गुरु कुल में रह शिक्षा पाते थे
आश्रम था गुरु सांदीपनी का
था नहीं भेद भाव जहां |
ऊच नीच और गरीब अमीर में
अंतर कहीं नहीं दीखता था
था सद भाव और प्रेम इतना
मिल जुल कर रहते थे सब |
लिखते थे जिस पट्टिका पर
धोते थे उसे तलैया में
वह क्षेत्र आज भी
अंक पात कहलाता है
द्वापर की याद दिलाता है |
आशा


02 सितंबर, 2011

कई सौपान


है जीवन का नाम

एक एक सौपान चढना

साथ किसी का मिलते ही

बढ़ने की गति द्रुत होना |

इस दुनिया में आते ही

ममता मई गोद मिलती

माँ के प्यार की दुलार की

अनमोल निधि मिलती |

आते ही किशोरावस्था

कोइ होता आदर्श उसका

अनुकरण कर जिसका

अपना मार्ग प्रशस्त करता |

होती कठिनाई तरुणाई में

फंसता जाता दुनियादारी में

कोल्हू के बैल सा जुता रहता

खुद को स्थापित करने मैं |

यदि भूले से पैर फिसलता

गर्त में गिरता जाता

फिर सम्हल नहीं पाता

फँस कर रह जाता मकड़जाल में |

जीवन के अंतिम सौपान पर

जैसे ही कदम रखता

भूलें जो उससे हुईं

प्रायश्चित उनका करता |

फिर दिया जलाता वर्तिका बढाता

जब स्नेह समाप्त होता

हवा के झोके से लौ तेज होती

फिर भभक कर बुझ जाती |

फिर न कोइ सौपान होता

ऊपर जाने के लिए

उसके जीवन की कहानी

बस यूँ ही समाप्त होती |

आशा

प्रार्थना है


हार्दिक शुभ कामनाए इस शुभ अवसर पर

'प्रार्थना है '


हें गण नायक सिद्धि विनायक
हर वर्ष की तरह इन्तजार तुम्हारा
बहुत किया था
इस वर्ष भी आए अच्छा किया |
तुमसे मिलता बल
हर कार्य सिद्ध करने का
कुछ नया करने का
आ कर मनोबल बढ़ाया
अच्छा किया |
रिद्धि सिद्धि के स्वामी
तुम्हारा आशीष पा कर
जो कुछ भी किया जाता है
शुभ लाभ देख कर
मन सुख पाता है |
पहले की तरह
सुख आए
कामना पूर्ण हो जाए
है यही प्रार्थना आज भी |
सब को सुखी करना
देश के सारे विघ्न हरना
मनो कामना पूर्ण हों
ऐसा आशीष देना |


आशा




01 सितंबर, 2011

कुछ कदम


कुछ कदम वह चले
और कुछ तुम भी चलो
है इतनी लम्बी डगर
फासले कुछ तो कम होंगे |
तुम्हारी ये नादानियां
जी का जंजाल हों गईं
समझौता विचारों में
किस तरह हों पाएगा |
यदि चल पाए दौनों
चार कदम भी साथ साथ
जिन्दगी का बुरा हाल
ऐसा न हों पाएगा |
जब भी वह झुके
और तुम ना झुक पाओ
बनती बात बिगड़ जाएगी
फिर कुछ भी न हों पाएगा |
आशा

31 अगस्त, 2011

माँ की ममता


माँ ने ममता से
पलकों पर बिठाया तुम को
हो तुम क्या
अहसास दिलाया तुम को |
हर पल तुम्हे याद किया
पलकों को छूते ही
अहसास तुम्हारा पा
बाहों में झुलाया तुमको |
जब बाहर पैर रखा
अपना अस्तित्व खोजा
तुमने पलट कर न देखा
कुछ जानना न चाहा |
यह बेरुखी ऐसा व्यवहार
ह्रदय में गहरे जख्म कर गया
तुम नहीं जानतीं
तुमने कितना रुलाया उसको |
उसूलों पर खरी नहीं उतरीं
ना ही कभी सोचा
होती है ममता क्या
और उसकी अपेक्षाएं क्या ?
उसके मन की पीड़ा को
अभी न जान पाओगी ,
समझोगी तब ,
जब स्वयं माँ बनोगी |
आशा

30 अगस्त, 2011

श्री अन्ना हजारे


अपने हृदय की बात उसने ,
इस तरह सब से कही |
सैलाब उमढ़ा हर तरफ से ,
मंच की प्रभुता रही |
ऊंचाई कोइ छू न पाया ,
आचरण ऐसा किया |
सम्मोहनात्मक भावनाओं से ,
भरम डिगने ना दिया |
अपनी बातों पर अडिग रहा ,
अहिंसा पर जोर दिया |

आशा