01 जनवरी, 2012

शब्द

शब्दों का दंगल आस पास 
अस्थिर करता मन कई बार 
दंगल का कैसे ध्यान धरें 
आकलन  शब्दों का कौन करे |
नहीं  सरल शब्दों को तोलना 
उन  वाणों से बच रहना
सत्य असत्य की पहिचान कर 
सही  अर्थ निकाल पाना |
कभी होता शब्द भी उदास 
देख   अपनी अवहेलना
है वह उस तारे सा 
जो टूटा खंड खंड होगया 
जाने  कहाँ विलुप्त हो गया |
उस शब्द का है महत्त्व अधिक 
जो कुछ बजन रखता हो 
जिस पर कोई अमल करे 
मूल्य  उसका समझ सके |
अनर्गल कहे गए शब्द 
बदलते  रहते शोर में 
और खो जाते भीड़ में 
सिमट जाते किसी आवरण में |
अनेक  शब्द अनेक अर्थ
कैसे ध्यान सब का रहे
हैं  अनेक तारे अर्श में
गिनने की कोशिश कौन करे |
आशा











29 दिसंबर, 2011

आने को है नया साल

आने को है नया साल 
कुछ नया लिए 
कल सुबह आए
खुशियों की सौगात लिए |
तैयारी  की स्वागत की 
जागे सारी रात 
अनोखा उत्सार जगा 
नया साल कुछ खास  लगा |
स्वप्नों के तानेबाने से 
एक नया संसार बुना 
जहां न हो भेदभाव 
हो  भाई चारा बेमिसाल |
हर ओर अमन चैन फैले 
प्रेममय सब जग लगे
तभी तो आने वाला कल 
आएगा  उज्वल भविष्य लिए |
संभावनाएं  होंगी अनेक 
लिए उत्साह हर क्षेत्र में 
है कामना आए यह साल 
समृद्धि की मशाल लिए |
आशा 







27 दिसंबर, 2011

सुगंधित बयार

है प्रेम क्या उसका अर्थ क्या
वह हृदय की है अभिव्यक्ति
या शब्दों का बुना जाल
या मन में उठा एक भूचाल |
होती आवश्यक संवेदना
आदर्श विचार और भावुकता
किसी से प्रेम के लिए
कैसे भूलें त्याग और करुना
है यह अधूरा जिन के बिना |
कुछ पाना कुछ दे देना
फिर उसी में खोए रहना
क्या यह प्यार नहीं
लगता है यह भी अपूर्ण सा
कब आए किस रूप में आए
है कठिन जान पाना |
जिसने इसे मन में सजाया
इसी में आक्रान्त डूबा
मन में छुपा यही भाव
नयनों से परिलक्षित हुआ |
रिश्तों की गहराई में
दाम्पत्य की गर्माहट में
यदि सात्विक भाव न हो
 तब सात फेरे सात वचन
साथ जीने मरने की कसम
लगने लगते सतही
या मात्र सामाजिक बंधन |
जिसके हो गए उसी में खो गए
रंग में उसी के रंगते गए
क्या यह प्यार नहीं ?
यह है बहुआयामी
और अनंत  सीमा जिसकी
यह तो है सुगन्धित बयार सा
जिसे बांधना सरल नहीं |

25 दिसंबर, 2011

सांता क्लाज


हे सांता हो तुम कौन
कहाँ से आए
बच्चों से तुम्हारा कैसा नाता
वे पूरे वर्ष राह देखते
मिलने को उत्सुक रहते |
क्या नया उपहार लाये
झोली में झांकना चाहते
बहुत प्रेम उनसे करते हो
वर्ष में बस एक ही बार
आने का सबब क्यूं न बताते |
बहुत कुछ दिया तुमने
प्यार दुलार और उपहार
सभी कुछ ला दिया तुमने
सन्देश प्रेम का दिया तुमंने |
तभी तो हर वर्ष तुम्हारा
इन्तजार सभी करते हैं
आवाज चर्च की घंटी की सुन
खुशी से झूम उठते हैं |
हैप्पी क्रिसमस ,मैरी क्रिसमस
बोल गले मिलते हैं
तुम्हारे आगमन की खुशी में
गाते नाचते झूमते झामते
केक काट खाते मिल बाँट
मन से जश्न खूब मनाते |
आशा





23 दिसंबर, 2011

अंदाज अलग जीने का

हूँ स्वप्नों की राज कुमारी

या कल्पना की लाल परी

पंख फैलाए उडाती फिरती

कभी किसी से नहीं डरी |

पास मेरे एक जादू की छड़ी

छू लेता जो भी उसे

प्रस्तर प्रतिमा बन जाता

मुझ में आत्म विशवास जगाता |

हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ

हाथ डालती हूँ जहां

कदम चूमती सफलता वहाँ |

स्वतंत्र हो विचरण करती

छली न जाती कभी

बुराइयों से सदा लड़ी

हर मानक पर उतारी खरी |

पर दूर न रह पाई स्वप्नों से

भला लगता उनमें खोने में

यदि कोइ अधूरा रह जाता

समय लगता उसे भूलने में |

दिन हो या रात

यदि हो कल्पना साथ

होता अंदाज अलग जीने का

अपने मनोभाव बुनने का |

आशा

20 दिसंबर, 2011

सुकून

जब भी मैंने मिलना चाहा

सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया

समाचार भी पहुंचाया

फिर भी उत्तर ना आया |

ऐसा क्या कह दिया

या की कोइ गुस्ताखी

मिल रही जिसकी सजा

हो इतने क्यूँ ख़फा |

है इन्तजार जबाव का

फैसला तुम पर छोड़ा

हैं दूरियां फिर भी

फरियाद अभी बाकी है |
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता

कुछ तो कम होने दो

है मन में क्या तुम्हारे

मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |

हूँ बेचैन इतना कि

राह देखते नहीं थकता

जब खुशिया लौटेंगी

तभी सुकून मिल पाएगा |

आशा

18 दिसंबर, 2011

पाषाण या बुझा अंगार


है कैसा पाषाण सा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा