01 जून, 2012

यादें भर शेष रहा गईं

 सपनों की चंचलता बहुत कुछ
सागर की उर्मियों सी
भुला न पाई उन्हें
कोशिश भी तो नहीं की |
बार बार उनका आना
हर बार कोई संदेशा लाना
मुझे बहा ले जाता
किसी अनजान दुनिया में |
उसी दुनिया में जीने  की ललक
बढ़ने लगती ले जाती  वहीँ
 अचानक एक ठहराव आया
 मन के गहरे सागर में |
फिर चली सर्द हवा
उर्मियों ने सर उठाया
आगे बढ़ीं टकराईं
पर हो हताश लौट आईं |
यह ठहराव बदल गया
समूंचे जीवन की राह
अब न कोई स्वप्न रहे
ना ही कभी याद आए |
भौतिक जीवन की
 जिजीविषा की
बेरंग होते  जीवन की
 यादें भर शेष  रह गईं |

आशा

29 मई, 2012

कैसा मोह कैसी माया


कहीं कुछ टूट गया
हुई चुभन इतनी
सुकून भी खोने लगा
है उदास
 नन्हों की बाँहें थामें
डगर लंबी पार की
कठिन वार जीवन में झेले
उनको ही सवारने में
क्षमता से अधिक ही किया
जो भी संभव हो पाया
क्या रह गयी कमीं
उनकी परवरिश में
जो दो शब्द भी
मुंह से ना निकले
तपस्या के बदले में
है आज घरोंदा खाली
जाने क्यूं मन भारी
अहसास नितांत अकेलेपन का
मन को टटोल रहा
है कैसा मोह कैसी माया 
चोटिल उसे कर गया |


26 मई, 2012

जीवन एक लकीर सा


जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
 बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
 बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई  मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला
लगा जीवन एक लकीर सा
जिस पर लोग चलते जाते
लीक से हटाना नहीं चाहते
रास्ता कभी सीधा तो कभी
टेढ़ी मेढ़ी  पगडंडी सा
 सांस खुली हवा में लेते
कभी घुटन तंग गलियों की सहते
दृष्टिकोंण फिर भी सबका
एकसा नहीं होता
दृश्य वही होता
पर प्रतिक्रियाएँ भिन्न सब की
लेते दृश्य उसी रूप में
जो मन स्वीकार कर पाता
लकीर जिंदगी की
कहाँ से हुई प्रारम्भ
और कहां  तक जाएगी
जान नहीं पाया
है छोर कहाँ उसका
समझ नहीं पाया |

आशा

22 मई, 2012

एक अहसास


बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में  ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी  रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही  कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील  लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती 
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या  सत्य हो पाएगा
 वह दृश्य  कभी |

19 मई, 2012

सीमेंट के इस जंगल में


सीमेंट के इस जंगल में
चारों ओर दंगल ही दंगल
वाहनों की आवाजाही
भीड़ से पटी सड़कें
घर हैं या मधुमक्खी के छत्ते
अनगिनत लोग रहते
एक ही छत के नीचे
रहते व्यस्त सदा
रोजी रोटी के चक्कर में
आँखें तरस गयीं
हरियाली की एक झलक को
कहने को तो पेड़ लगे हैं
पर हैं सब प्लास्टिक के
हरे रंग से पुते हुए
दिखते सब असली से
नगर सौन्दरीकरण के नाम पर
जाने कितना व्यय हुआ
पर वह बात कहाँ
जो है प्रकृति के आंचल में
सांस लेने के लिए भी
सहारा कृत्रिम वायु का 
 ठंडक के लिए सहारा
 कूलर और ए.सी. का
है आज की जीवन शैली
इन बड़े शहरों की
सीमेंट सरियों से बने
इस जंगल के घरोंदों की
और वहा  रहने वालों की |
आशा


17 मई, 2012

यूँ ही जिए जाता हूँ

दरकते रिश्तों का 
कटु अनुभव ऐसा 
हो कर मजबूर 
उन्हें साथ लिए फिरता हूँ 
है केवल एक दिखावा 
दिन के उजाले में 
अमावस्या की रात का 
आभास लिए फिरता हूँ 
इस टूटन की चुभन 
और गंध पराएपन की 
है गंभीर इतनी 
रिसते घावों को 
साथ सहेजे रहता हूँ 
नासूर बनते जा रहे 
इन रिश्तों की 
खोखली इवारत की 
सूची लिए फिरता हूँ
स्पष्टीकरण हर बात का 
देना आदत नहीं मेरी 
गिले शिकवों के लिए भी 
बहुत देर हो गयी 
बड़ी बेदिली से 
भारी मन से 
उन सतही रिश्तों को 
सहन करता हूँ 
हूँ बेजार बहुत
पर यूँ ही जिए जाता हूँ |
आशा

14 मई, 2012

नीड़

वृक्ष पर एक घोंसला 
था कभी गुलजार 
कहीं से एक पक्षी आया 
चौंच डाल उसमें 
नष्ट उसे करना चाहा 
पर वह चूक गया 
असफल रहा 
चिड़िया ने आवाज उठाई 
चौच मार आहात किया 
उसे  बहुत भयभीत किया 
वह डरा या थी मजबूरी 
वह चला गया 
नीड़ देख आहात हुई 
चिंता में डूबी सोच रही 
क्यूं ना इसे इतना 
मजबूत बनाऊं 
फिर से कोई क्षति ना हो
आने वाली पीढ़ी इसे
 और अधिक मजबूती दे 
 कभी ना  हो  नुकसान  इसे
वह तो दुनिया छोड़ गयी 
संताने लिप्त निजी स्वार्थ में 
आपस में लडने मरने लगीं
 चौच मारती आहात करतीं 
पर नीड़ की चिंता नहीं
भूले अपनी जन्म स्थली 
माँ की नसीहत भी भूले 
कई सुधारक आये भी 
पर कुछ ना कर पाए 
आज भी वह लटका है
 जीर्ण क्षीण अवस्था में
उसी वृक्ष की टहनी पर |
आशा