सारी रंगत गुम हो गयी
कारण किसे बताए
मंहगाई असीम हो गयी
सारा राशन हुआ समाप्त
मुंह चिढाया डिब्बों ने
पैसों का डिब्बा भी खाली
उधारी भी कितनी करती
वह कैसे घर चलाए
बदहाली से छूट पाए
मंहगाई का यह आलम
जाने कहाँ ले जाएगा
और न जाने कितने
रंग दिखाएगा
दामों की सीमा पार हुई
कुछ भी सस्ता नहीं
पेट्रोल की कीमत बढ़ी
कीमतें और बढानें लगीं
है यह ऐसी समस्या
सुरसा सा मुंह है इसका
थमने का नाम नहीं लेती
और विकृत होती जाती
इससे कैसे जूझ पाएगी
मन को कितना समझाएगी
किसी की छोटी सी फरमाइश भी
दिल को छलनी कर जाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
इसकी मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |
आशा