07 अप्रैल, 2013

मन की पीर

अनाज यदि मंहगा हुआ ,तू क्यूं आपा खोय |
मंहगाई की मार से बच ना पाया कोय ||
 
कोई भी ना देखता , तेरे मन की पीर  |
हर वस्तु अब तो लगती ,धनिकों की जागीर ||

रूखा सूखा जो मिले ,करले तू स्वीकार |
उसमें खोज खुशी अपनी ,प्रभु की मर्जी जान ||
 
पकवान की चाह न हो ,ना दे बात को तूल |
चीनी भी मंहगी हुई ,उसको जाओ भूल ||

वाहन भाडा  बढ़ गया , इसका हुआ प्रभाव  |
भाव आसमा छु रहे ,लगता बहुत अभाव  ||

इधर उधर ना घूमना ,मूंछों पर दे ताव  |
खाली यदि जेबें रहीं ,कोइ न देगा भाव  ||

भीड़ भरे बाजार में ,पैसों का है जोर  |
मन चाहा यदि ना मिला , होना ही है बोर ||

आशा


05 अप्रैल, 2013

बोझिल तन्हाइयां

आँखों की आँखों से बातें 
ली जज्बातों की सौगातें
कुछ हुई आत्मसात
शेष बहीं आसुओं के साथ
अश्रु थे खारे जल से 
साथ  पा कर उनका 
हुई नमकीन वे भी 
यह अनुभव कुछ कटु हुआ 
वह भाप बन कर उड़ न सका 
हुई बोझिल तन्हाइयां 
मलिन मन मस्तिष्क हुआ 
धीरज कोई न दे पाया 
कटु सत्य सामने आया 
कितनी बार किया मंथन 
आस तक न जगी झूठी
पर मैं जान गयी 
हूँ खड़ी कगार पर
कभी भी किसी भी पल 
यह साथ छूट जाएगा 
अधिक खींच न सह पाएगा 
जीवन डोर का बंधन 
जिसे समझा था अटूट 
टूटेगा बिखर जाएगा 
जाने कहाँ ले जाएगा |
आशा
 
 


02 अप्रैल, 2013

बेटा क्या सोच रहा

आज न जाने क्यूँ बाबूजी 
उदासी धेरे मुझे 
जैसे ही पलक मूंदता 
आप समक्ष होतेमेरे
आपका हाथ सर पर 
दे रहा संबल मुझे |
हो गया कितना बदलाव 
पहले में और आज में 
तब आप अलग से थे 
जब भी सामना होता था 
भय आपसे होता  था |
पर जाने कब आपका
 व्यवहार मित्रवत हुआ
आपका अनुशासित दुलार
गहन प्रभाव छोड़ गया 
दमकता चहरा  मृदु मुस्कान लिए
दृढ निश्चय और कर्मठता का
अदभुद  प्रताप लिए
आप सा कोइ नहीं लगता|
यही पीर  मन में है
होते हुए अंश आपका 
 आप सा  क्यूं न बन पाया
चाहता समेट लूं  सब को
मैं भी अपनी बाहों में
पर भुजाओं का वह  विस्तार 
मैं कहाँ से लाऊँ
आपकी प्रशस्ति के लिए 
शब्दों की संख्या कम लगती 
माँ सरस्वती ,लक्ष्मी और काली 
तीनो का था वरद हस्त
हाथ कभी न रहे खाली |
जीवन के हर मोड़ पर
 कर्मठता ने दिया साथ 
शरीर थका पर मस्तिष्क नहीं 
दृढ़ता कम न हुई मन की 
सार्थक जीवन जिया आपने 
बने  प्रेरणा सबकी  |
सोचता हूँ मैं हर पल
 हूँ कितना भाग्यशाली 
आपकी छत्र छाया मिली 
आपने इस योग्य बनाया 
उन्नत सर मैं कर पाया 
फिर भी कसक बाकी रही
आपसा क्यूं न बन पाया |
 
आशा





|

30 मार्च, 2013

हसरतों की बारिशें

हसरतों की बारिशें 
जब कम थीं भली लगती थीं 
ख्वाइशें पूर्ण करने की 
मन में ललक रहती  थी
वे पूर्ण यदि ना हो पातीं
अधूरी ही रह जातीं 
बहुत दुखी करतीं थीं |
पर जब से बरसात इनकी 
थमने का नाम नहीं लेती 
कभी ओले का रूप भी लेती 
बन जाती सबब परेशानी का 
लगता डर हानि का 
उत्साह कमतर होता जाता
जाने कहाँ खो जाता 
प्यार के गुब्बारे की 
हवा निकलती जाती 
उदासी अपना पैर जमाती |
आशा 


29 मार्च, 2013

स्वच्छंद आचरण


सुनामी सा उनमुक्त कहर 
कुछ अधिक ही हानि पहुंचाता 
हो निर्भय अंकुश विहीन 
स्वच्छंद हो विनाश करता |
 निरंकुशता समुन्दर की
है कितनी विनाशकारी 
अनुभव कटु करवाती 
जब भी तवाही आती |
यही  आचरण उसका
ना सामाजिक ना भय क़ानून का
उत्श्रंखलता  से लवरेज विचरण
बनता नासूर  समाज का 
जीना कठिन कर देता |
आम आदमी निरीह  सा 
ज्यादतियां सहता रहता
यदि किसी ने मुंह खोला 
जीना मुहाल होता उसका |
आशा



22 मार्च, 2013

जन्म दिन तुम्हारा



याद है मुझे  
वह अमूल्य पल 
जब तुम सी  बेटी पा 
अपना भाग्य सराहा |
किलकारियां गूंजी 
धर के आँगन में
महकी क्यारी क्यारी 
प्यार  के उपवन में |
स्नेह तुम पर लुटाया 
हर लम्हा जिया 
खुशियाँ दामन में न समातीं 
तुम्हारी प्रगति देख 
वही प्यार की ऊष्मा 
अब भी कम नहीं 
तुम से दूर न रह पाती 
उदासी गहन छाती |
पहले तुम नन्हीं सी थीं 
रिश्तों के कई पड़ाव 
पार करते करते 
अब दादी भी बन गयी हो 
पर आज भी वैसी ही 
 हो मेरा नजर में |
है आशीष तुम्हें दिल से 
फलो फूलो प्रसन्ना रहो 
आगे अपने कदम बढाओ
अपना मार्ग प्रशस्त करो |
उन्नति का शिखर चूमो
बाधाओं का  करो सामना 
हार कभी ना मानो उनसे
वैभव कदम चूमें तुम्हारे
 जीवन जियो सफलतम |
आशा 



18 मार्च, 2013

होली न सुहाय



ना कर जोरा जोरी सांवरे
छोटा लालन रोवत है
भए लाल गाल गुलाल से
नन्हां देवरिया डरपत है |
मैं तेरे रंग में रंगी
भीगी चूनर सारी
फिर काहे की जोरा जोरी
ना कर मुझ से बरजोरी |
जाड़ा लगत
तन थर थर कांपत
मैं रंग में ऐसी रंगी
गहरे रंग छूटत नाहीं  |
है प्यार भरी अनुनय मेरी
 छींटे ही नीके लागत  हैं
ऐसी होली मोहे ना भावे
तेरा रंग ही काफी है |
तेरा रंग चढा ऐसा
बाकी रंग लागत फीके
उस के आगे कछु न भाए
मोहे  ऐसी होली न सुहाय |
आशा