ए जिन्दगी है बोझ
तू
ढोते ढोते थक गया
हूँ
कैसे तुझसे
मुक्ति पाऊँ
सोचने में अक्षम
हूँ
तूने कभी हंसना
सिखाया था
समय के साथ भी
चलना सिखाया था
मैंने बड़ी शिद्दत
से
उसे सीख लिया था
फिर क्यूं आज
होती जा
रही तू
दूर बहुत दूर
मुझसे
बढ़ रहा है बोझ
दिल पर
गहन उदासी गहराई
है
सोच उभरने लगता है
कहीं भूल तो नहीं
हुई मुझसे
या ऐसा क्या हुआ
कि छिटक कर दूर
भी न हुई मुझसे
मुझे
अकेलेपन का है अहसास
घबराहट भी नहीं
होती
परन्तु कुछ
प्रश्न ऐसे हैं
जो अनुत्तरित ही
रहते
उत्तर मिल नहीं
पाते
फिर तुझसे क्यूं
सांझा करूं
बिना बात तेरा
बोझ सहूँ
अब बहुत हुआ बहुत
सहा
ए जिन्दगी कर
मुक्त मुझे
तुझसे छुटकारा
चाहता हूँ
मैं सोना चाहता
हूँ |
आशा