04 मई, 2014

स्वप्न जगत


यह संसार स्वप्न जगत का 
अपने आप में उलझा हुआ  सा 
है विस्तार ऐसा आकलन हो कैसे 
कोई  कैसे उनमें जिए |

रूप रंग आकार प्रकार  
बार बार परिवर्तन होता 
एक ही इंसान कभी आहत होता 
कभी दस पर भारी होता |

सागर के विस्तार की
 थाह पाना है कठिन फिर भी 
उसे पाने की सम्भावना तो है 
पर स्वप्नों का अंत नहीं |

हैं असंख्य तारे फलक पर 
गिनने की कोशिश है व्यर्थ 
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल  
कल्पना में क्या जाता है |

स्वप्न में बदलाव पल पल होते 
यही बदलाव कभी हीरो
 तो कभी जीरो बनाते 
याद तक नहीं रहते |

बंद आँखों से दीखते 
खुलते ही खो जाते 
याद कभी रहते 
कभी विस्मृत हो जाते  |

उस  अद्दश्य दुनिया में 
असीम भण्डार अनछुआ 
बनता जाता रहस्य 
विचारक के लिए |

आशा 

03 मई, 2014

संसार अनोखा लेखन का



संसार अनोखा लेखन  का
एक वाक्य अर्थ अनेक
विविध रंग  उन अर्थों के
लेखक की सोच दर्शाते|
पाठक अपने अर्थ लगाते
कई अर्थ उजागर होते 
कुछ अर्थ पूर्ण कुछ अर्थ हीन 
अपनी छाप छोड़ जाते |
लेख कहानी कवितायेँ
 कुछ रचनाएं कालजयी
उन पर शोध होते रहते
साहित्य को समृद्ध करते |
कभी अर्थ का अनर्थ होता
शब्दार्थ गलत लगाने से
मन मुटाव पैदा होता
वैमनस्य बढ़ने लगता |
यह मनुष्यकृत संसार
शब्द संयोजन का
विचार लिपिबद्ध करने का
शिक्षा प्रद भी कभी दीखता |
कला वाक्य विन्यास की
इतनी सरल नहीं होती
विरले ही  होते सिद्धहस्त 
वही अमर कृतियाँ देते 
गहराई जिनकी सागर सी |
है यही संसार  
वाक्य संयोजन का
उनसे विकसित भाषा प्रयोग का |
आशा

02 मई, 2014

चाहत


  
तेरी चाहत 
बनी पैरों की बेड़ी
बढ़ने न दे
कदम बहकते
बाँध कर रखती |

चाँद चाहिए
 था एक जूनून ही
हाथ बढ़ाया
ना मिला रोना आया
झूटा सपना लगा |

हस्त रेखाएं
बताती रह गईं
देख न पाया
है पहुँच से दूर
 मन मान न पाया |

आशा
  1.    

30 अप्रैल, 2014

चंद हाइकू





(१)
एक भावना 
प्यार जताने की है 
विकार हीन |
(२)
जलती चिता 
मुक्ति है संसार से 
हुई विरक्ति |
(३)
अंतिम सांस 
अब साथ छोडती 
न गयी तृष्णा |
(४)
ना यह दिल
 है मेरा आशियाना 
हूँ यायावर |
(5)
रात कटे ना
चंद सपने साथ
मेरी सौगात
(६)
रात कटे ना
जागती विरहणी
कोइ जाने ना |
(७)
चंचल मन
बहकते कदम
कहाँ जाएगा |

29 अप्रैल, 2014

क्षणिकाएं

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(१)
दबे पाँव पीछे से आना 
आँखों पर हाथ रख चौंकाना 
सहज भाव से ता कहना 
लगते तुम मेरे कान्हां |
(२)
ये आंसू सागर के मोती 
वेशकीमती यूं ना बिखरें 
भूले से यदि अंखियों में आएं 
चमक चौगुनी करदें |
(३)
यह गुलाब का फूल 
आज हाथों में देखा 
कितना कुछ करने को है 
यह न देखा |
(४)
ना कहने को कुछ रहा 
ना सुनाने को बाकी 
जो देखा है वही काफी 
उसका सिला देने को |
आशा 




27 अप्रैल, 2014

सान्निध्य तेरा


Photo
यादें गहराईं
तेरे जाने के बाद
तुझे जान कर
अहसास ऐसा हुआ
अपने अधिक ही निकट पाया
यही सामीप्य
इसकी छुअन अभी भी
रोम रोम में बसी है
यादों की धरोहर जान
जिसे बड़े जतन से
बहुत सहेज कर रखा है
पर न जाने क्यूं
रिक्तता हावी हो जाती है
असहज होने लगता हूँ
उदासी की चादर ओढ़
पर्यंक का आश्रय लेता हूँ
यादों का पिटारा खोलता हूँ
उन मधुर पलों को
जीने के लिए
कठिन प्रयत्न करता हूँ
सफलता पाते ही
पुनः जी उठता हूँ
तेरे सान्निध्य की यादों  में |