12 अक्तूबर, 2014

बदलते तेवर






बदलते तेवर मौसम के
देते दस्तक दरवाजे पर
अचानक आते परिवर्तन
कई घर जल मग्न|
 संकेत किसी आपदा का
पूर्वाभास गहरी क्षति का
एकाएक अनहोनी घटती
प्रकृति विद्रोह का आगाज़ करती |
चाहे सुनामी या हो  हुद हुद
या हो कहर ग्लेशियर का 
बारिश का या बाढ़ का
सारा अमन चैन हर लेता |
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर 
घर संसार बसाए गए थे 
क्षण भर में हो  ध्वस्त 
जाने कितनो को  विछोह देते |
नयनों का रिसाव न थमता 
फिर भी कोई  हल न निकलता 
क्रूर प्रहार  प्रकृति का 
विषधर सर्प सा होता 
पानी तक पीने न देता |
कितनी भी मदद मिले 
मन पर लगे घाव 
भरने का नाम नहीं लेते 
सदा हरे बने रहते |
आशा


 



09 अक्तूबर, 2014

वह बैठा निहारता




वह बैठा निहारता
पुष्पों  भरी क्यारियां 
टहनियां  झुक झुक जातीं
कुसुमों के भार से |
अनायास तेरा आना
रंग बिरंगे फूल चुनना
महावरी पैर बढ़ाना  
झुकना और सम्हलना |
आयल पायल बिछुए कंगना
गुनगुनाना मुस्कुराना
अद्भुद छवि तेरी
मन में उतरती |
मंद  मंद चलती बयार
आनन् का करती सिंगार
चन्द्र मुखी रूपसी
मन स्पन्दित करती |
मृणाल सी कोमल बाहें
 हाथों से फूल चुनती
 कुछ पुष्प  आँचल में आते
कुछ धरा को चूमते |
खुशी उन्हें पाने की 
उनमें ही रम जाने की 
मदिर मुस्कान तेरी
अंतस में सिहरन भरती |
प्रसन्न वदन उन्हें निहारती
भाव संतुष्टि का होता
तब प्यारी सी  छवि तेरी
मन में घर करती |
आशा

07 अक्तूबर, 2014

परिचालक





यह शोरशराबा गहमागाहमीं
इंगित जरूर करती
मानो तोड़ रही है मौन
सारे बंधन छोड़  |
आते जाते वाहन
उनका रुकना आगे बढ़ना
तीव्र ध्वनि भोंपू की
है यही जीवन की रवानी |
आवागमन वाहनों का
आते जाते  यात्रियों का
है कितना कठिन
 उसी ने जाना |
फिर भी सचेत मुस्तैद
कहीं भी कमीं नहीं
सदा व्यस्त दिखाई देता
पर क्या सच में ऐसा  होता |
यात्री अपना टिकिट  चाहते
 लाइन में आना नहीं चाहते
बहुत प्यार से समझाता
लाइन के लाभ गिनाता |
जब सीधी उंगली से
 घी न निकलता
रौद्र रूप अपना दिखलाता
टिकिट देना रोक देता |
आये दिन का यही काम
तब भी थकना नहीं जानता
घर से गाड़ी अड्डे तक
स्मित हास्य लिए घूमता |
आशा