10 दिसंबर, 2014

हमारे आस पास



वृक्ष की छाँव ,विश्राम पथिक का
है आवश्यक |
कटते वृक्ष ,गरमी का आलम
दुखी पथिक |
निर्मल जल ,लहलहाते वृक्ष
अप्रदूषित हैं |
पर्यावरण ,हमारे आस पास
निर्मल रहे |
वृक्ष लगाओ ,बच्चे सा अपनाओ
हरियाली को |
फूले पलाश ,झुमके लटकाता
अमलताश |
खून खराबा ,प्रकृति है उदास
आतंक फैला |
बर्फ से दबा ,शहर दम तोड़े
वृक्ष गवाह |
स्वच्छ  प्रदेश ,है देश की गरिमा 
अछूती रहे |
झूला डाला है नीम की डाली पर 
आओ ना प्रिये
इंतज़ार है निराश न करना 

दिन न  कटे |
दोपहर में छाँव वट वृक्ष की 
पुकार रही |
है हरियाली नदिया के किनारे 
सुखद लगे |


आशा  

08 दिसंबर, 2014

सुख दुःख

साथी सुख के
पल भर में दूर
देख दुःख में |

सुख मन का
तिरोहित हो गया

  दुःख को देख|

सुख दुःख में
जब छिड़ा संग्राम
दुःख ही जीता |

                                                                         मन दुखी है
                                                                   दर्पण है ही झूठा
                                                                       सच न बोला |

 सुख क्षणिक 
दुखों की है दूकान 
जीना कठिन |

आशा



                                       

06 दिसंबर, 2014

आदत सी हो गई है



रंग जिन्दगी के
सम्हलने नहीं देते
 बवाक हो जाते
प्यार के अफसाने
जब शाम उतर आती
आँगन के कौने में
रहा था  धूप से
 कभी गहरा नाता
व्यस्तता का आवरण
तब लगता था अच्छा
पर  अब सह नहीं पाती
रंगों की चहल कदमी
रहती सदा तलाश
तेरी छत्र छाया की
तभी तो सुरमई शाम
लगती बहुत प्यारी
तन्हाँ आँगन के कोने में
मूंज की खाट पर
बैठ कर बुनना और
गिरते फंदों कोउठा
 सलाई पर चढाना 
अपनी कृति पर खुश होना 
हलकी सी आहट पर 
झांक तुम्हारी राह देखना
अब आदत सी हो गई है
इस तरह जीने की
समय बिताने की |
आशा

05 दिसंबर, 2014

सर्दी में


निष्ठुर लोग
असहनीय ठण्ड
जगह न दी

रात जाड़े की
इंतज़ार ट्रेन का
कम्पित तन |

दया न माया
कांपता रह गया
दुखित मन |

खुले बदन
ठंडी जमीन पर
सो रहा था |

बर्फीली हवा
वह सह न सका
आगई कज़ा |

ऋतु जाड़े की
महका है चमन
तेरे आने से |

ठंडी बयार
कपकपाता गात
जाड़ा लगता |
आशा