13 मई, 2015

भावों के समुन्दर में


samundar mein uthata lahar के लिए चित्र परिणाम
भावों के समुन्दर में   
डुबकी लगाने की चाह में
घंटों से खडा था  
पर कदम नहीं बढ़ते
साहस नहीं जुटता
उर्मियों की तीव्र गति
वहां जाने नहीं देती
जैसे ही पैर बढाता  
बापिस ढकेल देती
चाहत डुबकी लगाने की
अनमोल रत्न खोजने की
उन्हें तराशने चमकाने की
बाधित सी हो जाती
तभी एक विकराल लहर
पैरों से टकराई
वे उखड गए
मैं घबराया पर सम्हला
और बह चला संग उसके
सागर की थाह पाने को
अब उत्साह है गर्मजोशी है
भावों का संग्रह जब होगा
सांझा करने का यत्न करूंगा |
आशा

10 मई, 2015

विश्राम



बिस्तर अस्पताल का के लिए चित्र परिणाम
एक सोच उभरता था  चाहे जब
मुझे विश्राम  नहीं मिलता
शैया आकर्षित करती थी
जब तब सोने का मन होता था |
ना जाने क्यूं आज
 थकावट हुई बेचैनी बढी
एक हादसे ने मेरा सुख छीना
नींद चुराली |
पैर फिसला चोट लगी
सोचा अब तो आराम मिलेगा
शैया पर पड़े रहना है
यह मात्र कल्पना निकली |
अस्पताल का मुंह देखा
वे दिन थे कितने कठिन
कल्पना भयावह लगती है
वहां जिन्दगी कितनी सस्ती है |
घर आई चैन की सांस ली
सोच ने करवट बदली
दो दिन भी न कट पाए शान्ति से
लगा जिन्दगी ठहर  सी गई है
बेमतलब लगने लगी है  |
 ख्यालों ने सर उठाया
समय काटे नहीं कटता
गति उसकी धीमीं लगती
यह ठहराव रास नहीं आता |
अंतराल के बाद भी
विश्राम से लगाव न हुआ
असहज होने लगी हूँ
अक्षमता का बोध जो है | |
लोग न जाने कैसे
 व्यर्थ पड़े रहते हैं
बिना किसी काम के
 जीवन यूं ढोते हैं |
अब तो एक एक दिन
 भारी लगने लगा है
जाने कब छुटकारा होगा
ऐसे मिले आराम से |
आशा