04 अगस्त, 2015

यारी

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जब थल से थी यारी जल की
तब कभी उंगली न उठी
जलती थी जब धरा
वर्षा लगी बहुत प्यारी
अब अचानक क्या हुआ
किस नज़र का जुल्म हुआ
न रही चिंता धरती की
ना ही फिक्र जल प्लावन की
हुए व्यस्त अपनी दुनिया में
ना ही रात की खुमारी गई
अभी तक बिस्तर नहीं छूटा
उससे बहुत यारी रही |
आशा

02 अगस्त, 2015

तेरे रंग में रंगी

 

सावरे तेरे रंग में रंगी
बरसाने की गोरी
मोर मुकुट पर वारी जाए
चंचल चपल चकोरी |
 हुई कान्हां की दीवानी
पर प्रीत की रीत न पहचानी 
कठिन डगर कंटकों से भरी
यही बात ना जानी |
पीछे पीछे चली चंचला
भाव विभोर हो  की आराधना
संग संग चलते चलते
वह कान्हां की होली |
वह कान्हां की कान्हां उसका
एकाधिकार चाहती
बांसुरी  तक सौतन लगती
अपना सुख न खोना चाहती |
प्रीत का प्रगाढ़ रंग
भीग भीग जाता तन मन
जमुना तट पर करे रास
राधा मन की भोली |
आशा

31 जुलाई, 2015

आइना

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है वह आइना तेरा 
हर छबि रहती कैद उसमें 
चहरे के उतार चढ़ाव 
बदलते रंग और भाव 
सभी होते दर्ज उसमें |
परिवर्तन चहरे पर होते 
सभी उसमें स्पष्ट दीखते 
है यही   विशेषता
बदलाव  अक्स में 
 किंचित भी न होता |
दिन के उजाले में 
एक एक लकीर दीखती 
सत्य की गवाही देती 
अन्धकार में सब छुप जाता 
कुछ भी न दिखाई देता |
आशा


चित्र

c

28 जुलाई, 2015

नमन तुम्हें कलाम


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श्री ए. पी. जे .अब्दुल कलाम को शत शत नमन :-
ऊंची उड़ान
खुला आसमान
तुम्हें  सलाम |

एक स्वप्न सजाया तुमने
युवा शक्ति की आँखों में
जो कार्य भारत के लिए किया
सदा याद किया जाएगा
तुम्हारा नाम आते ही
गर्व से सर उन्नत होगा
दिया जो सन्देश तुमने
अमर तुम्हें कर जाएगा
शत शत नमन तुम्हें कलाम
हमें है अभिमान तुम पर
भारत माता के सपूत
विज्ञान की दुनिया में सदा
तुम्हें याद किया जाएगा |
आशा

27 जुलाई, 2015

कौन असली हकदार

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चहरे पर देख अभाव
आँखें रीती भाव विहीन
छेड़ गईं मन के तार
उदासी का कोई हल तो निकाल | 
कंचन काया मृतप्राय सी 
आया देन्य  भाव चहरे पर 
दीनता की अभिव्यक्ति 
मन में  चुभती  शूल सी |
दिल ने कहा सहायता कर 
पर दिमाग ने झझकोरा
 सोचना दूभर हुआ 
कहीं यह दिखावा तो नहीं ?
उलझन बढ़ने लगी 
करवटें बदलने लगी
क्या सच में है आवश्यक 
उसकी सहायता करना |
हो रहा है कठिन 
सत्य तक पहुँच पाना 
है यह आवश्यकता उसकी 
या तरकीब संवेदना पाने  की |
किसे सच्चा हकदार समझुँ
उपयुक्त समझूं सहायतार्थ 
जज्बातों  में बह कर
 यूँ ही  न  ठगी जाऊं |
जब भी भावुकता जागी 
बेरहमीं से ठगी गई 
अब विश्वास नहीं होता 
है कौन असली  हकदार
या कोई ठग  दरिद्र के भेष में |
आशा