13 फ़रवरी, 2016

आजाद कलम

आजाद कलम
 उन्नत  विचार 
मन में लिए विश्वास 
पैर धरातल पर पड़े 
जीवन में आया निखार 
भाव मन के स्पष्ट हुए 
छलकपट से दूर हुए
स्वतंत्रता के पुरोधा 
बन्धनों से मुक्त हुए 
सत्य सत्य ही होता है 
बदल नहीं सकता
 तथ्य परख लेखन से 
फिर परहेज क्यूं ?
परिणाम चाहे जो भी हो 
अंजाम से भय क्यूं 
झूट के पांव नहीं होते 
फिर उस पर आश्रित क्यूं ?
जब सत्य उजागर होता है 
मन का कलुष धोता है 
फिर जो भी लिखा जाता है 
सदियों तक उसे 
 याद किया जाता है 
लेखन किसी दबाव  में 
जिसने भी किया 
कलम बेच डाली 
चंद सिक्कों  के लिए 
कुछ भी हाथ नहीं आया 
आत्मग्लानि केसिवाय 
अशांति के शिकंजे में 
खुद को फंसा पाया |

आशा





11 फ़रवरी, 2016

लम्बी बीमारी के बाद

|


संवेदना विहीन
निष्ठुरता के पुरोधा 
क्या है सोच जानना कठिन 
अंतस की हल चल का
यदि कभी कुछ सहा होता 
कष्ट का अनुभव किया होता 
तभी अनुभव होता
कष्ट किसे कहा जाए
यदि संवेदना के दो बोल भी
भूले से निकले होते
बंजर मन के कौने में
कई कमल खिल जाते
व्यय कितना भी किया जाए
पर मृदु भाषण से दूरी हो
नौकरों की भीड़ लगी हो
 सब भार नजर आते
अपनापन कहीं गुम हो जाता
  आडम्बर सा लगता
एक शब्द विष से बुझा
गहराई तक छू जाता
तन मन से की गई सेवा
किसी पर कर्ज नहीं होती
वे लम्हे याद सदा रहते
गैरों में व अपनों में
अंतर स्पष्ट करते
लम्बी रोगों की दुकान
उबाऊ होती जाती
एक कहावत याद आती
काम सब को होता प्यारा
बिना काम  वह होता  नाकारा
पृथ्वी पर बोझ नजर आता
जीवन से मुक्ति चाहता |
आशा













09 फ़रवरी, 2016

सपना

 saty swapn kaa के लिए चित्र परिणाम
मेरी धारणा बन गई है 
मन में बस गई है
सपने में जब कोई 
 अपना आता है
उसका कोई 
 संकेत देना कुछ कहना
किसी आनेवाली घटना से
  सचेत कर जाता है
यही ममत्व ह्रदय में
 अपना घर बनाता है 
पर कभी स्वप्न 
अजीब सा होता है 
तब वह केवल 
भ्रम होता स्वप्न नहीं 
अक्सर याद नहीं रहता 
जब भी याद रह जाता 
 एक बात उसमें भी होती 
मुख्य पात्र कहानी का 
जाने अनजाने मैं ही होती 
कभी नदी पार करती 
कभी शिखर पर चढ़ती 
पा कर कप बड़ा सा
पुरूस्कार स्वरुप 
अपने पास सजोती
गर्व से खुश होती  |
आशा


आशा

07 फ़रवरी, 2016

मित्रता दिवस

  
दादी ने गुल्लक दिलवाई 
बचत की आदत डलवाई 
मैंने भी इसको अपनाया 
चंद  सिक्के जमा किये 
फ्रेन्डशिप डे है आनेवाला
मन ने कहा क्यूं न खुद
 फ्रेन्ड शिप बैण्ड बनाऊँ 
अपने मित्रों को पहनाऊँ 
छोटे छोटे उपहारों से 
मनभावन जश्न मनाऊँ 
सोचा पैसे मां से मांगूं 
या पापा से हाथ मिलाऊँ 
पर सब यही कहते 
व्यर्थ है यह दिन मनाना 
हमने तो कभी मनाया नहीं 
फिजूल  है समय गवाना 
पर मन नहीं माना 
अब याद गुल्लक की आई 
मेरी बचत काम आई 
तोड़ी गुल्लक पैसे मिल गए 
स्वयं ही मित्रता धागे  बनाए 
अपने मित्रों को पहनाए 
छोटे छोटे उपहार दिए 
इस दिन को कामयाव बनाया 
जिसने भी इन्हें देखा 
सृजनात्मक्ता का नाम दिया 
अपनी बचत के सदुपयोग पर 
खुशियों का जखीरा आया |
आशा

04 फ़रवरी, 2016

पत्थर नीव के

दृढ इरादे की चमक 
जब भी देखी हैआनन् पर
मस्तक श्रद्धा से झुकने लगता है 
अनुकरण का मन होता है 
लगन विश्वास और इच्छा शक्ति 
होती हैं अनमोल 
कुछ लोग ही जानते हैं
इनकी महिमा से हैं परिचित 
रह कर अडिग इन पर 
लम्बी  दूरियां नापते हैं
कठिनाई होती है क्या
ध्यान नहीं  देते 
लक्ष्य तक पहुँचते ही 
भाल गर्व से होता उन्नत
तभी महत्त्व है  इनका
सफलता यूं ही नहीं मिलती
दृढ संकल्प और आत्मबल
होते निहित इसमें
करती इमारत बुलंद
मजबूती नीव  की
ये हैं नीव के पत्थर
आवश्यक सफलता के लिए
जीवन में आई कठिनाइयों से
उभर पाने के लिए |
आशा

02 फ़रवरी, 2016

कोहरा


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चहु और कुहासा छाया
सर्दी ने कहर ढाया
हाथों को हाथ नहीं सूझता
प्रकृति ने जाल बिछाया 

धुंद की चपेट में वादियाँ
श्वेत चादर से ढकी वादियाँ
शिशिर का संकेत देती वादियाँ
मौसम की रंगीनियाँ सिमटी यहाँ
सैलानी यहाँ वहां नजर आते
बर्फबारी का आनंद उठाते
स्लेज गाड़ी पर फिसलते
बर्फ के खेलों का आनंद लेते
जब कोहरे की चादर बिछ जाती
कुछ भी दिखाई नहीं देता
मन  पर नियंत्रण रख कर
 अपने पड़ाव तकआते
चाय कॉफी में खुद को डुबोकर
रजाई में दुबक कर
अपने को  गर्माते
मौसम का आनंद लेते
कोहरे से भय न खाते |
आशा



30 जनवरी, 2016

तलाश

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दो काकुल मुख मंडल पर
झूमते लहराते
कजरे की धार पैनी कटार से
 वार कई बार किया करते
 स्मित मुस्कान टिक न पाती
मन के भाव बताती
चहरे पर आई तल्खी
भेद सारे  खोल जाती
कोई वार खाली न जाता
घाव गहरे दे जाता
जख्म कहर वरपाते
मन में उत्पात मचाते
तभी होता रहता विचलन
अपने ही अस्तित्व से
कब तक यह सिलसिला चलेगा
जानना है असंभव
फिर भी प्रयत्न जारी है 

कभी तो सामंजस्य होगा
तभी सुकून मिल पाएगा
  अशांत मन स्थिर होगा  |