09 जनवरी, 2018

सकारात्मक सोच


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केवल अधिकारों की देते हैं जानकारी 
पर कर्तव्यविहीन हो रही सोच हमारी 
खुल कर बोलना है अधिकार हमारा 
कब बोलना, कहाँ बोलना व विवादों को 
देना निमंत्रण क्या दुरुपयोग नहीं ! 
हँसना हँसाना लगता तो है भला 
पर कटु भाषण और व्यंगाबाण 
मन पर करते प्रहार 
संतुलित आचरण रहा तो रिश्ते संवरें 
पर बिना बात के ताने 
मन की सुख शान्ति हर ले जाएँ 
है यह स्वयं का विवेक 
हम किस मार्ग पर जाएँ 
कहीं संस्कारविहीन नहीं हुए हों 
अच्छी सोच हो खिले पुष्पों की तरह 
जो खुद तो महके ही अपने 
आस पास को भी चमन बना दे
खुशबू दिग्दिगंत तक जाए ! 


आशा सक्सेना 






04 जनवरी, 2018

एक वादा खुद से




है वादा अपने आप से 
इस वर्ष के लिए 
है यह पहला वादा 
शायद यह तो पूरा 
कर ही सकते हैं ! 
अधिक की अपेक्षा नहीं की 
आज तक कभी
ज़िंदगी की आख़िरी साँस तक !
यह कुछ कठिन तो नहीं ! 
बस खुद पर संयम ही 
काफी है इसके लिए ! 
नया कभी चाहा ही नहीं !
मन पर नियंत्रण से 
निकाल दो नकारात्मक 
विचारों को 
फिर देखो प्रभाव मन पर ! 


आशा सक्सेना 



31 दिसंबर, 2017

हे नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है !

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हे नव वर्ष 
तुम्हारा स्वागत मेरे दर पर 
कबसे राह तुम्हारी जोह रही 
बहुत स्नेह से आज को विदा किया है 
अब आई तुम्हारे स्वागत की बारी 
प्रथम करण आदित्य की 
बैठी पलक पसारे 
तुम्हारी बाट निहारे 
ओस कणों से पैर पखारे 
कोमल कोंपल वृक्ष वृन्द संग 
पलक पांवड़े बिछाए 
तन मन धन से करे स्वागत 
तुम्हें विशेष बनाए 
सारा साल खुशियों से भरा हो
भाईचारा आपस में रहे 
यही मेरा मन कहे 
सुख सम्पदा भरपूर रहे 
पूरी श्रद्धा से सम्पूर्ण वर्ष 
प्रसन्नता से भर जाए ! 

नव वर्ष की आप सभीको हार्दिक शुभकामनाएं !

आशा सक्सेना  


25 दिसंबर, 2017

असंतोष





एक तो परिवार बड़ा
उस पर बेरोजगारी की मार
श्वास लेना भी है दूभर
आज के माहोल में
जीवन कटुता से भरा
कहीं प्रेम न ममता 
हर समय किसी न किसी की बात 
पर असंतोष ही उभरता मस्तिष्क  में
यूं ही छत पर
धीरे धीरे समय बीत जाता
 पञ्च तत्व में विलीन हो  जाता 
वह यादों में सिमिट कर रह जाता |
आशा

10 दिसंबर, 2017

असमंजस



वह झुकी-झुकी पलकों से 
कनखियों से देखती है 
बारम्बार तुम्हें !
हैं जानी पहचानी राहें 
पर भय हृदय में रहता है 
कहीं राह से दूरी न हो जाए !
कोई साथ नहीं देता बुरे समय में 
जब भी नज़र भर देखती है 
यही दुविधा रहती है 
कहीं राह न भूल जाए ! 
पर ऐसा नहीं होता 
भ्रम मात्र होता है ! 
भ्रमित मन भयभीत बना रहता 
जिससे उबरना है कठिन 
जब कोई नैनों की भाषा न पढ़ पाए
अर्थ का अनर्थ हो जाता !
इससे कैसे बच पायें 
है कठिन परीक्षा की घड़ी 
कहीं असफल न हो जाए 
जब सफलता कदम चूमे 
मन बाग़-बाग़ हो जाए 
जब विपरीत परीक्षाफल आये 
वह नतमस्तक हो जाए 
निगाहें न मिला पाए ! 


आशा सक्सेना 



07 दिसंबर, 2017

स्वप्न मेरे



हो तुम बाज़ीगर सपनों के 
जिन्हें तुम बेचते हो तमाशा दिखा कर 
मेरे पास है स्वप्नों का जखीरा 
क्या खरीदोगे कुछ उनमें से ?
पर जैसे हों वही दिखाना 
कोई काट छाँट नहीं करना  !
हर स्वप्न अनूठा है अपने आप में 
परिवर्तन मुझे रास नहीं आता  ! 
नए किरदार नए विचारों को 
संजोया है मैंने उनमें  !
बंद आँखों से तो अक्सर 
सपने देखे ही जाते हैं 
कुछ याद रह जाते हैं 
अधिकांश विस्मृत हो जाते हैं  !
खुली आँखों से देखे गए सपनों की 
बात है सबसे अलग  !
होते हैं वे सत्यपरक 
अनोखा अंदाज़ लिए ,
नवीन विचारों का सौरभ है उनमें  !
ऊँची उड़ान उनकी अनंत में 
बहुत रुचिकर है मुझे 
तभी वे हैं अति प्रिय मुझे ! 


आशा सक्सेना 



02 दिसंबर, 2017

फलसफा प्रजातंत्र का


बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती 
पालनार्थ आदेश पारित करती 
पर अर्थ का अनर्थ ही होता 
मंहगाई सर चढ़ बोलती 
नीति जनता तक जब पहुँचती 
अधिभार लिए होती 
हर बार भाव बढ़ जाते 
या वस्तु अनुपलब्ध होती 
पर यह जद्दोजहद केवल 
आम आदमी तक ही सीमित होती 
नीति निर्धारकों को 
छू तक नहीं पाती 
धनी और धनी हो जाते 
निर्धन ठगे से रह जाते 
बीच वाले मज़े लेते ! 
न तो दुःख ही बाँटते 
न दर्द की दवा ही देते 
ये नीति नियम किसलिए और 
किसके लिए बनते हैं 
आज तक समझ न आया ! 
प्रजातंत्र का फलसफा 
कोई समझ न पाया ! 
शायद इसीलिये किसीने कहा 
पहले वाले दिन बहुत अच्छे थे 
वर्तमान मन को न भाया !


आशा सक्सेना