02 अगस्त, 2018

सपनों का संसार अनूठा


थकी हारी रात को 
जब नयन बंद करती 
पड़ जाती निढाल शैया पर 
जब नींद का होता आगमन  
स्वप्न चले आते बेझिझक !
यूँ तो याद नहीं रहते 
पर यदि रह जाते भूले से 
मन को दुविधा से भर देते 
मन में बार बार आघात होता 
होता ऐसा क्यूँ ? 
जब स्वप्न रंगीन होता 
मन प्रसन्नता से भरता 
पर जब देखती 
किसी अपने को सपने में  
चौंक कर उठ बैठती !
सोचती कहीं कुछ बुरा होने को है 
ज़रूरी नहीं हर स्वप्न 
कोई सन्देश दे !
भोर की बेला में 
जो स्वप्न दिखाई देते 
अधिकतर सच ही होते 
जहाँ कभी गए ही नहीं 
स्वप्नों में वे ही दिखाई देते !
पर एक बात ज़रूर होती 
चाहे जहाँ भी घूमती 
प्रमुख पात्र मैं ही होती ! 
कुछ लोग दिन में 
जागती आँखों से भी स्वप्न देखते 
दिवा स्वप्न में ऐसे व्यस्त होते 
कल्पना में खो जाते 
खुद की सुध बुध खो बैठते ! 

आशा सक्सेना 






30 जुलाई, 2018

सावन

समाचार फ़



आया महीना सावन का
घिर आए बदरवाकाले भूरे 
टिपटिप बरसी बूँदें जल की
हरियाया पत्ता पत्ता
सारी सृष्टि का
धरती हुई हरी भरी
प्रकृति हुई समृद्ध
ईश्वर की कृपा से |
बच्चों ने की जिद
डलवाया झूला आँगन में
पूरा आनंद उठाया
 ऊंचाई को छूने का  
रिमझिम का
गरम गरम भजियों का
बहनें राह देख रहीं
भाई के आने की
साथ साथ रक्षाबंधन
मनाने की प्यार बांटने की |
आशा

27 जुलाई, 2018

बड़भागिनी नारी


हो तुम बड़भागी
भरी आत्मविश्वास से 
असंभव शब्द तुम जानती नहीं 
हर कार्य करने की क्षमता रखतीं 
तभी तो मैं हो गयी तुम पर न्यौछावर 
यही लगाव यही जज्बा 
होने नहीं देता निराश 
हर बार भाग्य रहा तुम्हारा साथी 
हो तुम विशिष्ट सबसे जुदा 
सभी तुम्हारे गुणों पर फ़िदा 
हो इतने गुणों की मलिका 
तब भी नहीं गुरूर 
हर ऊँचाई छू कर आतीं
और विनम्रता बढ़ती जाती 
ऊँचाई पर जाओ 
सफलता का ध्वज फहराओ 
और सबकी दुआएं पाओ 
बनो प्रेरणा आने वाली पीढ़ी की 
घर बाहर दोनों में सक्रिय 
निराशा से कोसों दूर 
कर लो किस्मत को अपनी मुट्ठी में 
और बनो अनूठे गुणों का गुलदस्ता ! 


आशा सक्सेना




26 जुलाई, 2018

भाग्य का खेल



थी खुशरंग 
रहा मेरा मन अनंग 
जाने थे कितने व्यवधान 
अनगिनत मेरे जीवन में !
हर कठिनाई का किया सामना 
भाग्य समझ कर अपना 
कभी भी मोर्चा न छोड़ा 
किसी भी उलझन से !
बहुतों को तो रहती थी जलन 
मेरी ही तकदीर से 
पर इस बार अचानक 
घिरी हुई हूँ भवसागर में 
नैया मेरी डोल रही है 
फँस कर रह गयी मँझधार में 
सारे यत्न हुए बेकार
मानसिक रूप से रही स्वस्थ 
पर शारीरिक कष्ट 
कर गए वार ! 


आशा सक्सेना  



23 जुलाई, 2018

ख्याल


हर वख्त ख्यालों में रहते हो
किसी स्वप्न की तरह
आँखों में समाए रहते हो
किसी सीधे वार की तरह
कभी भूल कर न पूंछा कि
आखिर मेरी भी है कोई इच्छा
खिलोना बन कर रह गई हूं
तुम्हारे इंतज़ार के लिए
या हूँ एक रक्षक
तुम्हारे दरवाजे के लिए |
आशा

22 जुलाई, 2018

आया सावन


चलो चले जाएँगे हम 
लौट कर सावन की  तरह
अगले बरस आने को 
पर इस बरस को भूल न पाएंगे 
रह रह कर याद आएगी 
भाभी बिना त्यौहार मनाने की
कभी इन्तजार रहता था 
सावन के आने का 
हलकी हलकी बारिश में 
भीग कर जाने  का  
बहुत मजा आता था 
अम्मा की डाट खाने में 
उससे भी अधिक 
आनंद की प्राप्ति में 
बस यह केवल रह
  अब गुम होकर 
पुरानी यादों में रह गया है |
आशा

17 जुलाई, 2018

हिंडोला गीत







चलो  री सखी चलें अमराई में
झूलन के दिन आए
नीम की डाली पे झुला डलाया
लकड़ी की पाटी  मंगवाई
रस्सी मगवाई बीकानेर से
भाबी जी आना भतीजी को भी लाना
काम का  समय निकाल कर पर आजाना
गाएंगे सावन के गीत
यादें ताजा कर लेगे  
न आने का बहाना न बनाना
हम तुम मिल कर बाँटें मेंहदी 
हाथों में दिन भर लगाएं मेंहदी 
झूलें सब से ऊंची डाली पर
फिर सावन के  गीत
झूम झूम कर गाएं
मींठी खीर घेवर खाएं
फेनी पूए का भोग लगाएं
हम और तुम पेंग  बढाएं
ऊंची डाली चूमती आएं
सूरज से हाथ मिलाऐं
छोड़ो झूला रस्सी
अब मेरी बारी 
झूलने की आई |

  
आशा