10 जनवरी, 2019

ऊंची उड़ान












क्यूँ न ऊंची उड़ान भरें 
नई ऊँचाई छूने को
हो कर कटिबद्ध
सब से आगे जाएं |
हसरतें पूर्ण करें मन की
कुछ शेष न रह पाएं
थोड़े से अरमा जो रहे शेष
उन्हें अंजाम तक पहुंचाएं |
क्या गलत है इसमें ?
अब तक समझ न पाई हूँ
हर बार वर्जना सहते सहते
बगावत पर उतर आई हूँ |
समझाती हूँ मन को
दिलाती हूँ दिलासा दिल को
सब ख्वाब पूर्ण नहीं हो सकते
पर यत्न किये जा सकते हैं
उस पर इतना बबाल क्यूँ ?
उड़ान ऊंची है

 पर असंभव नहीं
प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होते
यदि हो भी जाएं तो क्या ?
कोशिश न करना

 है व्यर्थ की अवधारणा
वही सफलता को चूमते
ऊंची उड़ान भर पाते हैं
जो हिम्मत नहीं हारते
सफलता होती भरपूर 

 मेहरवान उन पर |
आशा 

09 जनवरी, 2019

कुछ गलत नहीं करेंगे हम


कुछ गलत नहीं करेंगे हम 

दुनिया से नहीं डरेंगे हम 

अगर कोई व्यवधान आया 
सामना डट कर  करेंगे हम |
अपनी बातें सही ढंग से 
सबके सामने रखेंगे हम 
हमारी गलती यदि हुई 
स्वीकार करेंगे हम |
वह शक्स क्या जो 
अपने को सही समझे 
बाक़ी सब को झूटा ठहराए 
किसी की बात न माने |
किसी भी बात पर 
अपनी वाली ही चलाए 
सही गलत का निर्णय ना ले पाए 
ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे हम |

आशा

सब



 अति आवश्यक हो गई
 जब  रहें  सब
 एक जुट हो कर 
 सब में सिमट कर|
सब में है इतनी शक्ति 
  सभी भय खाते उससे
 अकेले यदि होते 
 चक्रव्यूह में फँस निकल नहीं पाते 
सब ने समेटा है मुठ्ठी में
 फैले हुए हर कार्य को
जल्दी ही पूरा हो जाता
 जब  सभी एकजुट हो जाते
एक ही  पर अपनी
  दृष्टि केन्द्रित करते
सब की महिमा है अपरमपार
 उंगलियाँ जब एक साथ होतीं
 मुठ्ठी में  सिमट जाती
 उनमें  शक्ति  आती अपार 
 उंगली अकेली कुछ नहीं कर पाती
सभी  एक जुट होते जब
बड़ा कार्य सरलता से करते हाथ
तभी कहा जाता है बंघी मुट्ठी लाख की
सबके  साथ की ताकत 
 शक्तिशाली बनाती  सब को
बिखराव नहीं आता समाज में
जब  शक्तिशाली सोच उभरते
 विघटन के कगार पर खड़े
 अधिकाँश लोग सोच रहे
कैसे  हों एक साथ सब
 एक विचारघारा से जुड़े संगठन
समभाव रहे आपस में जिससे 
स्वच्छ प्रशासन दें सकें  
 जो  हो सब के हित के लिए 
केवल स्वहित के लिए नहीं 
देश की सुख समृद्धि के लिए
 सोचें कार्यों  को करें गति प्रदान |
आशा 

02 जनवरी, 2019

सद्भावना













–भावना  मन में हो  प्रवल
भाव भलाई के हों
 ना कि दुर्भावना के
समाज बना सामंजस्य
 बना कर चलने से 
साथ रहते समान विचारों वाले
मिलजुल कर  कार्य  करते
 एक विचारधारा वाले
कभी मत भिन्न होने लगते
  तब  मति भ्रष्ट हो जाती
बिना बात बहस छिड़ जाती
वहीं से चिंगारी उड़ती
दहकते अंगारों का रूप लेती
 सद्भावना में दरार पड़ जाती
लाभ अनेक आपसी तालमेल के
सुख शान्ति समृद्धि लाने के
जब नीव के पत्थर हिलने लगते  
बिघटनकारी सर उठाते
फटी हुई चादर नजर आते
जैसे ही सुलह सफाई होती
पैबंद चादर में लगे नजर आते
है सद्भावना अति आवश्यक
स्वस्थ समाज की नीव के लिए
होती प्रवल इमारत उसकी 
सब प्रेम से हिलमिल रहते 
सत्य तो यही है सद्भावना है 

 आवश्यक सौहाद्र के लिए 
आशा 



01 जनवरी, 2019





क्षणिकाएं


1-है क्या इसकी आवश्यकता
जब क्षमा नहीं की जा सकती खता
मैं तो हारी यही जता
वह है नहीं क्षमा योग्य
क्या फ़ायदा उसे यह जता |
2- सदा समय के साथ चले

 ना ही कोई भूल की हमनें 
बीती बातें भूल नववर्ष  का
 जश्न मनाने लगे |
३-मौसम सर्दी का आया
ठण्ड से तालमेल रखने का
खुद को स्वस्थ बनाने का
 सन्देश लाया खुशहाली का |
४-तुम जाना गोकुल ग्राम ले जाना सन्देश मेरा
गोप  गोपियों को बड़े प्यार से समझाना
मैं कहीं दूर नहीं उनसे रहता सदा जुदा उनसे
ज्ञान बांटना वैराग्य का मेरा महत्त्व समझाना |
5-सच में झूट की मिलावट है कि नहीं 
कहने को तो कटु लगता है
बात मेरी सत्यपरक है या नहीं 
किसी भी मानक पर तोल लो
मुझे सत्य की परख है कि नहीं |

6-खुसरो दरिया प्रेम का
कलकल बहता जाए
डूबकी लगाए जब तक
मन अनंग न हो जाए |
आशा

आशाआशा

30 दिसंबर, 2018

साथी मेरे






  •  दिल है हमारा 
     कोई शिकार नहीं
    तीर नयनों से
     क्यूँ चलाने लगे
      जो कहर बरपाने लगे
    राह में कंटक अनेक
    पर  फूल भी कम नहीं
    और  राहें भी जुदा  नहीं
    फिर किस लिए
     दामन में मुंह
     छुपाने लगे
    क्यूँ राह से भटकने लगे
    हम हैं सरल सहज
     व्यक्तित्व के धनी
     ना  कोई फरेवी
     ना ही  कपटी
     स्वच्छ छवि है हमारी
    जो मन में है वही
     चहरे के भावों में
    दुनियादारी से
     दूरी बना कर चलते
    एक ही राह पर
     कदम बढ़ाते हैं
    आवश्यकता नहीं
    किसी की सलाह की
    नयनों के तीरों की
    या ताकाझांकी की
      खुद के नयन ही काफी है
     पथ प्रदर्शन के लिये |