13 मार्च, 2019

यादें

यादों को दूर न कर पाईं
सारी रात करवटें बदलती रहीं
जब भी कोशिश की
और अधिक नजदीक आईं
मुठ्ठी में जब कैद किया
हाथों से फिसलती गईं
रिक्त हुए जब हाथ
केवल हथेलियों पर
मिट्टी चिपकी रह गई
मन को हुआ संताप
ऐसे कैसे यादें बह गई
पर थी वे  एक ख्याल
कैसे रुक जातीं
जरासी जगह काफी थी
आने जाने के लिए
या दिल में समाने के लिए
जब किसी ने बरजा
शब्दों का न मिला साथ
मन के भाव स्पष्ट न कर पाई
खुद में सिमट कर रह गई
यादें तो यादें है
जाने कब बापिस आजाएं
वह आखें मूंदे रह गई
सारे दर्द सहती गई
कभी विद्रोही दिल न हुआ
यादें जैसी थीं वैसी ही रहीं 
कभी धुंधली हो जातीं  
कभी बहुत गहरी हो जातीं
आशा

11 मार्च, 2019

आँखें

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तेरी निगाहें हैं झील सी  गहरी
                                                             गहराई को  नापा नहीं जा सकता
                                                            प्रीत से लवरेज हैं वे
                                                         नजर अंदाज नहीं कर सकता
                                                        जरासी बात पर छलक जाती है
आंसू हैं अनमोल मोती से
उन को तोला नहीं जा सकता
है अजब सी कशिश उनमें
वही है विशेषता उन दौनों की
भोलापन उनसे छलकता
ना ही कोई दुराव न छल कपट
  सीधी सादी हैं  दोनों
 वे आइना   दिल की  
जो सच है उसी का साथ देती हैं
तभी तो उन पर सदा
मर मिटने को जी चाहता है
शबनमी अश्रुओं को
चूमने को दिल चाहता है
उनमें कोई परिवर्तन न होता 
जैसे हैं वैसे ही रहें
यही मेरा मन भी चाहता  |
आशा

08 मार्च, 2019

महिला दिवस










एक दूसरे का करें अभिनन्दन
महिलाएं ही करें स्वागत
आगत महिलाओं का
आओ सम्मान दिवस मनाएं
खुद ही अपना गुणगान करें
रोज रोज होते आयोजन
यह दिवस या उस दिन मनाने  के
याद नहीं रहते अब तो
किसका दिवस मनाया जाए
भाषण भक्षण का आयोजन करने का
है आज की विशेषता |
जो महिला आए दिन होती रहती प्रताड़ित
बड़ी  बड़ी  बातें करतीं है
सज बज कर   मंच पर आ कर
अन्दर कितानी धुटन भरी  है
आनन्  पर नजर नहीं आने देतीं
सच्चाई तो यह है वे  हो जाती हैं  मूक
 मुंह पर  ताला लग जाता है  
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है
क्या लाभ बहस में फंसने का
जहां थे वहीं रहना है
कोई परिवर्तन नहीं  हुआ है
ना ही  समाज में  ना लोगों की सोच में |
आशा 

07 मार्च, 2019

गरीबी एक अभिशाप











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है गरीबी एक अभिशाप
जब से जन्म लिया
यही अभिशाप सहन किया
मूलभूत आवश्यकताओं के लिए
भूख शांत करने के लिए
पैसों का जुगाड़ करने के लिए
मां कितनी जद्दोजहद करती थी
सुबह से शाम तक
यहाँ वहां भटकती थी
खुद भूखी  रह कर
 बच्चों का पेट भरती थी
कभी कभी दिन भर
 एक रोटी भी नसीब न होती थी
कडा दिल कर
बच्ची को  गोदी में ले कर  
बाहर काम करने निकली
पहले तो दुत्कार मिली
यह काम तुम्हारे बस का नहीं
अभी आराम करो
काम बहुत से मिल जाएंगे
पर बड़ी  मिन्नतों के बाद 
काम मिल पाया
सुबह से शाम तक हाथ
काम करते नहीं थकते
पर गरीबी ने मुंह फाड़ा
कम न हुई बढ़ती गई
कहावत सही निकली
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया
पैसों की आवक बढ़ी
अब बुद्धि का हुआ ह्रास
बाहरी दिखावे नें  हाथ बढाया
कर के उधारी
की आवश्यकताएं पूरी
वह भी उधार चंद हुई
फिर आए दिन की उधारी रंग लाई
मांगने वाले घर तक आ पहुंचे
भरे समाज में इज्जत नीलाम हुई
झूट के चर्चे सरेआम हुए
सारा सुकून खोगया
क्या ही अच्छा होता
यदि झूट का दामन न  थामा होता
कठिन समय तो गुजर जाता
पर शर्मसार तो न होना पड़ता |
आशा

06 मार्च, 2019

क्यूँ करें अभिमान

हूँ सक्षम किसी से कम नहीं
वे सभी कार्य कर सकती हूँ
पर कोई गलत नहीं
वर्जना यदि सही हो
स्वीकार लेती हूँ
पर गलतसही को ठीक से
पहचान लेती हूँ
पाया है श्रेष्ट जीवन का अधिकार
जब से नर तन पाया है
है अभिमान मुझे यही
श्रेष्ठ योनी में जन्म लिया है
अब सारे कर्ज चुकाना है
पूर्व के जन्मों में लिए कर्जों के|
यह अभिमान नहीं है
प्रभु को किया शत शत नमन है
क्यों करें अभिमान ?
मनुज का चोला पहना है
उसकी का प्रतिफल है 
मनुज योनी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती
तभी क्यों करें अभिमान ?
आशा |