26 अक्तूबर, 2019

दिवाली


25 अक्तूबर, 2019

है अमावस की रात



है अमावस की रात अंधेरी
  दीपक तुम  राह दिखाओ
भटके हुए  राहगीर को
गंतव्य तक पहुँचाओ |
 झिलमिल झिलमिल   जगमगाओ 
तम का ध्यान न मन में लाओ
है अन्धकार  तुम्हारे नीचे भी
उस से भी  अवधान हटाओ |
एकाग्र चित्त हो कर
करो  कर्तव्य पूर्ण  अपना
 स्नेह और  बाती से मिलकर
अन्धकार  दूर करो हवा के बेग से नहीं डरो |
अधिकार तुम्हारा है क्या यह न सोचो
परहित के लिए जीवन उत्सर्ग करो
अजनवियों  को राह दिखाओ
 उनका मार्ग प्रशस्त करो  |
आशा 

23 अक्तूबर, 2019

हो तुम मेरा सम्बल





                                  हो तुम मेरा सम्बल
अकेली नहीं हूँ मैं
जो भी  हैं मेरे साथ
सब हैं अलग अलग
पर मकसद सब का एक
एक साथ मिलकर
देते हर काम को अंजाम
कोई नहीं ऐसा 
जो उससे मुंह फेरे
उन सब का मनोबल
 टूटा नहीं है
आशा  पर टिके हैं
है आत्मविश्वास का साथ
 तुम्हारे हाथों का
 संबल भी तो है
सफलता पाने के लिए
सर पर हाथ तुम्हारा
 पूरा भी तो है |
आशा

20 अक्तूबर, 2019

कोई चाहत नहीं है


कोई चाहत नहीं है अब तो
चाहा नहीं कुछ किसी से
जी जी के मरने से है बेहतर
वे दोचार दिन खुशहाल जिन्दगी के |
उन लम्हों में खो जाने के लिए
है जिन्दगी बहुत छोटी सी
किस पल सिमट जाए नहीं जानती |
जी भर कर पल दो पल खुश होंने के लिए
सपनों से लिपट कर सोने के लिए
उन पलों में मन की बातें करने के लिए
छोटी छोटी बातों के निदान के लिए |
दो चार दिन हैं बहुत खुशहाल जिन्दगी के
पलक झपकते ही बीत जाएंगे
रह जाएगा यादों का जखीरा रात ढलते ढलते
हैं दो चार दिन खुशहाल जिन्दगी के |
                                                                                आशा

15 अक्तूबर, 2019

किसने कहा तुमसे


 
किसने कहा तुमसे
कि दामन थाम लो मेरा
क्या है सम्बन्ध मेरा तुमसे
जग जाहिर किया जब से
नफरत सी हो गई है
नजरों के सामने से हटे जब से
तुम किसी काबिल नहीं हो
केवल हो दिखावे की मूरत
या हो एक छलावा
ऊपर कुछ और अन्दर कुछ
जग जाहिर हुई है
असलियत तुम्हारी जब से
नहीं है कोई उन्सियत तुमसे
तुम्हारा प्यार है एक दिखावा
परमात्मा दूर रखे तुमसे
जिल्लत सहन नहीं होती
कितनी बार कहूँ तुमसे |
आशा 

14 अक्तूबर, 2019

अभिमान

अभिमान कहो या गर्व
कुछ तो ऐसा है
कि तुम्हारा मुखमंडल
उन्नत हुआ है
हमें भी नाज है तुम पर
बड़े दिल से सम्मान किया है
याद रहे कभी इसे
घमंड में न बदल देना
नहीं तो सर शर्म से झुक जाएगा
कर्तव्य ही छुप जाएगा
केवल अधिकार की चाहत
कभी पूरी न हो पाएगी
अभिमान मिट्टी में मिल जाएगा
फिर लौट कर न आएगा |
आशा


09 अक्तूबर, 2019

बुद्धि

 बुद्धि के दो रूप होते
कुबुद्धि और सुबुद्धि
जब भी पहली जाग्रत होती
समाज में विघटन होता
कई रावण पैदा होते
राम उन्हें नष्ट करने को
होते सचेत तीर मारते
बुद्धि को परिष्कृत करने की
जुगत सोचते रहते
जब सुबुद्धि आती
सभी कार्य सफल होते
समाज बहुत सचेत हो जाता
आगे बढ़ने का मार्ग खोजता
उन्नत समाज आगे आता |
                                                                          आशा