बगिया में फूलों की क्यारी
महकी सारी फुलवारी
ध्यान गया जब सुगंध पर
हुआ उत्फुल्ल मन
देखीं पुष्पों से लदी डालियाँ
देखे फूल देखी अधखिली कलियां
झांकती अनमोल पंखुड़ी उनमें से
जो मकरंद की रक्षा करतीं
जो मकरंद की रक्षा करतीं
मंद पवन के साथ बह चली
फूलों की मन मोहक सुगंध
मैं उस ओर बेंच पर
कब जा बैठी याद नहीं
मैं उस ओर बेंच पर
कब जा बैठी याद नहीं
मन लुभावन रंग बिरंगे
फूल खिले बड़े सुन्दर
फूल खिले बड़े सुन्दर
आकर्षित हुए तितली और भ्रमर भी
बारम्बार मंडरा रहे वे आसपास
स्पंदन से उनके
बढ़ी कलियों में हलचल
बढ़ी कलियों में हलचल
भौरे तो इस हद तक बढ़ गए
स्वतः बंद किया खुद को
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
मकरंद का पान करने के लिए
बंधक होना भी स्वीकार किया
पंखुडियों की बाहों में दुबक
रहा बंद तब तक
जब कली फूल बन गई
तभी बंधन मुक्त हो पाया
जब मकरंद से मन भरा
अलग हो चल दिया
दूसरे रंग बिरंगे पुष्पों की बाहों
में
उनकी पंखुड़ियों की पनाह में
होता इतना आकर्षण उन में
मोह नहीं छूटता अलग हो नहीं पाता
रंग बिरंगे प्यारे से
पुष्पों की पंखुड़ियों से |
पुष्पों की पंखुड़ियों से |
आशा