13 मई, 2020

वहीं हमारा घर होगा


चल सजनी आ चलें वहाँ
आकाश धरा मिलते जहां
वहाँ छोटा सा घर बनाएँ
हरियाली भरपूर लगाएं
जब भी पंछी वहाँ आएं
दाना चुगें प्यास बुझाएं
कितना सुखद एहसास होगा
तृप्ति का आभास होगा |
संचित सुखद पल जीने को
मन हो रहा बेकल
वह वहीं शांत हो पाएगा
जब तुम्हारा साथ होगा |
परम शान्ति का  अनुभव होगा 
कोइ व्यवधान नहीं होगा
प्रभु आराधन में लीन
मधुर ध्वनि मुरलिया की
जब भी सुन पाएंगे
श्रद्धा सुमन बरसाएंगे
परम प्रेम का आगाज़ होगा
जीवन तभी सार्थक होगा
दूर क्षितिज तक कभी
शायद ही कोई पहुंचा होगा
पर हमें न कोइ रोक सकेगा
वहीं हमारा घर होगा |
आशा 

11 मई, 2020

किसलय


बिना किसलय हुई  वीरान बगिया  
 माली की  देखरेख के बिना
माली उलझा अपने आप में
बिना सही  संसाधनों के |
एक समय ऐसा था
जब गुलशन परिसर में घुसते ही
सुगंध आने लगती थी
पूरी बगिया महक उठती थी
रंग बिरंगे खिलते पुष्पों से |
अब  पर्यावरण  प्रदूषण से
पुष्पों की खेती हुई प्रभावित
हरी डालियाँ सूख रहीं
कच्ची कलियाँ खिल न सकीं |
यही हाल यदि रहा
 बिना गुल होगा गुलशन बंजर
ना ही सुनाई देगा भ्रमरों का गुंजन
ना ही  उड़ेगी रंगबिरंगी तितलियाँ पुष्पों पर  |  
बच्चों का तितली पकड़ना
उनके पीछे दौड़ लगाना
बहुत आकर्षित करता है संध्या को
गुलजार गुलशन में घूमना |
वह है एक मुरझाया  किसलय
वीरान  बाग में बिना देखरेख के
या कोई माला के पुष्प सी
जिसे फैका गया उतार कर |
किसलय तभी शोभा देता है
जब तक टहनी पर लगा हो
या गुलदस्ते में सजा हो
अब क्या जरूरत उसकी |
आशा

10 मई, 2020

मातृ दिवस

आज मातृ दिवस को भेट है यह रचना -


मां की ममता पिता का प्यार
शब्दों में बयान  नहीं हो सकता
यह तो वही जानते है जिन्हें
यह नसीब नहीं होता |
हैं बहुत हतभागी वे जो
द्वार तक तो पहुंचे भी
पर रहे दूर दौनों से
कभी दुलाराए नहीं गए |
  अनुशासन का भय ऐसा रहा
यस मम्मा या नो पापा के सिवाय
कोई भी संवाद न हुआ
वे भूले दौनों का प्रेम भाव |
घर सराय में कैसे  बदला याद नहीं
कौन कब आता है ?कब जाता है?
क्या खाता है? क्या पीता है ?
इससे किसी को मतलब नहीं |
इससे तो पहले अच्छे थे
छोटे से  घर में रहते थे
 सब प्रेम के बंधन से बंधे थे
बिना कहे ही मां जान जाती थी
हम क्या चाहते थे ?
अब आधुनिकता की भेट चढ़ा जीवन
बदले प्रगाढ़ सम्बन्ध सतही में 
भेट चढ़े  आधुनिकता की जंग में  |


आशा