20 मई, 2020

सीमेंट के जंगल में (बेचारा मजदूर )


सीमेंट के जंगल में
मशीनों के उपयोग ने
किया उसे बेरोजगार
क्या खुद खाए
क्या परिवार को खिलाए
आज मेहनतकश इंसान
परेशान दो जून की रोटी को
यह कैसी लाचारी
बच्चों का बिलखना
सह नहीं पाता
खुद बेहाल हुआ जाता
जब कोई हल न सूझता
पत्नी पर क्रोधित होता
मधुशाला की राह पकड़ता
पहले ही कर्ज कम नहीं
उसमें और वृद्धि करता
जब लेनदार दरवाजे आये
अधिक असंतुलित हो जाता
हाथापाई कर बैठता
जुर्म की दुनिया में
प्रवेश करता |
आशा

19 मई, 2020

पद चिन्ह



 

दूर तक रेत ही रेत
उस पर पद  चिन्ह तुम्हारे
अनुकरण करना क्यूँ हुआ प्रिय मुझे ?
कारण नहीं जानना चाहोगे|
मैंने तुम्हें अपना गुरू
 दिल से माना है
तुम्हारा हर कदम जहाँ पड़ता है
उसे अपना देवालय जाना है|
एक उमंग से 
बड़ी ललक  से भर
तुम्हारा अनुसरण किया है
क्यूँ कि तुम हो मेरे लिए आदर्श | 
 अनुकरण तुम्हारा 
मेरा  जीवन सवार देता है
 आत्म संतुष्टि प्रदान करता है
सही  हो यदि  पथ प्रदर्शक 
पैर डगमगाते नहीं हैं |
यथा संभव सफल कार्य
 पर प्रोत्साहित करते हैं 
आगे बढ़ने के लिए मार्ग दर्शन देते
है यह बड़ी सौगात मेरे लिए  |
                                              आशा

18 मई, 2020

मैं क्या करू?


कहाँ गाऊँ क्या गुनगुनाऊँ
किस लय  को चुनू
किस स्वर को अजमाऊँ
पसोपेश  में हूँ आज
किसे अपना गुरू बनाऊँ
सब सहज ही कह देते हैं
आवाज तुम्हारी है मधुर
पर यह सच  नहीं है
मेरा मन रखने को
मुझे प्रोत्साहित करने को
झूटी तसल्ली देते है
अक्सर कहते है
 तुम्हारी अभिव्यक्ति में है दम
पर यह भी मेरा मन
  बहलाने को कहा जाता है
यह भी सच नहीं है
मैं यह भी  जानती हूँ
समय कैसे कटे
हरबार सोचती हूँ
नई  नई योजनाएं
बनाती हूँ पर हर जगह
असफल रहती हूँ
अब तो सोच का
दायरा भी हुआ सीमित
मैं बहुत उलझन में हूँ
क्या नया करू ?
कोई तो मार्ग होगा
मन बहलाने का अभी
किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हूँ
कोई मार्ग मुझे बतलाओ
मुझे राह सुझाव
मैं क्या करू?
ASHA

17 मई, 2020

पेड़ की छाँव


                                                                 छाँव घने पेड़ की
बातों बातों में खींच रही 
ले जा रही है बारम्बार मुझे
उस वृक्ष के नीचे जहां
हो रही फूलों की वर्षा
पेड़ की टहनियों से
कोमल पन्खुड़ियों की छुअन
मुझे है प्रिय बहुत
बचपन की याद आज
बरबस आ रही है मुझे
जब छोटे थे दरवाजे पर
जा कर फूल इकठ्ठे करते थे
माँ की वर्जना पर
बहुत बेमन से उनको
बाहर फेंक देते थे
घर को साफ रखने  की
 हिदायत ही काफी   थी
निगाहों का  डर ही था पर्याप्त
दोबारा कहना नहीं पड़ता था
हुआ है बहुत बदलाव
आज के बच्चे कुछ
सुनना ही नहीं चाहते
करते हैं मनमानी
दिनभर व्यस्त रहते है
 मोबाइल व्  कम्प्युटर में
बाहर की कोई वस्तु
 उन्हें आकृष्ट नहीं करती 
हो रहे हैं दूर बहुत 
प्रकृति से |
आशा