03 जून, 2020

समर क्षेत्र




घोर संग्राम छिड़ा है
देश युद्ध भूमि बना है
कोरोना महांमारी से
दो दो हाथ करने को |
देश विविध  समस्याओं से
 भी जूझ रहा है
पर हिम्मत नहीं हारी है
ना शब्द निकाल फैका है
 दिमाग के शब्द कोष से |
कोई भी प्रयत्न करने में
हिचकिचाहट कैसी
भाग्य हमारे साथ है
यह भी विचार किया है |
जरा सी है जिंदगानी
जीवन है एक समर भूमि
डट कर सामना करने का
वादा किया  है खुद से |
कायर पीठ दिखाकर
पीछे हट जाते हैं
पर हम पूरे  जोश से
खड़े हैं समर भूमि   में |
ईश्वर पर अटूट है श्रद्धा
समर में पीठ दिखा कर
भागेंगे नहीं कायर की तरह
 यही वादा किया है खुद से |
आशा 

02 जून, 2020

मेरी कलम की स्याही सूख गई है




मेरी कलम की स्याही सूख गई है
क्या यह कोई अजूबा है ?
नहीं यह एक तजुर्बा है
जब मन ना हो कुछ लिखने का
अपने विचार व्यक्त करने का
तब कोई तो बहाना चाहिये
मन में आए इस विराम को
किसी का तो उलाहना चाहिए
कलम के रुक जाने से
विचारों के पैमाने से
स्याही छलक नहीं पाती
अभिव्यक्ति हो नहीं पाती
जब कुछ विश्राम मिल जाता है
फिर से ख्यालों का भूचाल आता है
कलम को स्याही में डुबोने का
जैसे ही ख्याल आता है
विचारों का सैलाब उमड़ता है
गति अविराम हो जाती है
कलम में गति आ जाती है
सारे दरवाजे खोल जाती है
कलम जिसके हाथ में होती है
वैसी ही हो जाती है
साहित्यकार रचना लिखता है
न्यायाधीश फैसला
साहित्यकार सराहा जाता है
कलम का महत्व जानता है
पर एक कलम ऐसी भी है
फाँसी की सजा देने के बाद
जिसकी निब तोड़ दी जाती है
अनगिनत विचार मन में आते हैं
फिर से लिखने को प्रेरित करते हैं !
                                       आशा

01 जून, 2020

मनमुटाव आपस का

रात भर करवटें बदलीं
तुम्हारे इंतज़ार में
मगर  तुम न आए
क्यूँ झूटे वादे किये उससे ?
क्यूँ  यूँ ही बहकाया उसे |
तुमने यह तक न सोचा
कि क्या गुजरेगी उस पर
वह तो दिन रात परेशान हाल रहती
 खोई रहती तुम्हारी यादों में |
इंतज़ार और कितना कराओगे उसे  
उसकी जगह यदि तुम होते
क्या हाल होता तुम्हारा
यह भी सोच कर देखना |
जब दफ्तर से आने में देर हो जाती थी  तुम्हें
 वह एकटक द्वार पर निगाहें टिकाए रहती थी
किसी काम में भी मन न लगता था
अधिक देर होने पर शिकायतों का
अम्बार लगा देती थी |
तुम भी क्षमा याचना करते नहीं थकते थे
अब बात तो दूर हुई
एक दूसरे को देख ना भी नहीं चाहते
अब इतना बदलाव किस लिए ?
कोई  कारण तो रहा  होगा |
जब तक आपस में बातचीत न करोगे
कोई मसला हल न होगा
किसी को तो पहल करनी होगी
मसला हल कैसे होगा |
आशा

31 मई, 2020

एक और मील का पत्थर(भूमिका "आकांक्षा ")

मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि आदरणीय  पाठकों  के समक्ष प्रस्तुत है मेरी पुस्तक आकांक्षा(ग्यारहवा कविता संकलन) जिसकी भूमिका लिखी है श्रीमती साधना वैद ने |लीजिये प्रस्तुत है भूमिका -

एक और मील का पत्थर
मन आत्म विभोर है की मती दीदी आदरणीय आशा लता सक्सेना जी जा एक और नवीन कविता
संग्रह”आकांक्षा “ शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है |यह उनका ग्यारहवा कविता संग्रह है |
लेखन की गजब की क्षमता है दीदी में और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमित छाप छोड़ जाता है |
समय के साथ दीदी के लेखन में दिन व् दिन निखार आया है रचनाओं में संवेदना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जा  रही है भावों में अतुलनीय गहराई आई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय ,गंभीर एवं सम्प्रेशानीय होती ही  है|विषयानुरूप शब्दों के चयन में भी उन्हें महारत हांसील है |उनके मन में मस्तिष्क में विचारों का
अविरल निर्झर सतत प्रवाहमान रहता है विषय सुझा ते ही उनकी रचना पलों में अपना मनोहारी रूप और आकार लेलेती है |
यह उनकी अद्भुद सृजन शीलता का परिचायक है |उनकी लेखनी हर विषार पर खूब चलती है |
हमारे आसपास की कोई भी घटना कोई भी पात्र या कोई भी प्रसंग उनकी रचना का कथ्य बन जाता है |
हर विषय के विश्लेषण करने  की  उनकी दृष्टि विरल है और सहज ही प्रभावित कर लेती हैं
इस काव्य की सभी रचनाएं बहुर सुन्दर  एव् प्रभावी हैं  |
पंखुड़ी ,बयार ,मन बचपन का ,दुआ बद्दुआ ,मुझे न्याय चाहिए आदि अनेक रचनाएं हैं जिनकी भाव भूमि  अत्यन्त सशक्त है और लेखिका ने बड़ी दक्षता के साथ अपनी भावनाओं को उनपर उकेरा है |
दीदी की रचना धर्मिता को मैं हृदय से नमन करती हूँ एवं आशा करती हूँ कि उनका यह काव्यसंकलन “आकांक्षा” पाठकों के मन को निश्चित रूप से मोहित करेगा |
इस आलेख के माध्यम से अपनी अशेष शुभकामनाएं और शुभिच्छाएं दीदी के लिए प्रेषित कर रही हूँ |
उनकी लेखनी अबाध गति से चलतीरहे एवं हमलोगों के लिए प्रेरणा का  स्त्रोत बनी रहे यही मनोकामना है |
इस काव्य संकलन के प्रकाशन अधीरता से प्रतीक्षा है |
ढेर सारी अग्रिम बधाई और अनंत अशेष शुभ कामनाओं के साथ |

साधना वैद(कवियत्री एवम लेखिका )