11 जून, 2020

बदला मौसम


लो  आ गई काली बदरिया
मौसम  ने करवट बदली है
कभी नन्हीं  बूँदे बरस जाती हैं
 आने को है वर्षा जताती हैं
 वर्षा  का आग़ाज करा  जाती हैं
 हल्की सी ठंडक बढ़ी है
 खुशनुमा मौसम हुआ है
 बहती है  मनमोहक  बयार
मन  रमा  रह जाता  यहाँ
 हरी भरी वादी में
रंग बिरंगे  फूल खिले हैं
 बेंच पर बैठ यहाँ देखे
 जो दृश्य विहंगम
 मन के केनवास पर  उतारने का
गहरे रंगों से उन्हें  सजाने का
हुआ  है  अरमां जागृत
 भीतर का सजग  चित्रकार जगा  है  
कल्पना जगत   में खोने लगा  है
मनमौजी है तूलिका उसकी खूब चलती है
यूँ तो अभी  बाहर भ्रमण  का मन है
पर पानी में भीगने का भी  डर है
 जकड़ लिया सर्दी ने यदि बड़ी समस्या होगी
कड़वी दवा से साक्षात्कार होगा
उससे दूर भागने का कोई विकल्प न होगा
घूमने का सारा मजा किरकिरा होगा |
आशा

09 जून, 2020

संग्राम


दिल और दिमाग
हैं तो सहोदर
एक साथ रहते है पर
 संग्राम छिड़ा है  दौनों में |
आए दिन की बहस
 नियमों का उल्लंधन
एक ने चाहा दूसरे ने नकार दिया
हो गई है आम बात  |
कभी दिल की जीत  भारी
 कभी मस्तिष्क की जीत हारी
हार जीत के खेल में
  तालमेल नहीं है  दौनों में |
 नजदीकियां बढ़ते  ही
 नया  विवाद जन्म ले लेता है
फिर से वही बहस
 आए दिन की तकरार
उसमें  उलझे  रहते है दौनों |
  संग्राम थमने का
नाम ही नहीं लेता
  दौनो धरती के हुए  दो ध्रुब
या धरा और  आकाश |
|प्रेम प्यार से  एक साथ
 मिलजुल कर रह नहीं पाते
मिलते ही विरोध दर्शाते  
अपनी दुनिया में जीना चाहते |
 बहुत दुखी हूँ
 किस तरह उनमें तालमेल बनाऊ
 कैसे मध्यस्तता करूं  
 इस  संग्राम का अंत करूं |
 भूले सामंजस्य बना कर
 रहने का मूल मन्त्र
खुद भी रहते परेशान
और दूसरे की भी चिंता नहीं |
 हुए  ऐसे  आत्म केन्द्रित
दो चक्की के पाटों के बीच फंसी हूँ
मेरा क्या होगा कब थमें संग्राग
अब तो यह तक नहीं सोच पाती |
आशा


08 जून, 2020

विचलन मन का


 

 आशा  के  पालने  में झूला
ऊंची से ऊंची पैंग बढ़ाई   
मन को फिर भी चैन न आया
तेरा मन क्यूँ घबराया?
निराशा ने डेरा डाला
 तेरे मन के आँगन में
शायद इसी लिए उससे
 तेरा मन  भाग न पाया |
यही विचलन मन में
ठहराव  नहीं  जीवन में  
 किसी निष्कर्ष पर पहुँच  मार्ग
प्रशस्त भी न हो पाया |
कैसे निकले मन की कशमकश से
उलझनों की दुकान से
कहीं तो शान्ति के दर्शन हों
ऊंची पैंगों  का कुछ तो प्रभाव हो |
एक ही आशा लगाए हूँ
बारह वर्ष में तो
घूरे के भी दिन फिरते
फिर तेरे   नहीं क्यूँ  ?
ईश्वर  सब देख रहा है
तुझसे क्यूँ  है  दूरी  उसकी
वरदहस्त जब सर पर होगा 
तेरी निराशा का कोहरा छटेगा |
आशा