20 जुलाई, 2020

कठिन समय जब आता

                                   एक दौर था ऐसा जब वह 
मायूस सा बुझा बुझा रहता था  
हर पल उसका सिहरन से भरा होता था
   घूम जाते  हैं वे लम्हें  मस्तिष्क में आज भी |
सिहरन से  भरे वे पल  अब यादों में सिमटे हैं
कितनी नृशंस हत्याओं से जब रूबरू हुए थे
भूल नहीं पाते  वे  हादसे एक नहीं अनेक  
जब लाशों के अम्बार लगे रहते थे |
  अनगिनत लोग  लहूलुहान हुए थे
 जब  भीड़ पर बलप्रयोग  हुआ भरपूर
नहीं बच पाए प्राकृतिक आपदाओं से भी बेचारे
प्रथम पेज अखवारों के भरे होते महामारी समाचारों से 
  आपस में विचारों को न मिल पाने  से  
नित नए विवाद जन्म लेते रहते पड़ोसी देशों  में  
आपस में  मित्र भाव भूल बैर मन में लिए  रहते
आए दिन का खून खराबा जीना दूभर किये रहता  |
जीवन में फैली  अशांति  सरल नहीं होती  जीवन शैली
हर समय मर मर कर जीने की कला सब नहीं जानते
पर जांबाज सिपाही रहते तत्पर हर क्षण  देश हित के लिए
प्रकृतिक आपदाओं  से भी  मोर्चा लेते नहीं हारते
 हैं  सक्षम आज  भी  हर हादसे से निवटने में |
देश में  चिकित्सक भी  सजग प्रहरी की तरह  
दिन रात जुटे रहते निस्वार्थ भाव से  सेवारत रहते
 वे  सहयोग पूरे तन मन से करते गर्व होता है उन पर
 जिनका  उद्देश्य  है देश हित सर्वोपरी |
आशा

19 जुलाई, 2020

तेरी मेरी केमिस्ट्री

                                 जब भी तेरे दर  से गुजरे वादेसवा
 हाथों की मेंहदी की  महक साथ ले जाए
तेरी जुल्फों की हलकी सी  जुम्बिश भी
 मेरे मन को अपने साथ बाँध ले जाए |
तेरी यादों का फलसफा  है इतना बड़ा
 कहाँ से प्रारम्भ करूं कहाँ समाप्त करूं
मन को तृप्ति नहीं मिल पाती
जब तक उसे पूरा आत्मसात  न करूं |
 होती है अजीब सी हलचल
 मन के किसी कौने में
बेचैनी बढ़ती जाती है
 कैसे उसे संतुष्ट करूं |
 तेरे आने की खबर  मिलते  ही
निगाहें दरवाजे से हटने का नाम नहीं लेतीं
पर जब नहीं आने का 
कोई बहाना खोज लिया जाता  
फोन की घंटी बजते  ही 
 गहरी निराशा होती |
दुखी मन  का हाल न पूंछो
किससे व्यथा अपनी कहूं
जो सोच नहीं पाते दिल की नजाकत को
 उनसे दिल का हाल  बयान कैसे  करूं |
मुझे कोई मार्ग  नहीं मिलता
 अपनी बेचैनी छिपाने का  
है  दिल मेरा  खुली किताब का एक पन्ना
फिर भी क्या सब पढ़ कर समझ न पाएगे ?
क्या कोई हल नहीं मिलेगा
तुम्हें मुझे  समझने का 
इस दूरी को पाटने का
तेरी मेरी केमिस्ट्री जानने का |

आशा

18 जुलाई, 2020

क्या बड़ी भूल कर बैठी है






छूने लगी है  हर   सांस
 तुम्हारी धड़कनों को
जीने का है मकसद क्या ?
 यह तक न सोच पाई |
 की इतनी जल्द्बाजी
 निर्णय लेने  में
स्वप्नों में वह कल्पना भी
 बुरी नहीं लगती थी |
उससे उबर भी न पाई थी
कि सच्चाई सामने आई
पर  वास्तविकता से
 सामना इतना  सरल नहीं है
 उस पर  यदि विचार करो  |
सच्चाई छुप नहीं पाती
जब झूट का सहारा लेती
तभी  तो सिर उठाती है
उबाऊ जीवन के बोझ के  
आगे आगे चलती है |
किसी और के  मुखोटे को
अपने मुह पर  लगा कर 
उसे ही अपना मान कर
 क्या बड़ी भूल कर बैठी है ?
आशा


17 जुलाई, 2020

वर्षा के रंग (हाईकू )

१-वर्षा जल की
झड़ी लगी भादों की
तन भिगोती
२-कितने मीठे
कोयल के स्वर हैं
मीठे आम से
३- दादुर बोले
तलैया के समीप
करते आकृष्ट
४-नाचता मोर
छम छम करके
प्रिया के लिए
५- पपीहा बोले
कानों में रस घोले
अनमोल है
६-सूखा सावन 
वर्षा को तरसा 
मन हर्षाया |

                                                                             आशा

16 जुलाई, 2020

कोरोना से जंग

                                      तेरी हर आहट पर
अब नहीं  चौंकती  
 कोरोना डरा नहीं मुझको
मैं हूँ क्या तू नहीं जानता|
मुझे सभी युक्तियाँ 
 मालूम हो गई हैं
तुझसे छुटकारा पाने की
मैंने भी कच्ची गोलिया 
नहीं खेली हैं
जो तुझसे भयभीत रहूँ|
मास्क पहन कर रखती हूँ
आते जाते करती हूँ
  हस्त प्रक्षालन  
व्यर्थ बाहर नहीं घूमती
सभी को  सेनेटाईज करती हूँ|
 सावधानियां पूरी  बरतती  हूँ
लोगों  से उचित
  दूरी  रख कर
दूकान पर पग धरती हूँ|
घर से तभी निकलती हूँ
 जब हो अति आवश्यक
अनावश्यक सामान 
एकत्र नहीं करती|
भूखों  का भी
 ख्याल  रहता मुझे
अन्न दान में योगदान
 कभी कभी करती हूँ|
नहीं हूँ इतनी सक्षम कि  
आर्थिक मदद कर पाऊँ
पर मन  संकुचित नहीं
फिर भी जरूरत पड़ने पर  
इनकार नहीं करती|
यथा संभव सहायता
 ही रहता उद्देश्य मेरा
 ए कोरोना भाग जा 
मेरे देश को मुक्ति दिला |
इतना सताया है बहुत हुआ
 अब और नहीं
तेरा नामोनिशान 
भी मिट जाएगा
दुनिया के परदे से|
कोई  नामलेवा भी
 न रहेगा तेरा
 ओ कोरोना दुश्मन देश के 
   तुझे अब  अलबिदा |
आशा