24 जुलाई, 2020

बचपन


बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
 दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
 चलता रहता था कुछ देर
 समय बहुत कम होता था
इस फिजूल के कार्य के लिए |
जल्दी से मन भी जाते थे
 कहना तुरंत मान लेते थे
तभी तो नाम रखा था
 सब ने “यस बॉस” हमारा  |
किसी बात पर बहस करना
आदत में शामिल नहीं था
सब का कहना बड़ी सरलता से  
बिना नानुकुर के स्वीकार्य होता था |
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी
अहम् का जन्म हुआ
क्यूँ ?क्या? किसलिए?का   
सवाल  हर बार मन में उठता है |
इतना सरल स्वभाव अब कहाँ
इसी लिए तो  हर बार
उलझन से बच निकलने के लिए
 बचपन के वे  दिन याद आते हैं |
 कभी भूल नहीं पाते
 बचपन का वह भोलापन
बड़े प्यार से सब के साथ
 मिलजुल कर रहने की साध |
 |
आशा

22 जुलाई, 2020

हाईकू




१-उलझा मन
तेरे ही आसपास
धीर न धरे
२-प्रीत लगाई
तुझसे एक बार
भूली खुद को
३-प्यार नहीं है
किसी का मोहताज
ना कोई बाधा
४-जान रही हूँ
 सारी हैं शरारते
सजा मिलेगी
५-गिरवी श्वास
 मेरी तेरे लिए है
कैसा है सांझा
६-सूखा सावन
तुझे याद करता
साजन मेरे
आशा

21 जुलाई, 2020

बरसात


                                   था इन्तजार हर वर्ष की तरह  
बरसात के इस   मौसम का
धरती में दरारे पड़ी थी
अपना दुःख  किसे बताती |
झुलसी  तपती गरमी से वह
 तरस रही  थी वर्षा के लिए
हरियाली की धानी चूनर से
 सजने के लिए |
बड़ी बड़ी बूंदे बरसीं
 फिर मौसम ने ली अंगड़ाई
बादल गरजे बिजली कड़की
ली करवट  इस मौसम ने |
कहीं अती भी हो गई
बाढ़ आने से जिन्दगी बेहाल हुई
घर  खेत खलिहान  डूबे सारे
 घर से बेघर हुए लोग |
 उजड़ती  गृहस्ती देख रहे थे
 सूनी सूनी आँखों  से
तब भी कोई मदद नहीं मिल पाई
 जब  गुहार लगाई शासन से |
तिनका तिनका जोड़ा था
 कितना समय गुजारा था
उस छोटे से घर  के निर्माण में
 जो अब जल मग्न हुआ  |
एक झटके में  बाढ़  का जल
 सब कुछ बहा कर  ले गया  
किसी ने कल्पना तक न की थी
 कि ऐसा समय भी आएगा |
बुने गए सारे स्वप्न ध्वस्त हुए
 बिखरे क्षण भर में ताश के पत्तों जैसे 
जो कुछ बचा समेट लिया
 चल दिए नए बसेरे की खोज में|
 जाने कब हालात में परिवर्तन आएगा
बरसात का कहर कब  थम पाएगा
क्या ईश्वर ने परिक्षा ली है धैर्य की ?
या प्रारब्ध में यही लिखा है 
कितना और संघर्ष है जिन्दगी में
विचार मग्न  वे  सोच रहे हैं मन में  |
आशा

20 जुलाई, 2020

कठिन समय जब आता

                                   एक दौर था ऐसा जब वह 
मायूस सा बुझा बुझा रहता था  
हर पल उसका सिहरन से भरा होता था
   घूम जाते  हैं वे लम्हें  मस्तिष्क में आज भी |
सिहरन से  भरे वे पल  अब यादों में सिमटे हैं
कितनी नृशंस हत्याओं से जब रूबरू हुए थे
भूल नहीं पाते  वे  हादसे एक नहीं अनेक  
जब लाशों के अम्बार लगे रहते थे |
  अनगिनत लोग  लहूलुहान हुए थे
 जब  भीड़ पर बलप्रयोग  हुआ भरपूर
नहीं बच पाए प्राकृतिक आपदाओं से भी बेचारे
प्रथम पेज अखवारों के भरे होते महामारी समाचारों से 
  आपस में विचारों को न मिल पाने  से  
नित नए विवाद जन्म लेते रहते पड़ोसी देशों  में  
आपस में  मित्र भाव भूल बैर मन में लिए  रहते
आए दिन का खून खराबा जीना दूभर किये रहता  |
जीवन में फैली  अशांति  सरल नहीं होती  जीवन शैली
हर समय मर मर कर जीने की कला सब नहीं जानते
पर जांबाज सिपाही रहते तत्पर हर क्षण  देश हित के लिए
प्रकृतिक आपदाओं  से भी  मोर्चा लेते नहीं हारते
 हैं  सक्षम आज  भी  हर हादसे से निवटने में |
देश में  चिकित्सक भी  सजग प्रहरी की तरह  
दिन रात जुटे रहते निस्वार्थ भाव से  सेवारत रहते
 वे  सहयोग पूरे तन मन से करते गर्व होता है उन पर
 जिनका  उद्देश्य  है देश हित सर्वोपरी |
आशा

19 जुलाई, 2020

तेरी मेरी केमिस्ट्री

                                 जब भी तेरे दर  से गुजरे वादेसवा
 हाथों की मेंहदी की  महक साथ ले जाए
तेरी जुल्फों की हलकी सी  जुम्बिश भी
 मेरे मन को अपने साथ बाँध ले जाए |
तेरी यादों का फलसफा  है इतना बड़ा
 कहाँ से प्रारम्भ करूं कहाँ समाप्त करूं
मन को तृप्ति नहीं मिल पाती
जब तक उसे पूरा आत्मसात  न करूं |
 होती है अजीब सी हलचल
 मन के किसी कौने में
बेचैनी बढ़ती जाती है
 कैसे उसे संतुष्ट करूं |
 तेरे आने की खबर  मिलते  ही
निगाहें दरवाजे से हटने का नाम नहीं लेतीं
पर जब नहीं आने का 
कोई बहाना खोज लिया जाता  
फोन की घंटी बजते  ही 
 गहरी निराशा होती |
दुखी मन  का हाल न पूंछो
किससे व्यथा अपनी कहूं
जो सोच नहीं पाते दिल की नजाकत को
 उनसे दिल का हाल  बयान कैसे  करूं |
मुझे कोई मार्ग  नहीं मिलता
 अपनी बेचैनी छिपाने का  
है  दिल मेरा  खुली किताब का एक पन्ना
फिर भी क्या सब पढ़ कर समझ न पाएगे ?
क्या कोई हल नहीं मिलेगा
तुम्हें मुझे  समझने का 
इस दूरी को पाटने का
तेरी मेरी केमिस्ट्री जानने का |

आशा