28 जुलाई, 2020

पदचाप तुम्हारी


                                      पदचाप तुम्हारी धीमीं सी
कानों में रस घोले
था इंतज़ार तुम्हारा ही
यह झूट नहीं है प्रभु मेरे |
जब भी चाहा तुम्हें बुलाना
अर्जी मेरी स्वीकारी तुमने
अधिक इंतज़ार न करवाया
धीरे से पग धरे कुटिया में |
तुम्हारी हर आहट की है पहचान मुझे  
कितनी भी गहरी नींद लगी हो
या  व्यस्तता रही  हो
तुम्हारी पदचाप का अनुसरण है प्रिय मुझे |
इसे मेरी  भक्ति  कहो  
या जो चाहे नाम दो
 इससे  मुझे वंचित न करो
 यही  है  मेरा अनुराग तुमसे |
चाहे कोई  इसे अंधभक्ति कहे
 है मेरे जीने का संबल यही
अपना सेवक जान मुझे
चरणों में दो स्थान मुझे |
हूँ एक छोटा सा व्यक्ति
तुम्हारे चरणों की धुल बराबर
यही  समझ स्वीकार करो
 मेरा बेड़ा पार करो |
आशा


27 जुलाई, 2020

हाईकू (अश्रु जल )



                                                                  १-आँखों का जल 
                                                                समुद्र के पानी  सा 
                                                                     खारा लगे है
२- बिना जल से
हैं नैनों के झरने
बहते जाते
३-कोरी हैं आँखें
सुन्दर नहीं है वे
जल के बिना
४-छलकी आँखें
बिना कारण नहीं
दुखी है मन 
५-धैर्य अश्रु का 
खोना नहीं चाहता 
रिसता नहीं 
६-बाढ़ आगई 
मुख जल से भरा  
डूबा नहीं है
७-दो बूँदें  नहीं
अश्रुओं की नैनों में
है कैसा मन
आशा


26 जुलाई, 2020

है उद्देश्य मेरा

 
                                    हम भी कहाँ हर बार लिखेंगे
देखेंगे ,सोचेंगे ,विचार करेंगे
फिर कुछ लिखने का प्रयास करेंगे
 जो कुछ लिखेंगे बड़े प्यार से लिखेंगे |
तेरे विचार और कलम मेरी
कुछ भी नया  नहीं है
मुकाबला जीतेंगे हार नहीं मानेगे
सफलता का परचम फैलाएंगे |
खुद पर भरोसा है मुझको
कभी स्वप्नों में जीना नहीं सीखा
कठोर धरा से है परिचय मेरा
सत्य की राह होती कठिन पर असंभव नहीं |
 मार्ग में कितनी भी बाधाएं  आएं  
पग पीछे नहीं हटाऊंगी
आगे बढ़ने का प्रयास करती रहूंगी   
हार से ज़रा भी नहीं घबराऊंगी |
एकलव्य सा  ध्यान किया है  केन्द्रित
कहीं वह भटक न जाए यही उद्देश्य  है  मेरा
इसी  पर  केन्द्रित सारा  अवधान मेरा |
यदि तुमने साथ दिया  मेरे  हाथ  में होगी
वह बड़ी सी ट्रोफी और गुलदस्ता
चेहरा दर्प से दमकेगा 
 तुम्हें भी प्रसन्नता होगी मेरी सफलता पर  |
आशा


  

25 जुलाई, 2020

दिल का सुकून









 


मेरे मन में खलिश पैदा करके 
तुम्हें क्या मिलता है  
मेरे दिल का सुकून
कहीं खो गया है |
उससे तुम्हारे मन में
 अपार शान्ति का एहसास जगा है
कभी दिल खोल कर हँसे नहीं
सदा अलग थलग रहे |
मैंने  घुटन भरे जीवन से
 कभी सांझा नहीं किया है
सदा बुझे बुझे रहने में
 है क्या मजा ?
जिन्दगी जीने का अंदाज
 कुछ तो नया हो
यह चाह है मन की
कोई बाध्यता नहीं है |
 सब हैं अपनी  मर्जी के मालिक
तुम्हारी सोच मेरी सोच से है भिन्न
कभी मेल नहीं खाती
दौनों हैं विपरीत दिशाओं के यात्री |
बहस से क्या लाभ
अपने ढंग से जीवन जियो
 पर फिर भी रहो प्रसन्न
खुश रहो और  खुशियाँ बांटो  |
असंतुष्टि  भरे जीवन से
 कुछ भी हांसिल नहीं होता
चार दिनों का है  जीवन  
कब समाप्त हो जाए मालूम नहीं | 
समय के पीछे क्यूँ भागें
हर  पल को भर पूर जियें
स्वर्ग से सुनहरे  जीवन का 
                                      क्यूँ न उपभोग करें |
                                              आशा 

24 जुलाई, 2020

बचपन


बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
 दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
 चलता रहता था कुछ देर
 समय बहुत कम होता था
इस फिजूल के कार्य के लिए |
जल्दी से मन भी जाते थे
 कहना तुरंत मान लेते थे
तभी तो नाम रखा था
 सब ने “यस बॉस” हमारा  |
किसी बात पर बहस करना
आदत में शामिल नहीं था
सब का कहना बड़ी सरलता से  
बिना नानुकुर के स्वीकार्य होता था |
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी
अहम् का जन्म हुआ
क्यूँ ?क्या? किसलिए?का   
सवाल  हर बार मन में उठता है |
इतना सरल स्वभाव अब कहाँ
इसी लिए तो  हर बार
उलझन से बच निकलने के लिए
 बचपन के वे  दिन याद आते हैं |
 कभी भूल नहीं पाते
 बचपन का वह भोलापन
बड़े प्यार से सब के साथ
 मिलजुल कर रहने की साध |
 |
आशा