11 अगस्त, 2020

बादल





इधर उधर से आए बादल
आसमान में छाए बादल
आसमां हुआ स्याह
घन घोर घटाएं छाई  है | 
जब बदरा हुए इकट्ठे
 गरजे तरजे टकराए आपस में 
टकराने से हुआ  शोर जबरदस्त 
विद्द्युत कौंधी  रौशनी फैली गगन में |
मोर ने पंख फैलाए किया नृत्य     
मोरनी को रिझाने को
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल ने तान सुनाई है
वर्षा की  ऋतु आई है |
जैसे ही जमाबड़ा हुआ बादलों का 
मोटी बड़ी बूँदें टपकीं 
धरती तर बतर हुई
सध्यस्नाना युवती सी खिल गई |
आसमान से टपकी जल की बूँदें
 वृक्षों से टपकी पत्तों में अटकीं
फिर झरझर झरी  ऐसी जैसे 
 धरा की काकुल से उलझ कर आई हैं |
आशा



09 अगस्त, 2020

कैसे निजात पाऊँ


मन भाता कोई नहीं है
 नहीं किसी से प्रीत  
है दुनिया की रीत यही
 हुई बात जब  धन की |
सर्वोपरी जाना इसे
 जब देखा भाला इसे
भूले से गला यदि फंसा
 बचा नहीं पाया उसे |
हुआ  दूभर जीना  भी
 न्योता न आया यम का
बड़ी बेचैनी हुई जब
 जीवन की बेल परवान न चढ़ी |
अधर में लटकी डोर पतंग की
 पेड़ की डाली में अटकी
जब भी झटका दिया
 आगे न बढ़ पाई फटने लगी |  
दुनिया में जीना हुआ मुहाल
 अब और कहाँ जाऊं
कहाँ अपना आशियाना बनाऊँ
 जिसमें खुशी से रह पाऊँ |
मन का बोझ बढ़ता ही जाता
 तनिक भी कम न होता
कैसे इससे निजात पाऊँ 
दिल को हल्का कर पाऊँ |
आशा

07 अगस्त, 2020

आत्मबल में सराबोर


ना पीछे हटी ना ही  मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
 खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से  रही सराबोर  सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
 पंख फैला कर उड़ने के
 अम्बर में ऊंचाई  छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
पर  मोर्चा अभी तक छोड़ा नहीं है
हार का कोई कारण नहीं है  
हर बार नए जोश से उठी
पुराने स्वप्न साकार करने हैं  |
भरी हुंकार नए स्वप्न सजोने को
कभी गलतफहमी नहीं पाली
खुद की कार्य क्षमता पर
 मनोबल को बढाया ही है |
हूँ जीत के करीब  इतनी
कभी हार स्वीकारी नहीं है
हूँ खुद के भरोसे पर जीवित  
 इस छोटी सी जिन्दगी में |
आशा

06 अगस्त, 2020

खोखला मन







मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने  आई
मन ने की बगावत  हुई बौखलाहट
 झुझलाहट में  गलत राह पकड़ी
 कब  बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया   
अब क्या करे  ?किससे  मदद  मांगे   ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
 जब तीर कमान से निकल गया
 खाली हाथ  मलता रह गया 
उसका  दिल हुआ  बेचैन फिर भी  
कोई  निदान  इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर  रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी  सतही ढंग से  पढ़ी थीं
  गूढ़ अर्थों का मनन  किया नहीं  था
 सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया  मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया  वह  खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया  |
आशा