इधर उधर से आए बादल
आसमान में छाए बादल
आसमां हुआ स्याह
घन घोर घटाएं छाई है |
जब बदरा
हुए इकट्ठे
गरजे तरजे टकराए आपस में
टकराने से हुआ शोर जबरदस्त
विद्द्युत कौंधी रौशनी फैली गगन में |
मोर ने पंख फैलाए किया नृत्य
मोरनी को रिझाने को
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल ने तान सुनाई है
वर्षा की
ऋतु आई है |
जैसे ही जमाबड़ा हुआ बादलों का
मोटी बड़ी बूँदें टपकीं
धरती तर बतर हुई
सध्यस्नाना युवती सी खिल गई |
आसमान से टपकी जल की बूँदें
वृक्षों से टपकी पत्तों में अटकीं
फिर झरझर झरी ऐसी जैसे
धरा की काकुल से उलझ कर आई हैं |
आशा