17 अगस्त, 2020

परिवर्तन

                           देखे कई उतार चढ़ाव
इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में  |
 युवावस्था आते ही
भोला बचपन  तिरोहित हुआ
दुनियादारी में ऐसा उलझा
परिवर्ता आया व्यक्तित्व में |
 बचपन में था हंसमुख चंचल
 अब ओढ़ी गाम्भीर्य की चादर
खुद का व्यक्तित्व किया समर्पित
 दुनियादारी की इस  दौड़ में |
युवावस्था  भी बीत चली 
 जब दी  दस्तक वृद्धावस्था ने
अंग हुए शिथिल थकावत ने आ घेरा  
पहले जैसी चुस्ती फुर्ती  अब  कहाँ |
फिर से आया परिवर्तन अब
देखी एक बड़ी समानता
बचपन और वृद्धावस्था में
हर बात पर जिद्द करना 
कई बार   कहने पर एक बार सुनना
हर समय मनमानी करना |
कथनी और करनी में आया बड़ा अंतर  
मन की बात किसी से न कही
अन्दर ही मन में  घुटते   रहे
परेशानी न बांटी किसी से अंतर्मुखी हुए |
पराश्रित हुए हर छोटे से कार्य के लिए
बचपन की तरह जिए   
अकेले ही जीवन की  गाड़ी खींच  रहे
 बड़ी समानता देखी है यही |
 बचपन बीता खेलकूद में
अब अकेले ही उलझे हुए हैं
 अपनी समस्याओं के भ्रमर जाल में
कोई ऐसा न  मिला
जो समझे मनोभावों को |
वे क्या चाहते है ?
कैसे समय बिता सकते हैं ?
कहाँ तो बाहरी दुनिया में थे सक्रीय
अब हुए निष्क्रीय |
बड़ी समानता लगती है
बचपन में और बढ़ती  उम्र में
जरासी बात पर नाराज होना
                                 फिर जल्दी से न मनना
हुए हैं लाइलाज कोई नहीं समझ पाया |

आशा


 

  

16 अगस्त, 2020

दूसरी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि




रहे सदा अटल अपने नाम की तरह
जो भी मन में ठाना  पूर्ण किया शिद्दत से
 हर सही  बात पर अडिग रहे नहीं डिगे उससे
जो भी देश हित के लिए सोचा किया
जुटे रहे पूर्ण मनोबल से |
सफलता से मुख न मोड़ा
असफलता से भय न माना
आए राजनीति में जब
 समाज के हित को दी प्राथमिकता |
जब राजनीति में कदम रखा
सदा बैठे पक्ष में या विपक्ष में
ना केवल दिखावे के लिए
सदा अटल रहे सत्य पर |
विश्वास नहीं डगमगाया
 कभी हार नहीं स्वीकारी
 सदा दृढ़ संकल्प रहे
 आत्मबल से  सराबोर रहे|
हुए युग प्रवर्तक अनुयाइयों के लिए
दिया दृढ़ नेतृत्व विपक्ष को
बार बार दल परिवर्तन न किया
जैसा नाम वैसा ही काम
यही रही विशेषता विशेष आपमें
सादर नमन अटल आपको |
आशा

15 अगस्त, 2020

कर्तव्य हमारा


Public


स्वतंत्रता हांसिल हुई बड़ी कुर्वानियों से
जिसे अक्षून्य रखना है कर्तव्य हमारा
इससे मुंह मोड़ना कहलाता है देश द्रोह
इससे बचे रहना है सौभाग्य हमारा |
तीनों रंग तिरंगे के बीच में चौबीस शलाखाएं
है अद्भुद रंग राष्ट्र ध्वज का
जब फहराया जाता लहराता व्योम में
होता है गर्व का अनुभव हमें |
सर फक्र से झुकता है बार बार
मन नमन करता है राष्ट्र ध्वज को
उसकी गरिमा को शतशत नमन
हर बार  कर्तव्य का एहसास दिलाता है | 
आशा

दिन चिंता का







 लंबित कई दिन का कष्ट
अब रोज का आराम
चिंता मुक्त हो गए हो
 हुआ चंचल  मन शांत |
बेचैनी कहाँ खो गई
जान नहीं पाई
प्रभू से की थी  प्रार्थना
ऐसे दिन किसी को न दिखाए |
हुए हो  रोग मुक्त
परहेज ही करना है
समय पर सब कार्य हो
बस यही ध्यान रखना है |
                                ईश्वर की अनुकम्पा से
ठीक समय पर चेते
यह समस्या भी  हल हो गई है
प्रभु की असीम कृपा रही है |
अपने कुंद मन को शांत रखूँ  
कठिन दौर से गुज़री हूँ
वह भी बीत जाएगा  
अब सोच पा रही हूँ |
जीवन की सच्चाई से
पहली बार सामना हुआ है
अब सत्य से मुखातिब हूँ
प्रभु ने रक्षा की  है |
आशा