28 अगस्त, 2020

क्षणिकाऐ

                               
  १-मनमोहन के संग किये दो दो हाथ
हाथों में टिपरी का जोड़ा लिए साथ
डांडिया  खेलने का आनंद ही है कुछ और
रंग आ गया पांडाल में जोश छा रहा चहु ओर |
२-डांडिया खेलने का जोश
   उसे कर देता मदहोश 
कई दिन से सोच रही 
क्या ड्रेस पहनेगी उस दिन |
३-श्वेत धवल गोल गोल ओलों ने
बरफ के टुकड़ों ने ढाया कहर
किसान बेबस हुए दुआ मांगी प्रभू से
देख कर आसमान स्याह |

४-बीती  यादों के साए में जिए जा रहे हैं
उन स्वर्णिम पलों की चाह  में
खुद को भुला रहे हैं
जहां ठहराव सा लगा था कांटो भरे जीवन में |
५- वह जीवन क्या जो  किसी चाह से न उपजा हो  
वह गीत क्या जो स्वरों में न बंधा हो
वे सब तो रह जाते हैं केवल शोर हो कर  
दूरियां हो जाती है वास्तविकजिन्दगी से |
    
आशा


25 अगस्त, 2020

उन्मुक्त उड़ान






देख कर उन्मुक्त उड़ान भरती चिड़िया की
 हुआ अनोखा  एहसास उसे   
 पंख फैला कर उड़ने की कला  खुले आसमान में
 जागी उन्मुक्त जीवन जीने की चाह अंतस में |
हुआ मोह भंग तोड़ दिए सारे बंधन आसपास के
 हाथों के स्वर्ण कंगन उसे  लगे अब  हथकड़ियों से
पैरों की पायलें लगने  लगी लोहे की  बेड़ियां
यूं तो थी  वह रानी  स्वयं ही  अपने धर की
 पर  रैन बसेरा लगा अब  स्वर्ण पिंजरे सा |
कई बार सोचा   है  क्या कमी यहाँ
पर  न पहुंच पाई किसी निष्कर्ष पर  
ज्यों ज्यों गहराई में डूबी खोई विचारों में 
उर में उठी हूँक बढी बेचैनी |
 फिर याद आई छबि उन्मुक्त हो पंख फैला कर
 व्योम में उड़ती  उस चिड़िया की
नहीं  कोई विघ्न बाधा ना ही कोई बंधन
 हुई ईर्ष्या उसके जीवन से |
कहीं  मन के किसी कौने में  सोच जागा
क्या उस जैसा  उन्मुक्त  जीवन जीने का
 अवसर  उसे भी कभी मिलेगा
जी पाएगी  उन्मुक्त बिंदास जीवन |
पहले  सच्चाई से थी  दूर बहुत  
चिड़िया के उन्मुक्त जीवन जीने के पीछे का संघर्ष  
कितनी कठिनाइयों से गुजरना  होता था उसे
                                                     अनगिनत  समस्याओं से खुद को बचा कर 
 आगे का मार्ग प्रशस्त किया था  उसने|
यही है वह राज जो
उड़ती चिड़िया से जो  जाना है उसने
दुनिया का कोई बंधन  अब बाँध नहीं सकता  
                                 रहना है यहीं उन्मुक्त उड़ान भरना है  |                              है |
आशा  

    

23 अगस्त, 2020

अनुपम कृति







हो आफताव या किसी का नूर हो
या जन्नत की कोई अजनबी हूर हो
तुम्हें देख कर जो निखार आता है चहरे पर
उससे मुंह फेर  मुकरा नहीं जा सकता
तुम तो सदाबहार गुलाब का पुष्प हो |
तुमसे अनुपम कौन है कोई समानता नहीं  तुमसे  
किसकी है हिमाकत जो निगाहें उठाकर देखे तुम्हें
हो तुम गुणों की टोकरी कोई ईर्ष्या क्यूँ कर करे
है आवश्यकता  उसे तुमसे शिक्षा लेने की
न कि तुम्हें उलहाना देने की|
हो तुम अनुपम कृति इस धरा पर जिस घर की
हो गया निहाल जिसकी हो अनुकृति  तुम ही 
ईश्वर ने  मुक्त हस्त से दिया उसे तुमसा तोहफा
उसने भी सहेजा तुम्हें  जी भरकर पूरे मनोयोग से |  

आशा

     


21 अगस्त, 2020

पारिजात के पुष्प






हो तुम  खुशबू का खजाना
    दिया जो उपहार में
इस प्रकृति नटी ने तुम्हें
 सवारने सहेजने के लिए |
दी अपूर्व सुन्दरता हर एक पंखुड़ी में  
श्वेत रंग दिया भरपूर
नारंगी रंग की  डंडी ने 
अद्भुद निखार लाया है|
जब धरती पर
 पुष्प  झर झर झरे
 मंद मंद हवा बहे  
एक अनूठी सैज सजे  
पारिजात वृक्ष के तले |
जागा अदभुद एहसास
उस पर कदम पड़ते ही
 मन को सुकून आया है
देखी तुम्हारी बिछी श्वेत चादर
कितने जतन किये थे मैंने
तुम्हारे रूप को सजाने में |
हो तुम श्वेत सुन्दर अनुपम कृति
ईश्वर प्रदत्त उपहार में हमें
रोज चढ़ाए जाते 
पुष्प प्रभु के चरणों में
 महकता मंदिर का आँगन
 अनुपम सुगंध से है जो  है  प्रिय
 हमें और हमारे आराध्य को
आशा  

19 अगस्त, 2020

उसे तो आना ही है |







                                                              मुडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई  आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की  थाली सजाओ
किसी को आना ही है
मन मेरा कहता |
तभी तो आती  हिचकी
रुकने का नाम नहीं लेती
फड़कती आँख
 शुभ संकेत देती|
कह रहे सारे शगुन 
द्वार खुला रखना 
ढेरों प्यार लिए 
कोई आने को है |
हैं क्या ये  संकेत ही 
या मन में उठता ज्वार 
कितने सही कितने गलत 
 आता मन में विचार |
आशा