21 सितंबर, 2020

घर



 

 

घर तो घर ही होता है

देश में  हो या परदेश में

जहां चार जने अपने होते है

वहीं स्वर्ग हो जाता है |

एक दूसरे का सुख दुःख

अलग नहीं होता

आपस में बांट लिया जाता

ऐसा प्यार कहीं नहीं मिल पाता|

चार दीवारों से मकान तो बन जाता  

पर घर नहीं बन पाता

केवल एक छत के नीचे रहने से

पर मनों के ना मिलने से वह सराय  हो जाता |

सच्चा घर तो वही है जहां

अपनापन लिए हुए सब उलझनों का

समस्याओं का निदान हो  जाता है

दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है |

सब मिल बाँट कर  भोजन कर लेते है

समस्याओं के हल खोज लेते हैं

मेरा तेरा नहीं करते वही अपने कहलाते

प्यार के दो बोल के लिए नहीं तरसाते |

घर को स्वर्ग कहा जाता है

यूँ ही नहीं उसमें है योगदान

घर के रहवासियों का भी 

वही मकान  को घर में बदल देते हैं |

आशा

20 सितंबर, 2020

कहाँ सजाऊँ यादों को


 

 

है बहुत पुरानी बात

 अचानक आज याद आई

भूली भटकी यादों को

अब कहाँ समेटा जाए |

मस्तिष्क में अब

रिक्त स्थान नहीं है

इस याद को कहाँ समेटूं

कहाँ दूं स्थान इसे |

कैसे इसे याद रखूँ

किसी बात से जब मन दुखे

 उसे भूलना ही अच्छा है

जीवन सहज चलने के लिए है अति आवश्यक  |  

तुम से नेह कभी कम न हुआ

उसे जीवन भर का संचित धन  समझा

है वही अनमोल मेरे लिए

प्रभु भक्ति से बढ़ा  कम न हुआ  |

अब तो आदत सी हो गई  है

तुम्हारी यादों के संग जीवन बिताने की

उनसे दूर हो कर जी नहीं पाऊँगी

तुमसे यदि  न कही किससे कहूंगी |

                                                  आशा

19 सितंबर, 2020

तुमने साथ दिया है

 


                                                                

 

                                                             सुख तो होता  चंद दिनों  का

पर तुमने साथ दिया है मेरा

दुःख तुमने सच्ची मित्रता निभाई है

जीते है साथ मरने की किसने देखी|

जीवन से कभी असंतोष न हुआ

सोच लिया  यही है प्रारब्ध मेरा

सदा हंसती रही हंसाती रही

अब न जाने क्यूँ उदासी ने घेरा |

 कल्पना में ही जीवन जिया  

कठिनाई को बोझ न समझा

हवा का रुख हुआ जहां

उस ओर ही बहती चली गई |

जरा सी है यह जिन्दगी

खिले फूल को मुरझाना ही होगा

आज नहीं तो कल

पंचतत्व में मिलना होगा |

यह जान लिया है मैंने

अब तक स्वप्नों में खोई थी  पर अब नहीं  

सत्य के इतने करीब आकर

दूर कैसे  जा पाउंगी |

आशा  

   

 

 

18 सितंबर, 2020

मेरी बहन

 



    दो दिन पहले मैंने अपनी प्यारी बहिन को खोया है उसकी याद में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं
     
    थीं तुम गुमसुम गुड़िया जेसी
    शांत सोम्य मुखमंडल तुम्हारा 
    मन मोहक मुस्कान तुम्हारी
    सब से प्यार करनेवाली 
    सब से प्यारी सबकी दुलारी
    बचपन से ही थीं ऐसी
अब भी कुछ परिवर्तन नहीं हुआ 
कम बोलना कायदे से बोलना
है  बड़ा गुण तुममें
हर कोई नहीं हो सकता तुम जैसा
अपने काम में हो दत्त चित्त
सुन्दर कृतियाँ उकेरीं तुमने
हर वह चित्र बोल उठता है ऐसे
प्राणप्रतिष्ठा की हो जैसे
तुम्हारी हर कृति का एहसास
सजीव जगत से आया है जैसे
तुम्ही मुखरित हुई हो हर कृति में
वैसे तो अंतर मुखी रहीं सदा
अब तुमने  चिर मौनं को वरा है
सो गई चिर निंद्रा में सदा के लिए
तुम्हारी कमी की पूर्ती कभी नहीं होगी |
आशा

15 सितंबर, 2020

हिन्दी



 

हिंदी दिवस

है हमारी  भाषा हिन्दी

हमें बहुत प्यार है

अपनी भाषा से

हिंदी दिवस मना रहे

बड़ा धूमधाम से |

दिन रात बोलते नहीं थकते 

है इतनी प्यारी भाषा 

दूसरी  भाषाओं से घुलमिल जाती 

पानी में चीनी जैसी |

है सरल भाषाविज्ञान इसका 

बोधगम्य है व्याकरण  इसकी 

आसानी से समझी जा सकती है 

lलिखी पढ़ी जा सकती है |

तभी तो है प्यारी दुलारी हिन्दी 

है यही विशेषता इसकी 

जिसने इसे सीखना चाहा 

उसमें ही खो जाता है |