खुशबू तेरी फैल जाती थी
सारे चौवारे में
जैसे ही कदम रखती
भरी महफिल में |
यदि होती तू दूर नहीं
सभी की नज़रों से
तुझे जो प्यार दुलार
मिला करता था घर में
वही क्या महसूस किया
तूमने भी भरी महफिल में |
पर मेरी निगाहों को कहीं
अंतर नजर आया दौनों में
लोगों की सोच ने विशिष्ट
रंग दिया मेरे नजरिये को |
जब एक बार बना ख्याल
तुम्हारे लिए मन में
मैं कई बार विचार
करती हूँ
किसी एक बात पर
सोच को अटल कर लेना
है यह कितना न्याय संगत?
कितनी उथली हो गई सोच मेरी
मेरे मस्तिष्क ने मुझे
चेताया |
महफिल में अलग सी गंध
फैल जाती तुम्हारे आने से
किया अनुभव जो मैंने
बहुतों ने महसूस किया वही अंतर
उस महक और आज की खुशबू
में |
यह परिवर्तन मैंने
ही नहीं पर
अनुभवी आँखों ने भी इसे पहचाना
उम्र का है यही तकाजा मान
सोचा और नजर अंदाज किया |
आशा