09 मार्च, 2021

खुशबू तेरी


 

खुशबू  तेरी फैल जाती थी 

सारे चौवारे में

जैसे ही कदम रखती 

 भरी  महफिल में |

यदि  होती तू दूर नहीं  

सभी की नज़रों से

तुझे जो प्यार दुलार 

मिला करता था घर में

 वही  क्या महसूस किया

 तूमने भी  भरी महफिल में |

पर मेरी निगाहों को  कहीं

अंतर नजर आया दौनों  में

लोगों  की सोच ने  विशिष्ट

रंग दिया  मेरे नजरिये को |

जब एक बार बना ख्याल

तुम्हारे  लिए मन में

मैं कई  बार विचार करती हूँ

किसी एक बात पर

सोच को अटल कर लेना

 है यह कितना  न्याय संगत?

 कितनी उथली हो गई सोच मेरी

मेरे मस्तिष्क ने मुझे चेताया |

महफिल में अलग सी  गंध 

 फैल जाती तुम्हारे आने से

 किया अनुभव जो मैंने 

बहुतों ने महसूस किया वही  अंतर

उस महक और आज की खुशबू में |

यह परिवर्तन मैंने ही नहीं पर

 अनुभवी आँखों  ने भी इसे पहचाना 

 उम्र का है यही तकाजा मान

सोचा और नजर अंदाज किया | 

आशा 

08 मार्च, 2021

आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस है


 

आज  अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस है

साल २१  का पहला नेट का  त्यौहार है

 कोई तो दान करो ए अंतर जाल वालों

मेरा विश्वास करो या नहीं |

 मेरी बात को तो मानोंगे

इस वर्ष फिर यह दिवस  लौट कर  न आएगा

कोई बाध्यता नहीं   पर  किसी का तो सम्मान करों

 दिल से न सही  दिखावे के लिए ही सहीं |

यही तो खर्च होगा एक फूल माला

 और एक कप चाय या कॉफी  प्रति व्यक्ति

फिर अखवारों में यही मुद्दा उछलेगा

क्या क्यों किसलिए जैसे प्रश्न उछलेंगे |

 कुछ अनोखा नहीं करना है

 महिलाओं का  महिमा मंडान करना  है 

बधाई तो  देना ही  बनती  हैं

दो बधाई और शुभ कामनाएं  

आज की कर्मठ  महिलाओं  को 

पाओ प्रशस्ति बहुत सारी |

आशा 

शा

05 मार्च, 2021

बीतना चाहा इस वसंत ने

 


बीतना चाहा इस  वसंत ने

 फागुनी हवा ने अपना हक़ माँगा  

वह देने को तैयार ही बैठा था  

लौटने का मन बनाया |

उसे इस बात का एहसास

पहले भी हुआ था पर उसे

अपने  मन का भ्रम जान

नजर अंदाज किया था |

पर्यावरण के परीवर्तन ने

 दी गवाही फागुन आने की

 वृक्षों के  पत्ते झरने लगे

 कुछ वृक्ष  ऐसे भी थे जिनमें

कलियाँ प्रस्फुटित होने लगी |

जैसे नव कलियों में से

झाँकते  पलाश के पुष्प

दुनिया देखने को थे बेकरार

खिले  पुष्प हुआ सुर्ख वृक्ष पूरा

अद्भुद सिंगार हुआ  धरती का |  

खेतों में नवल धान्य  तैयार

कर रहा प्रतीक्षा होली की

चंग पर थाप दे करते नृत्य 

 फागुनी  गाने तैयार कर

रसिया नए सुनने सुनाने को |

घर घर जाकर  गीत  गाना  

 फगुआ मांगना हुआ प्रारम्भ

सराबोर हुआ सारा समाज

फागुन के रंग में भीगा समाज

महिलाएं व्यस्त पकवान बनाना में |

मौसम का बदलता स्वभाव   

स्पष्ट नजर आता

गर्मीं की आहट भी कभी 

 मन को मुदित करती |

आशा

04 मार्च, 2021

देखे प्रेम के कई रूप




                                                                         देखे प्रेम के कई रूप 

भाँती भाँती के रूप अनूप

 भक्ति  भाव उजागर होता

कभी  माँ की ममता का बहाव होता 

कभी मित्र भाव दिखाई देता

कभी निस्वार्थ प्रेम लहराता

अपना परचम फहराता

प्रकृति  अपने पंख फैलाती 

कभी देश प्रेम होता सर्वोपरी

किसे प्राथमिकता दे  क्या है जरूरी

सोच सही मार्ग न दिखा पाता ||

 केवल एहसास खुद से प्रेम का

देता आत्म मोह  का नमूना कभी 

 यौवन से प्रेम उफन कर आता कभी 

जिस समय हो अति आवश्यक

वही प्रेम समझ में आता |

03 मार्च, 2021

आज रहा क्या रहस्य

                                                       

आज क्या रहा रहस्य

 जानने  को

हर बात की जानकारी

 सहज ही मिल जाती है |

यही जानकारी बना देती  

 छद्म मर्मग्य उसे

एक मुखौटा चहरे पर

और चिपक जाता है |

  असली रूप 

 कहीं दब जाता है

पहचान नहीं हो सकती

है असली की |

असली नकली के सच को

उजागर करना

 होता सरल नहीं

बात छिपी रह जाती है मन में |

जो जैसा है

दिखाई नहीं देता

वास्तविकता का एहसास

आसान नहीं है |

चंद फितरती लोग

लाभ उठा लेते हैं

ऐसे अवसरों का

बन जाते हैं छद्म मर्मग्य |

आशा 


02 मार्च, 2021

मेरे मन के मीत

                                     


क्यूँ विसराया मुझे

मेरे मन के मीत

मेरी क्या रही खता

जो तुम भूले मुझे |

मैंने रात भर जाग कर 

राह देखी तुम्हारी 

फिर क्यूँ मुझे विसराया

 दिया इन्तजार बदले में |

क्या तुम्हारे दिल में

मेरे लिए कोई जगह नहीं है

या मुझमें कोई

आकर्षण नहीं है |

क्यूँ  किसी और को

अपनाया तुमने

मन बैरागी  होने लगा है  

मैंने तो अपना

 तन मन धन सब वैभव

  सोंप दिया है   तुम्हें |

पर तुमने  दिल से

कभी न अपनाया मुझे

मेरे ही साथ

यह दुभात क्यूँ ?

 आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                                                    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

01 मार्च, 2021

आओ खेलें खेल

 


आओ खेले खेल

 राधा और कान्हां  का

तुम मेरी राधा बन जाओ

मैं हूँ  तुम्हारा कान्हा |

बरसाने से जल भरने आई पनिहारन  

पर मान लिया मैंने शक्ति अपनी तुम्हें

तुमने मुझे क्या समझा |

  भोलाभाला नन्हा सा  चोर माखन का

या करील की  झाड़ियों में   छिपे किशोर

  मोहन बंसीवाले  की छवि देखि है मुझमें

कैसा रूप देखना चाहोगी मेरा  आज के  खेल में |

मन मोहन मैं कुछ भी नहीं चाहती तुमसे

इस बाँसुरी के सिवाय क्यूँ कि

 वह तुम्हे लगती है अधिक  प्यारी मुझसे

वह सौतन सी लगती है मुझे  |