21 मार्च, 2021

अन्तराष्ट्रीय कविता दिवस


                                                                          यह   दिवस

 मनाते कब से हैं 

इसकी यादें

बसती हैं मन में 

एक पेड़ सी  

घने  वृक्ष के जैसी

गहरी जड़ें  

फैल रही धरा में   

फैली शाखाएं

देती हरियाली है

नव पल्लव

खिल जाते डालों पे

सजते  सोच 

शब्द सहेजे जाते

 उड़ते पक्षी    

 विभिन्न कथन हैं 

छिपे  उनमें

 शब्दों  से बने गीत  

  भूल न पाते

उनके हैं  सन्देश 

दिल में रहे 

तभी यह दिवस

मनाया जाता  

आशा

   

 

  

भरमाया सा


 

है जब तक

प्राणों का आकर्षण

भरमाया सा  

मद मोह माया से  

छला जाता हूँ

मन के  मत्सर से

 अनियंत्रित हूँ  

 बेहाल हुआ 

मेरे   वश में  नहीं   

न अपना  है   

नहीं चंचल चित्त

ना ही वर्जना

तब भी अपनों ने

टोका ही नहीं

अनजान व्यक्ति ने

दी है हिम्मत

बढाया मनोबल

शूरवार हो

फिर कायरता कैसी

साहस बढ़ा

अंतर आत्मा जागी 

कर्मठ हुआ

निर्मल जीवन का

 समझा अर्थ 

हुआ कर्तव्य निष्ठ |

आशा   

20 मार्च, 2021

कितनी बातें

 


कितनी बाते

कहने करने को

समय कम

होने लगता जब

 बहुत कष्ट  

देता जाता मन को

तुम्हारा दिल   

कंटकों से भरता  

पुष्प किसी का  

भाग्य बदल देता

तुम्हीं अछूते

रह जाते उनसे

जानना चाहा

 सजा किस कारण 

मैंने किया क्या   

मालूम नहीं हुआ 

 रहा अशांत

  कभी खोजने की भी

चाहत  होती   

कितना लाभ होता 

जान कर भी

नहीं है  कुछ लाभ 

मन अशांत 

होता ही रह जाता 

आशा 



19 मार्च, 2021

दीवाना हुआ


                                                                      दीवाना  हुआ

तेरी छवि देखते

खोया  ख्यालों में

बनाली है तस्वीर

मस्तिष्क में भी 

 क्यों हुआ हूँ अधीर

  दोगे दर्शन  

 हम सब को साथ  

तुम्हारे हाथ

होंगे   मेरे ऊपर  

ख्यालों में डूब जाता

तन बदन

ठहर जाता मन   

एक  स्थल पे  

जाना नहीं  चाहता

जन्म ले कर

फिर से  धरा  पर

जन्म मृत्यु के 

चक्र व्यूह में फंसा 

मुक्ति मार्ग का    

 मैं   रहा  अनुरागी

 दीवाना फिर भी हूँ 

पाया  है  जिसे  

बहुत जतन से

 फिर से खोना

नहीं मंजूर मुझे |

आशा

 

 

मनमोहन

 


पहने पीताम्बर

श्यामल गात

अधरों पर मधुर

मुस्कान लिए

घूमते  गली गली

माखन खाते

खुद खाते खिलाते  

 ग्वालवाल को  

लिए साथ जब भी

एक गजब

कहानी बन जाती

गिला शिकवा

शिकायत तो  होते  

पर क्षमा की

गुहार भी  लगाते

 सीधे साधे हो  जाते

कोई कहता

माखन चोर कान्हां

नन्द किशोर

यशोदा के  दुलारे

 मोहन प्यारे

बाँसुरी बजा रिझाते

गोप गोपियां

रंग रसिया होते     

राधा बिना अधूरे

 मोहन होते

आशा

 

 

18 मार्च, 2021

चाह तुम्हारी



                                              चाह तुम्हारी 

हुई पूर्ण फिर भी

क्यूँ खुशी नहीं

मुख मंडल पर

मुझे बताओ

मन में  विचार क्या

पलने लगा

होता यदि  मालूम  

शायद जानू

मैं तुम्हें पहचानू

मदद करो

किसी काबिल बनू

जीतूँ   विश्वास

गोरे   सुर्ख  गालों की

मुस्कान  पर

लगी मेरी  मोहर

किसी और से

मैं कैसे उसे बाटूं

आशा

 

16 मार्च, 2021

रमता जोगी

 


 
रमता जोगी

 खोज रहा एकांत

ठहरे जहां

चंद पलों के लिए

भूले भूकंप

भयावह सुनामी

सोचता रहा

 कब हो छुटकारा

उलझनों से

दुनिया की यातना

सह न पाता

कैसे बचे इससे

बैरागी मन

 ठहर नहीं  सके

भटका  जाए

एक ही स्थान पर

 हो कर  मुक्त

यहाँ  के प्रपंचों  से

है राह भूला

फिर नहीं भटके

 सही दिशा हो

बंद आंखो से खोजे  

वही   मार्ग हो

आशा